युवाओं को मिल रहा तकनीकी इनोवेशन का मौकाय, दिखा रहे अपने कौशल का कमाल

 टेक्नोलॉजी की मदद से समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं देश के किशोर-युवा।

2020 युवाओं में नवअन्वेषण को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी शिक्षण संस्थानों के साथ-साथ केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा भी बीते तीन वर्षों से राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता ‘स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन’ का आयोजन किया जा रहा है।

नई दिल्‍ली,  दिल्ली के पंचशील पार्क स्थित एपीजे स्कूल के 12वीं के स्टूडेंट हैं अंश आहूजा और आकांक्षा रानी। अंश जहां बायोलॉजी में रुचि रखते हैं,वहीं आकांक्षा को टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि में दिलचस्पी है। लेकिन दोनों ने एक समूह के रूप में हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) एवं आइबीएम द्वारा आयोजित‘ हैकाथॉन-एआइ फॉर बेटर इंडिया’ में अपने प्रोजेक्ट ‘हेल्थहब’ के लिए पहला पुरस्कार हासिल किया है।

इस प्रोजेक्ट के बारे में अंश बताते हैं,‘हम सभी जानते हैं कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की क्या स्थिति है। इसलिए हमने ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों को ध्यान में रखकर एक किट (प्रोटोटाइप) तैयार किया है, जिसमें एआइ की मदद से अस्पताल गए बिना शरीर के तापमान एवं अन्य लक्षणों से बीमारी व उसके कारणों का पता लगाया जा सकता है। इसके बाद मरीज की विस्तृत जानकारी किसी विशेषज्ञ डॉक्टर को भेजी जाती है, जो उन्हें जरूरी दवाएं व इलाज की जानकारी देते हैं।’

आकांक्षा के अनुसार, किट में इमेज रिकॉग्निशन तकनीक एवं सेंसर्स लगे हैं,जिससे एक व्यक्ति अपना तापमान एवं अन्य लक्षण उसमें दर्ज कर सकता है। अंश कहते हैं कि इससे पहले उन्हें एआइ के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं थी। लेकिन प्रोजेक्ट करने एवं हैकाथॉन में शामिल होने के बाद थोड़ी दिलचस्पी जगी है। आत्मविश्वास आया है। कम्युनिकेशन स्किल विकसित हुई है। आकांक्षा की मानें,तो इस तरह के प्लेटफॉर्म से स्टूडेंट अपनी स्किल्स को और निखार सकते हैं। जैसे,मुझे वन बिलियन फाउंडेशन द्वारा आयोजित एआइ वर्कशॉप से बहुत कुछ सीखने को मिला था। वह इस प्रतियोगिता में काफी काम आया।

स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन की शुरुआत : दोस्तो, वर्ष 2017 में पहली बार तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय) के इनोवेशन सेल और ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन ने कुछ निजी संगठनों के साथ मिलकर ‘स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन’ का आयोजन शुरू किया था। यह एक राष्ट्रव्यापी पहल है, जो छात्रों को दैनिक जीवन एवं विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली समस्याओं का हल निकालने के लिए मंच प्रदान करता है। ये समस्याएं केंद्रीय विभागों, राज्य मंत्रालयों और उद्योगों की ओर से साझा की जाती हैं। स्टूडेंट्स का समूह अपनी इच्छानुसार किसी एक समस्या (आइडिया) पर काम कर उसका समाधान निकालने की कोशिश करता है। कोविड-19 की वजह से इस साल इसका चौथा संस्करण वर्चुअली आयोजित किया गया। इस बार केंद्र सरकार के 37 विभागों, 17 राज्यों की सरकारों एवं 20 उद्योगों की करीब 343 समस्याओं का हल निकालने के लिए देशभर के 40 नोडल सेंटर्स के जरिए दस हजार छात्रों ने स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन में हिस्सा लिया था।

तकरीबन 36 घंटे चले इस हैकाथॉन (सॉफ्टवेयर एडिशन) के अंत में दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया की इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी फैकल्टी की ‘टीम मॉन्क्स’ (एनएस 275 प्रॉब्लम स्टेटमेंट में) विजेता रही। छह सदस्यीय इस टीम को एक लाख रूपये का इनाम भी मिला। ‘टीम मॉन्क्स’ के सदस्य रहे कंप्यूटर इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर के छात्र गौरव चौधरी बताते हैं, ‘हमने बिहार सरकार के कृषि विभाग की ओर से रखी गई दो समस्याओं का हल निकालने की कोशिश की। पहली समस्या थी कि फसल के उत्पादन को कैसे बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि राज्य को हर वर्ष बाढ़ की समस्या से जूझना पड़ता है। उससे फसल का काफी नुकसान होता है। दूसरा मुद्दा था, लैंड यूजेज सिस्टम डेवलप करना ताकि वन क्षेत्र, नदियों-जल स्रोतों, सूखा एवं बाढ़ प्रभावित व रिहायशी इलाकों की सही जानकारी हो। साथ ही, प्रभावी तरीके से भविष्य के लिए योजनाएं बनाई जा सकें।’

फसल उत्पादन को लेकर भविष्यवाणी : इस बारे में गौरव आगे बताते हैं, ‘सैटेलाइट के माध्यम से लाखों की संख्या में मिलने वाली तस्वीरों से जरूरी डाटा निकाला जा सकता है। लेकिन उसका विश्लेषण नहीं हो पाता। हमारी टीम ने गूगल अर्थ से नासा के सैटेलाइट द्वारा भेजे गए पिछले 30 वर्षों के डाटा (तस्वीरों) की एनालिसिस से पता लगाया कि किसी खास क्षेत्र में कितनी हरियाली है, कितनी सूखी जमीन है और कितने जल स्रोत हैं? इससे यह भी जानकारी मिली कि उस क्षेत्र में कितना उत्पादन हुआ है। इसके बाद हमने ‘कॉन्वोल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क’ (सीएनएन) मॉडल की मदद से तमाम फैक्टर्स (क्षेत्र के तापमान, बारिश, आ आदि) का पता लगाया और उससे कृषि उत्पादन को लेकर एक भविष्यवाणी की। जब हमने उस नतीजे को बिहार सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध वर्ष 2018 के आंकड़े से मिलाया, तो उसमें 95 प्रतिशत से अधिक की समानता थी यानी हम आंकड़ों एवं एआइ से पता लगा सकते हैं कि भविष्य में किसी खास क्षेत्र में कितना उत्पादन होगा। उसके अनुसार, सरकार अपनी योजना बना सकती है।’

मॉन्क्स टीम की तैयारी एवं जीत के बारे में गौरव ने बताया कि, ‘स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन’ में शामिल होने से पहले कॉलेज में एक हैकाथॉन आयोजित कर टीम का चयन किया गया था। करीब दो महीने आइडिया (समस्या का समाधान निकालना) पर काम किया, जिसमें मेंटर्स ने भी गाइड किया। तीन दिनों के फाइनल इवेंट में हर दिन दो सत्र हुए, जिसके लिए अंक निर्धारित थे। छह घंटे में काम पूरा करने पर अंक मिले, वरना नहीं। इस दौरान मेंटर्स के अनुसार, प्रोजेक्ट में आवश्यक सुधार भी करने पड़े। आखिरी दिन फाइनल प्रेजेंटेशन हुआ, जिसमें उन्होंने समस्या का समाधान पेश किया।

आइओट की मदद से निकला वॉटर ट्रीटमेंट सॉल्यूशन : सॉफ्टवेयर श्रेणी में जहां जामिया के छात्रों ने परचम लहराया, वहीं हार्डवेयर श्रेणी की विजेता रही सलेम स्थित सोना कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की टीम। इसने इंटरनेट ऑफ थिंग्स की मदद से मैग्नेटाइजेशन आधारित ऐसा ‘वॉटर ट्रीटमेंट सॉल्यूशन’ विकसित किया है, जिससे बिना खाद के प्रयोग के किसान अपनी कृषि उपज को बढ़ा सकेंगे। इस तकनीक से किसान न सिर्फ कम पानी में खेती,बल्कि अपने बोरवेल के पानी को भी स्वच्छ कर सकेंगे। क्योंकि बोरवेल से निकलने वाले हार्ड वॉटर से मिट्टी की उर्वरक क्षमता नष्ट होती है। पौधों को उसे सोखने में मुश्किल होती है।

विजेता टीम में सिविल इंजीनियरिंग के मणिमोलिसेल्वन सी, दिनेश कुमार, मणिकंदन एस, लोकेश्वर एस के अलावा कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग की फाइनल ईयर स्टूडेंट कुंजमश्वेता एवं इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग की सुवेता एस शामिल थीं। टीम के सदस्य दिनेश कुमार ने बताया कि कृषि में बोरवेल के पानी का अधिक इस्तेमाल होता है। लेकिन इससे होने वाली स्केलिंग (लाइमस्केल डिपॉजिशन) पौधों एवं मिट्टी को नुकसान पहुंचाती है। अगर किसी तरह हार्ड वॉटर के खनिज तत्वों को छोटे टुकड़ों में विभाजित कर दिया जाए, तो पौधे उसे आसानी से ग्रहण कर पाएंगे। मैग्नेटाइजेशन आधारित ‘वॉटर ट्रीटमेंट सॉल्यूशन’ से ऐसा करना

संभव होगा।

एआइ से अजंता गुफाओं की म्यूरल्स का री-स्टोरेशन : कुछ समय पहले सोनीपत स्थित ऋषिहुड यूनिवर्सिटी ने इंटरनिटी फाउंडेशन एवं सेपियो एनालिटिक्स के साथ मिलकर‘टेक4हेरिटेज हैकथॉन’किया था,जिसमें विभिन्न आइआइटी एवं एनआइटी की 50 से अधिक टीमों ने भाग लिया था। इस प्रतियोगिता को संस्कृति मंत्रालय ने भी समर्थन दिया था। हैकाथॉन की विजेता रही आइआइटी रुड़की के छात्रों की टीम‘एंशेंट एआइ’। इसमें स्टूडेंट्स ने एक ऐसा एआइ एवं मशीन लर्निंग आधारित समाधान निकाला था,जिससे किसी भी प्राकृतिक आपदा के बाद अजंता गुफाओं के म्यूरल्स को री-स्टोर किया जा सकता है। री-स्टोरेशन से कम से कम एक हजार वर्ष बाद भी लोग इसे देख पाएंगे। ऋषिहुड यूनिवर्सिटी के सह-संस्थापक साहिल अग्रवाल कहते हैं कि हमने प्रतियोगिता इसलिए आयोजित की, ताकि स्टूडेंट्स में जागरूकता आए। वे अपने ज्ञान एवं नवअन्वेषण से सार्थक सामाजिक बदलाव ला सकें। इस हैकाथॉन में शामिल होने वाली टीमों ने डाटा एवं रेफरेंस पेंटिंग्स की मदद से एआइ मॉडल्स बनाए,जिससे म्यूरल्स को री-स्टोर करना आसान होगा। विजेताओं को कैश प्राइज के अलावा सेपियो एनालिटिक्स की हेरिटेज टीम के साथ भी काम करने का अवसर मिलेगा। यह कंपनी देश के अलावा ब्रिटेन के प्रोजेक्ट्स को हैंडल करती है।

हैकाथॉन से मिलता है एक्सपोजर : हैकर वन के सिक्योरिटी एनालिस्ट शशांक कुमार ने बताया कि केंद्र के अलावा अलग-अलग राज्यों के कॉलेजों एवं तकनीकी शिक्षण संस्थानों द्वारा कंपनियों के सहयोग से भी हैकाथॉन आयोजित किए जाते हैं। मेरे कॉलेज, वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में यह नियमित रूप से होता रहा है, क्योंकि इससे स्टूडेंट्स को काफी प्रैक्टिकल एक्सपोजर मिलता है। दो या तीन दिनों के इवेंट के दौरान छात्रों के समूह को ऑन द स्पॉंट सॉल्यूशंस निकालने होते हैं। इसमें अलग-अलग ब्रांच के स्टूडेंट्स साथ मिलकर काम करते हैं। सबकी अपनी विशेषता एवं विशेषज्ञता होती है, तो उनसे भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

रियल वर्ल्ड की प्रॉब्लम्स का हल निकालने का मौका : दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के फाइनल ईयर (कंप्यूटर इंजीनियरिंग) के गौरव चौधरी ने बताया कि स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन से स्टूडेंट्स को हो रहे फायदे की बात करें, तो हमें रियल वर्ल्ड की प्रॉब्लम्स पर काम करने, नया सीखने व इनोवेट करने को मिल रहा। अगर हम अपने मॉडल को और विकसित करना चाहते हैं, तो इनाम राशि से ऐसा कर पाना संभव है। दूसरा, हमें अनुभवी मेंटर्स से अपने मॉडल को बिजनेस मॉडल या स्टार्ट-अप में तब्दील करने की संभावनाओं की जानकारी मिलती है। इसके अलावा, सबके लिए प्रतियोगिता खुली रहने से तमाम तकनीकी शिक्षण संस्थानों व इंजीनियरिंग कॉलेजों के छात्रों को भी अपना कौशल दिखाने का अवसर मिल रहा है।

स्टूडेंट्स ने छह महीने में निकाला समाधान : सलेम के सोना कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ सिविल इंजीनियरिंग की डीन (आरऐंडडी) एवं प्रोफेसर डॉ. आर. मालती ने बताया कि आइओटी आधारित एवं यूजर फ्रेंडली सिस्टम हमारे प्रोजेक्ट की विशेषता रही। करीब छह महीने में स्टूडेंट्स की टीम ने उनके सामने पेश की गई समस्या का समाधान निकाला। इसके लिए सबसे पहले उपयुक्त चुंबक का चयन किया गया, जिससे विभिन्न स्थानों पर पानी के बोरवेल बनाए जा सके। इस पद्धति से जल की खपत के साथ खाद एवं कीटनाशकों पर किसानों की निर्भरता को भी कम किया जा सकता है। इसकी देखरख पर भी कोई खर्च नहीं आएगा। मिट्टी में खनिज तत्व भी बरकरार रह सकेंगे।

स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन

वर्ष 2017 में पहली बार केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय) के इनोवेशन सेल और ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन ने कुछ निजी संगठनों के साथ मिलकर ‘स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन’ का आयोजन शुरू किया था। यह एक राष्ट्रव्यापी पहल है, जो छात्रों को दैनिक जीवन एवं विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली समस्याओं को हल करने के लिए मंच प्रदान करता है। ये समस्याएं विभिन्न राज्य सरकारों, केंद्रीय संगठनों, मंत्रालयों एवं औद्योगिक घरानों द्वारा केंद्र सरकार को सौंपी जाती है। तत्पश्चात हैकाथॉन के आयोजनकर्ता चुनिंदा समस्याओं को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करते हैं। वहीं से शिक्षण संस्थाएं इसे प्रोजेक्ट के रूप में लेती हैं।