नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर भारतीय संसद पर हुए हमले को 19 वर्ष बीत चुके हैं। इसके बाद भी इस हमले में शहीद हुए परिजनों के लिए ये घटना इस दिन के साथ हर बार ताजी हो जाती है। इस घटना में दोषी ठहराए गए अफजल गुरू को 9 फरवरी 2013 को सुबह दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी। वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एसएआर गिलानी को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट ने आरोपों से मुक्त कर बरी कर दिया था। अक्टूबर 2019 में उनकी भी मौत दिल का दौरा पड़ने से हो गई। इन सभी के बावजूद इस हमले का मास्टरमाइंड पाकिस्तान में आज भी आजाद ही घूम रहा है। भारत ने कई बार इस आंतकी घटना के सुबूत पाकिस्तान को सौंपे लेकिन पाकिस्तान ने हर बार इन्हें नजरअंदाज कर दिया।
बड़ी साजिश का नतीजा
बहरहाल, भारतीय संसद पर हमला एक बड़ी साजिश का नतीजा था। इसको रचने वाले एक नहीं बल्कि कई लोग थे। इस हमले को पांच आतंकियों ने अंजाम दिया था। इन सभी को सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया था। आतंकियों का मकसद संसद के भीतर मौजूद अधिक से अधिक सांसदों को मार गिराना था। हालांकि, सुरक्षाकर्मियों की मुस्तैदी की वजह से वेा इसमें कामयाब नहीं हो सके थे। इस हमले के बारे में अफजल गुरू ने एक इंटरव्यू में इसका जिक्र भी किया था। उसने इस इंटरव्यू में ये भी स्वीकार किया था कि उसने आतंकियों की मदद की थी। वह खुद पाकिस्तान में आतंकी ट्रेनिंग ले चुका था। हमले की साजिश रचने के आरोप में वर्ष 2002 में दिल्ली हाईकोर्ट और वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट से उसको फांसी की सजा सुनाई गई थी।
45 मिनट तक चली कार्रवाई
देश की संसद पर हुए मले की कार्रवाई करीब 45 मिनट तक चली थी। इस हमले की खबर जब टीवी के माध्यम से लोगों तक पहुंची तो हर कोई हैरान था। देश की संसद पर हमले की ये पहली घटना थी। इस हमले में जैश ए मोहम्मद के पांच आतंकी शामिल थे। इन आतंकियों के मकसद को विफल करने में सीआरपीएफ की महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड और दिल्ली पुलिस के पांच जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इसके अलावा इसमें 16 जवान भी घायल हुए थे।
ताबूत घोटाले पर चल रही थी बहस
जिस वक्त ये हमला हुआ था उस वक्त संसद के अंदर ताबूत घोटाले को लेकर बहस चल रही थी। इसकी वजह से अधिकतर सांसद सदन में मौजूद थे और बहस के दौरान जबरदस्त हंगामा चल रहा था। इस वजह से सदन की कार्यवाही को 45 मिनट के लिए स्थागित करना पड़ा था। इस बीच आंतकियों ने एक सफेद कार में संसद भवन के गेट पर लगे बेरीकेट को तोड़ते हुए अंदन प्रवेश किया। इस कार पर गृह मंत्रालय का एक स्टीकर लगा था। अंदर घुसते ही आतंकियों ने एके-47 से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। उनके सामने जो आया उस पर उन्होंने गोलियां चलाईं।
सांसदों ने गोलीबारी को समझा आतिशबाजी
इस गोलीबारी को संसद के अंदर मौजूदा सांसद आतिशबाजी की आवाज मान रहे थे। लेकिन जब उन्हें आतंकी हमले की जानकारी मिली तो वो भी सहम गए थे। सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत मोर्चा संभाला और सभी को सुरक्षित करने की कवायद शुरू कर दी और सदन के अंदर जाने का प्रमुख द्वार बंद कर दिया। करीब 30 मिनट तक सुरक्षाकर्मियों और आतंकियों के बीच गोलियां चलती रहीं। ये गोलीबारी उस वक्त तक चली जबतक सभी आतंकियों को मार नहीं दिया गया। अगस्त 2003 में संसद पर हमले का मुख्य आरोपी गाजी बाबा को श्रीनगर में सुरक्षाकर्मियों ने एनआउंटर में मार गिराया था।
संसद की सुरक्षा हुई और अधिक पुख्ता
हमले के बाद संसद की सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक पुख्ता बनाया गया। इसके तहत दिल्ली पुलिस की क्विक रेस्पांस टीम के अलावा छतां पर स्नाइपर लगाए गए। इसके अलावा आतंक निरोधी दस्तों की क्षमता को बढ़ा दिया गया। संसद में जाने के रास्ते पर हाईटेक इक्यूपमेंट पर करीब 100 करोड़ रुपये खर्च किये गये। साथ ही संसद में प्रवेश के नियमों को सख्त कर दिया गया।