आप भी मिलिए दक्षिण सूडान में यूएन पदक पाने वाली भारतीय सेना की अधिकारी मेजर चेतना से

संयुक्‍त राष्‍ट्र के शांति मिशन में सबसे बड़ा योगदान भारत का है।

मेजर चेतना भारतीय शांति रक्षकों के शामिल दल में है जो दक्षिण सूडान में तैनात है। उन्‍होंने और उनकी टुकड़ी ने बेहद विपरीत परिस्थितियों में यहां पर अपने काम को अंजाम दिया है। उन्‍हें यूएन ने पदक से नवाजा है।

संयुक्‍त राष्‍ट्र। संयुक्‍त राष्‍ट्र की शांति सेना में विश्‍व में यदि किसी देश का सबसे बड़ा योगदान है तो वो है भारत। इसका लोहा पूरी दुनिया मानती है। भारत की तरफ से भेजी गई इस शांति रक्षक सेना में चाहे में पुरुष हों या महिलाएं सभी की भूमिका काफी अहम होती है। महिलाओं के लिये इसका हिस्‍सा बनना कोई सामान्‍य बात भी नहीं है। संयुक्‍त राष्‍ट्र की अगुआई में ये शांति सेना दुनिया के सबसे मुश्किल जगहों पर और मुश्किल हालातों में आम लोगों की मदद करने में सबसे आगे होती है। यही बात मालाकाल में तैनात शान्तिरक्षकों पर भी पूरी तरह से खरी उतरती हुई दिखाई देती है। यहां पर तैनात 800 से अधिक सैनिकों को उनकी सेवाओं के लिए पदक से सम्मानित किया गया है। इनमें भारत के वीर जवान भी शामिल हैं।

इनमें से एक हैं भारतीय सेना की मेजर चेतना। सूडान में तैनात भारतीय सेना की इंजीनियरिंग विंग में वे एकमात्र महिला अधिकारी हैं। उनकी इस टुकड़ी में 21 शांति रक्षक हैं। उनकी टीम इस बात को सुनिश्चित करती है कि यहां पर तैनात सभी जवानों के पास बिजली की निबार्ध आपूर्ति हो सके। इसके अलावा जवानों की जरूरत का दूसरा सामान भी उनतक पहुंच सके।

सम्‍मान पाने के बाद मेजर चेतना ने कहा कि वो किसी भी काम में पुरुष सहयोगियों से अलग नहीं हैं। वो भी अपना काम उसी लगन से करती हैं जितनी लगन से कोई पुरुष करता है। वो खुद को उनके ही बराबर मानती हैं। इतना ही नहीं वहां मौजूद सभी पुरुष अधिकारी भी उनके साथ बराबरी का व्‍यवहार करते हैं। उन्‍होंने बताया कि उनका कोई भी पारिवारिक सदस्‍य फौज में नहीं था बावजूद इसके वो हमेशा से एक सैनिक ही बनना चाहती थीं। उनके परिवार ने इस काम में उनकी पूरी मदद की। यही वजह है कि आज वो अपना सपना सच कर पाई हैं।उनका कहना है कि सेना की वर्दी हमेशा से ही उन्‍हें अपनी तरफ आकर्षित करती थी। इसके अलावा जवानों का अनुशासित जीवन जिसकी कोई मिसाल ही नहीं, हमेशा उन्‍हें पसंद आता था। उन्‍हें बचपन में जवानों को देखकर लगता था कि बड़े होकर वो भी उनकी ही तरह बनेंगी।

आपको बता दें कि दक्षिण सूडान दुनिया की सबसे बड़ी नील नदी के ऊपरी भाग में स्थित है। जहां तक भारतीय शांतिरक्षकों की बात है तो वो केवल मलाकाल में ही नहीं बल्कि कई दूसरे इलाकों में भी सेवाएं देने के लिए पहचाने जाते हैं। इनमें कोडोक, बेलिएट, मेलट और रैन्क जैसे कई और दूर-दराज के क्षेत्र शामिल हैं। यहां के स्‍थानीय लोग भारतीय रक्षकों को बेहद सम्‍मान की नजर से देखते हैं।

जब उनसे कोविड-19 महामारी के दौरान आई चुनौतियों के बारे में सवाल किया गया तो उन्‍होंने कहा कि सबसे अधिक परेशानी लॉकडाउन के दौरान सामने आई थी। उस वक्‍त नील नदी से पानी लाना और खाने की चीजें लाने में भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। हालांकि, यहां पर मेजर चेतना का कार्यकाल अब खत्‍म होने के कगार पर है। उनका कहना है कि इस कार्यकाल के दौरान वो यहां की लड़कियों के जीवन में कुछ तो बदलाव जरूर लेकर आई हैं।

संयुक्‍त राष्‍ट्र के मुताबिक भारत के शांति सैनिक बीमार लोगों की मदद करने के अलावा बीमार जानवरों के मदद में भी कारगर भूमिका निभा रहे हैं। बेहद विपरीत परिस्थितियों में काम करते हुए इन जवानों ने हजारों जानवरों का इलाज किया। इसके अलावा यहां पर स्‍थानीय स्‍तर पर जानवरों का इलाज करने के लिए पशु - स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देकर उन्‍हें दक्ष किया। यूएन की खबर में बताया गया है कि रैंक में भड़की हिंसा के दौरान भारतीय सैनिकों ने करीब तीस कार्यकर्ताओं को वहां से सुरक्षित बचाया।यूएन मिशन की कार्यकारी संयोजक, एनोस चुमा मानती हैं कि दक्षिण सूडान में भारतीय शांति सैनिक यूएन के सच्‍चे राजदूत हैं। जिस वक्‍त भारतीय जवानों को पदक से नवाजा गया उस वक्‍त दक्षिण सूडान में तैनात भारत के राजदूत, एस.डी.मूर्थी भी थे।