ऐतिहासिक स्थलों पर संबोधन, एक का अहोम समुदाय व दूसरे का आजादी के आंदोलन से नाता

 

देश की सबसे कम उम्र की 12 वर्षीय शहीद तिलेश्वरी बरुआ व अन्य की याद में स्मारक। फाइल फोटो

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में असम में दो स्थानों पर जनता को संबोधित किया। दोनों ऐतिहासिक स्मारक स्थल हैं। जेरेंगा पोथार में 17 वीं शताब्दी की अहोम राजकुमारी ने अपने जीवन का बलिदान दिया था। ढेकियाजुली का नाता वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से है।

नई दिल्ली, जेएनएन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल जनवरी और फरवरी माह में असम में जिन दो स्थानों पर जनता को संबोधित किया, दोनों ही ऐतिहासिक स्मारक स्थल हैं। जेरेंगा पोथार, जहां 17 वीं शताब्दी की अहोम राजकुमारी जॉयमती ने अपने जीवन का बलिदान दिया था। वहीं, दूसरे स्थल ढेकियाजुली का नाता वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ा हुआ है। असम का ढेकियाजुली संभवत: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे कम उम्र की शहीद का गृहनगर है। 20 सितंबर, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के हिस्से के रूप में असम के कई शहरों में स्वतंत्रता सेनानियों के दस्ते ने विभिन्न पुलिस स्टेशनों तक जुलूस निकाला। ये दस्ते मृत्यु वाहिनी के नाम से जाने जाते थे।

महिलाओं और बच्चों की व्यापक भागीदारी थी। इनका काम था अंग्रेजों के शासन काल में औपनिवेशिक सत्ता के प्रतीक के रूप में देखे जाने वाले पुलिस स्टेशनों पर तिरंगा फहराना। इस वाहिनी पर ब्रिटिश पलटन ने गोलियां चलाई तो गोहपुर और ढेकियाजुली में कई लोग शहीद हुए। इतिहास खंगाले तो यह प्रमाण मिलता है कि इस आंदोलन में देश की सबसे कम उम्र की स्वतंत्रता सेनानी 12 वर्षीय तिलेश्वरी बरुआ भी शहीद हुई थी। आंदोलन में किसान और चाय बागान श्रमिक शामिल हुए थे। दस्तावेज के अनुसार गोलीबारी में 15 लोग मारे गए थे लेकिन 11 नाम ही मिलते हैं।

1940 के दशक में असम की महिलाएं सामने आईं

स्थानीय जानकारों के अनुसार असम के इतिहास के दस्तावेज, वर्ष 1940 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम में असम की भागीदारी तेज हुई। और यही समय था जब बहुत सारी महिलाएं सामने आई थीं। क्योंकि सविनय अवज्ञा आंदोलन तक महिलाओं की भागीदारी सीमित थी इसलिए वे स्थानीय और छोटे आंदोलनों में भूमिका निभा रहीं थी। कनकलता बरूआ, पुष्पलता दास, तिलेश्वरी बरुआ उन्हीं की प्रतीक हैं।

ऑल असम फ्रीडम फाइटर्स एसोसिएशन का आरोप है किइस बलिदान को भुला दिया गया। अभी तक किसी ने भी इस घटना पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन उनके प्रयास से जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है। वर्ष 1975 में एक शहीद स्मारक बनाया गया था। हाल ही में इस पर दो किताबें लिखी गई हैं। कुछ समय पहले ही ढेकियाजुली पुलिस स्टेशन को विरासत का दर्जा दिया गया।

जॉयमती का बलिदान

जॉयमोती..17वीं सदी की असम की राजकुमारी। वर्ष 1671 से 1681 के बीच यहां कई अयोग्य राजाओं का शासनकाल रहा। जब गदापानी सत्ता में आए और असम पर पूर्ण और मजबूती के साथ नियंत्रण किया। सत्ता को बचाने के लिए गदापानी को छिपना पड़ा। आतातायी गर्भवती पत्नी जॉयमती को उठा ले गए। 14 दिन तक भीषण यातनाएं दीं लेकिन उसने कोई जानकारी नहीं दी। आखिकार उसकी मौत हो गई। जॉयमती के बलिदान से ही असम में पुनर्जागरण आया।