पैरोल पर छोड़े जाएं जेलों में बंद कैदी, संविधान ने सभी को दिया है जिंदगी जीने का अधिकार

संविधान ने सभी को जिंदगी जीने का हक दिया है और यह संविधान कैदियों पर भी लागू होता है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्च स्तरीय कमेटी ने जेलों में बंद कैदियों को 90 दिन या आठ सप्ताह के लिए पैरोल और जमानत पर छोड़ने की सिफारिश की है। वरिष्ठ नागरिक और सिविल मुकदमों में बंद कैदियों के अलावा 10 साल से ज्यादा सजा काट चुके कैदियों को प्राथमिकता है।

 संवाददाता, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्च स्तरीय कमेटी ने जेलों में बंद कैदियों को 90 दिन या आठ सप्ताह के लिए पैरोल और जमानत पर छोड़ने की सिफारिश की है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा है कि पिछले साल के मुकाबले इस हालात ज्यादा भयानक हैं। विशेषज्ञ और डॉक्टरों को भी यह मानना है कि कोविड-19 का मौजूदा स्ट्रेन जानलेवा है। ऐसे में संविधान ने सभी को जिंदगी जीने का हक दिया है और यह संविधान कैदियों पर भी लागू होता है।

कमेटी ने कहा कि इस साल फरवरी में आखिरी बैठक की थी और तब से लेकर अब तक हालात 360 डिग्री तक बदल चुके हैं। ऐसे में जेलों में भीड़ कम करना बेहद जरूरी है। इसलिए करीब चार हजार विचाराधीन कैदियों को जेलों से बाहर लाना होगा। पूरे देश के साथ-साथ राजधानी में हालात बेकाबूू हो चुके हैं और ऐसे में हमारा फर्ज बनता है कि हम संविधान का सम्मान करते हुए एक-एक जान बचाने का प्रयास करें। कमेटी ने पाया कि अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो संकर्मण दर बेकाबू है और मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। इसलिए कमेटी ने कैदियों को 10 श्रेणियों में बांटा है। इनमें वरिष्ठ नागरिक और सिविल मुकदमों में बंद कैदियों के अलावा 10 साल से ज्यादा सजा काट चुके कैदियों को प्राथमिकता दी गई है। कमेटी ने पाया इस संबंध में जेल महानिदेशक ने दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर कैदियों को छोड़ने की अनुमति मांगी है, जिसका जवाब आते ही अगली कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।