14 दिसंबर को लगने जा रहा है सूर्य ग्रहण, जानें क्यों लगता है ग्रहण और क्या है इसका धार्मिक कारण

 Surya Grahan: 14 दिसंबर को लगने जा रहा है सूर्य ग्रहण, जानें क्यों लगता है ग्रहण

इस वर्ष का आखिरी सूर्य ग्रहण 14 दिसंबर को लगने जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह दक्षिणी अफ्रीका अधिकांश दक्षिण अमेरिका प्रशांत महासागर अटलांटिक और हिंद महासागर और अंटार्कटिका में पूर्ण रूप से दिखाई देगा।

 इस वर्ष का आखिरी सूर्य ग्रहण 14 दिसंबर को लगने जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह दक्षिणी अफ्रीका, अधिकांश दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, अटलांटिक और हिंद महासागर और अंटार्कटिका में पूर्ण रूप से दिखाई देगा। सूर्य ग्रहण 14 दिसंबर शआम 7 बजकर 3 मिनट से शुरू होगा। यह रात 12 बजकर 23 मिनट पर खत्म हो जाएगा। इसकी अवधि लगभग 5 घंटे की रहेगी। आइए जानते हैं सूर्य ग्रहण कैसे लगता है और इसका धार्मिक कारण।

कैसे लगता है सूर्य ग्रहण:

भौतिक विज्ञान के अनुसार, जब चंद्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में आ जाता है और सूर्य का बिम्ब चन्द्रमा के पीछे कुछ समय के लिए ढक जाता है तो इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। आसान भाषा में समझा जाए तो यह तो हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है। वहीं, चांद पृथ्वी की परिक्रमा करात है। इस दौरान कभी-कभी सूरज और धरती के बीच चंद्रमा जाता है। इससे चांद सूरज की कुछ रोशनी रोक लेता है। इसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है।

सूर्य ग्रहण का धार्मिक कारण:

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत पाने के लिए देवताओं और दानवों के बीच विवाद हो रहा था तब इसे सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। इन्हें देख देवगण और दानव दोनों ही मोहित हो गए। तब विष्णु जी ने देवताओं और दानवों को अलग-अलग बिठाया। इसी बीच एक दानव को इस चाल पर शक होने लगा। वह दानव देवताओं की पंक्ति में सबसे आगे बैठ गया और अमृत पान करने लगा।

लेकिन चंद्रमा और सूर्य ने उस असुर को ऐसा करते देख लिया और इस बात की जानकारी विष्णु जी को दी। यह जानने के बाद विष्णु दी ने अपने सुदर्शन चक्र से उस असुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन वो अमृत पान कर चुका था ऐसे में उसकी मृत्यु नहीं हुई। इस असुर के सिर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया। उसकी यह दशा सूर्य और चंद्रमा के कारण हुई थी ऐसे में राहू-केतू ने उन दोनों को अपना दुश्मन माना। राहू-केतू पूर्णिमा के दिन चंद्रमा और अमावस्या के दिन सूर्य को खाने की कोशिश करते हैं। जब वह सफल नहीं हो पाते हैं तब इसे ग्रहण कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार राहु और केतु के कारण ही चंद्रग्रहण और सूर्य ग्रहण की घटना घटती है।