मिलिए ऐसे किशोरों से, जिन्‍होंने अपने जज्‍बे से मुश्‍किलों को अवसर में बदलने का तरीका ढूंढ़ लिया

जिंदगी जीनी है हिम्मत से। कठिन समय बिताना है मजबूती से। तैयारी करनी है जीत की। अपना एक्यू (एडवर्सिटी क्योशेंट) सही बनाएं। मुश्किलें किसे नहीं आतीं, लेकिन कोई हल निकाल लेता है और कोई हार जाता है। विपत्ति में जीतने का जज्बा ही विजेता बनाता है। मिलेंगे कुछ ऐसी किशोरों से, जिन्‍होंने अपने जज्‍बे से मुश्‍किलों को अवसर में बदलने का तरीका ढूंढ़ लिया...


पलाश तनेजा मात्र 19 वर्ष के हैं, लेकिन हाल ही में संपन्न एपल की वर्ल्डवाइड डेवलपर्स कॉन्फ्रेंस 2020 में उनका नाम प्रमुखता से उभरा है। दरअसल, वे उन 41 देशों में से चुने गए छात्रों में से एक हैं जो स्विफ्ट स्टूडेंट चैलेंज के विजेता हैं। एपल के सीईओ टिम कुक के साथ उनकी तस्‍वीर वायरल भी हो रही है। उन्होंने एक वेब-बेस्ड डिवाइस बनाया है, जो मशीन लर्निंग के उपयोग से जानकारियां देता है। कोविड-19 के इस समय में यह डिवाइस बताता है कि कैसे सावधानी बरतें, कैसे शारीरिक दूरी और मास्क, संक्रमण दर धीमी करने में मदद कर सकते हैं। पलाश कहते हैं कि उन्होंने युवाओं को शिक्षित करने के लिए इस डिवाइस को बनाया है क्योंकि उन्हें लगता है कि तमाम युवा महामारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और समुचित सावधानियों का पालन नहीं कर रहे हैं।


आइक्यू से ज्‍यादा एक्यू महत्वपूर्ण : दोस्तो, खास बात यह है कि पलाश को चार साल पहले डेंगू हुआ था और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अपनी बीमारी के दो-तीन महीने के अनुभव ने ही उन्हें प्रोग्रामिंग सीखने और प्रॉब्लम-सॉल्विंग डिवाइस बनाने के लिए प्रेरित किया। उस समय उनके डिवाइस ने यह बताया था कि डेंगू बुखार जैसे मच्छर जनित रोग कैसे फैलते हैं? मुश्किल समय में हल ढूंढ़ने के इसी जज्बे ने उन्हें विजेता बनाया है। पलाश ने जो कर दिखाया है, उसके लिए इंटेलिजेंस क्योशेंट (आइक्यू) से ज्यादा एडवर्सिटी क्योशेंट (एक्यू) की जरूरत है यानी विपत्ति में भी मौका ढूंढ़ लेने की हिम्मत। इसके लिए आपकी मानसिक मजबूती यानी मेंटल इम्यूनिटी बहुत अच्छी हो, यह जरूरी है। इसके लिए बच्‍चों को शुरू से ही सिखाना जरूरी होता है। इसकी आदत छोटे-छोटे कामों के लिए उन्‍हें आत्‍मनिर्भर बनाकर डाली जा सकती है।


बेहतर रास्ता निकालना है एक कौशल : मुश्किलों के लिए खुद को तैयार करना और बेहतर रास्ता निकाल लेना एक कौशल ही कहा जाएगा। हमारे देश के कई दिग्गज खिलाड़ी अभावों से निकल कर दुनिया में चमके हैं। लखनऊ की छोटी-सी बस्ती के एक मध्यम परिवार से निकलीं वॉलीबॉल की नेशनल प्लेयर शशिबाला के पापा किसान और मम्मी गृहिणी हैं। बचपन से ही उन्हें स्पोर्ट्स में रुचि थी, लेकिन इतने पैसे नहीं थे कि अपने लिए बॉल खरीद सकें। साथी बच्चों के साथ गांव के लोगों से पैसे इकट्ठे करतीं और बॉल खरीद कर प्रैक्टिस करतीं। खिलाड़ी बनने का जोश और जुनून इतना था कि अभावों में पली-बढ़ीं शशिबाला कहती हैं कि परिश्रम से ही सफलता मिलती है। क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के संघर्षों से बहुत इंस्पायर हूं, क्योंकि कड़ी मेहनत और संघर्षों के चलते ही उन्होंने भी सफलता हासिल की है।


गुजर जाएगा मुश्किल समय : आप जानना चाहते होंगे कि यह एक्यू क्या है? बिना मानसिक रूप से बिना परेशान हुए विपत्ति के समय को जीत लेने की क्षमता ही एक्यू है। इस समय जो नकारात्मक माहौल है, उसमें भी बच्चे अगर सकारात्‍मकता से भरपूर बात करते हैं तो उनका एक्यू बेहतर माना जएगा। अर्णव प्रियदर्शी सोलन, हिमाचल प्रदेश में हॉस्टल में रहते हैं। लॉकडाउन में वे अपने घर आ गए। तीन महीने तक घर में रहने के बाद भी वे खुद को जरा भी निराश महसूस नहीं करते। कहते हैं, 'मैं विपत्ति में घबराता नहीं बल्कि समाधान ढूंढ़ता हूं। दरअसल, तीन साल हॉस्टल में रहने और कई तरह की समस्याओं का सामना करने के बाद मैं मजबूत हुआ हूं। इन दिनों टीवी पर फुटबॉल देखता हूं, एक्सबॉक्स खेलता हूं और शारीरिक दूरी बनाए रखते हुए और मास्क पहन कर सोसायटी में साइकि‍ल चला लेता हूं। मैं अपने दोस्तों से भी कहता हूं कि वर्तमान मुश्किलें थोड़े समय के लिए ही हैं। हमारे पास तकनीक है। हमारे वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं। हम मेंटली स्‍ट्रॉन्ग रहेंगे तो यह दौर आसानी से गुजर जाएगा।'


बच्चों को बताएं सही बात : बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत बनाए रखने में पैरेंट्स की प्रमुख भूमिका होती है। त्रिकाया होम्‍योपैथी की डायरेक्टर डॉ. प्रियंका मेहंदीरत्ता बच्चों के मनोविज्ञान को बहुत अच्छी तरह से समझती हैं। उनकी आठ साल की बेटी अनाया मेंहदीरत्ता तीसरी क्लास में है। उसकी मेंटल इम्यूनिटी बनाए रखने के लिए वे कहती हैं, 'हम बच्चों के सामने नकारात्मक बातें नहीं करते, बल्‍कि उससे बचाव के तरीके बताते हैं। अगर उनको एंजायटी होगी तो बता नहीं पाएगी, डरने लगेगी। इसलिए उसे हर बात सही बताते हैं और उसकी जिज्ञासाओं को भी शांत करते हैं। हम बेटी का जन्मदिन हमेशा गरीब बच्चों के साथ मनाते हैं। इस बार भी वह इसके लिए चिंता कर रही थी। मैंने उसे बताया कि उसका बर्थडे हम जरूरतमंद लोगों में खाना और मिठाइयां बांटकर ही मनाएंग


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