सुप्रीम कोर्ट के J&K High Court को निर्देश- आम आदमी को राहत देने पर 21 दिसंबर तक लें फैसला

 सरकारी जमीनों पर बढ़ते कब्जे को देखते हुए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई थी


सरकार ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में नौ अक्टूबर 2020 के फैसले पर पुर्नविचार करने के लिए एक याचिका भी दायर की है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट को 21 दिसंबर से पूर्व इस पुर्नविचार याचिका पर फैसला लेने के निर्देश दिए।

जम्मू, संवाददाता: रोशनी एक्ट को खारिज करने पर पुर्नविचार करने व इस कानून के तहत सरकारी जमीन का मालिकाना अधिकार पाने जम्मू-कश्मीर के आम आदमी को राहत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट को 21 दिसंबर तक फैसला लेने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने रोशनी एक्ट खारिज करने के जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिए। इस निर्देश के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब वह इस मामले पर जनवरी 2021 में सुनवाई करेगा।

जस्टिस एनवी रमाना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश हुए सोलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने खंडपीठ को मौखिक विश्वास दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वालों के खिलाफ सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। मेहता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर सरकार रोशनी एक्ट के तहत सरकारी जमीन का मालिकाना अधिकार पाने वाले आम आदमी के खिलाफ नहीं है।

सरकार चाहती है कि हाईकोर्ट के फैसले से आम आदमी प्रभावित न हो और इसके लिए सरकार ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में नौ अक्टूबर 2020 के फैसले पर पुर्नविचार करने के लिए एक याचिका भी दायर की है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट को 21 दिसंबर से पूर्व इस पुर्नविचार याचिका पर फैसला लेने के निर्देश दिए।

यहां बता दे कि वर्ष 2001 में तत्कालीन सरकार ने रोशनी एक्ट बनाकर कब्जे वाली सरकारी जमीनों के लोगों को मालिकाना अधिकार देने का फैसला लिया था लेकिन समय-समय पर इस कानून में संशोधन करके भू-माफिया को सहयोग दिया गया जिससे आम लोगों तक इसका फायदा पहुंचने की बजाय भू-माफिया, नेताओं-मंत्रियों व प्रभावशाली लोगों ने इसका फायदा उठाया।इस कानून की आड़ में सरकारी जमीनों पर बढ़ते कब्जे को देखते हुए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई थी और पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने इस कानून को खारिज कर दिया। उसके बाद नौ अक्टूबर 2020 को हाईकोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपते हुए सारी सरकारी जमीन को लाभार्थियों से वापस लेने का निर्देश दिया।