
यदि कोई परिचित बनकर फोन करे और कुछ राशि जमा करने के लिए आपके बैंक खाते की जानकारी मांगे तो सावधान हो जाएं। यह फोन किसी साइबर अपराधी का भी हो सकता है जो ठगी की राशि जमा करने के लिए आपके बैंक खाते का उपयोग करना चाहता है।
भोपाल। यदि कोई परिचित बनकर फोन करे और कुछ राशि जमा करने के लिए आपके बैंक खाते की जानकारी मांगे तो सावधान हो जाएं। यह फोन किसी साइबर अपराधी का भी हो सकता है, जो ठगी की राशि जमा करने के लिए आपके बैंक खाते का उपयोग करना चाहता है। इसके लिए वह आपको रिश्तेदार या परिचित होने का झांसा देता है। खाते में राशि आने का लालच या रिश्तों के झांसे में आना, दोनों ही स्थितियां अनजाने में आपको अपराधी बना सकती हैं।
हाल के दिनों में बढ़ी घटनाएं
यदि कोई यह सोचता है कि एक बार खाते में राशि आने के बाद लौटाएंगे नहीं तो भी वह जांच के दौरान पुलिस की गिरफ्त में आ सकता है। बीते कुछ माह से लोगों के पास इस प्रकार के फोन आ रहे हैं, जिसमें परिचित होने का दावा करते हुए बात शुरू की जाती है। इस दौरान लोगों का भरोसा हासिल किया जाता है। जिनसे बात की जाती है, उन्हें नाम लेकर संबोधित किया जाता है। यह नाम अपराधियों को ट्रू कॉलर जैसे एप से पता चल जाता है।
ऐसे बनाते हैं शिकार
ठग नाम के साथ रिश्तों का संबोधन लगाते हुए झांसा देते हैं कि वह उनके किसी रिश्तेदार के पति या भाई हैं। बताया जाता है कि किसी तकनीकी गड़बड़ी के कारण वह अपने बैंक खाते में किसी से राशि नहीं ले पा रहे हैं, आप अपना खाता नंबर दे दें। यदि व्यक्ति झांसे में आ जाता है तो उसके खाते में राशि ट्रांसफर कर दी जाती है। बाद में उनसे किसी और खाते में यह राशि जमा करवा ली जाती है। राज्य साइबर सेल के पास ऐसे कई मामले आ चुके हैं। खाते में जमा होने वाली राशि भी असामान्य या बड़ी नहीं होती, इसलिए बैंकों को भी शक नहीं होता।
अनजान बैंक खातों के पीछे यह हकीकत
इस तरीके से किसी बैंक खाते में जमा की जाने वाली राशि वह होती है, जो साइबर अपराधी किसी और के खाते से निकालते हैं। इस प्रक्रिया के कारण राशि के ट्रांजेक्शन में एक ऐसी कड़ी जुड़ जाती है, जिसका अपराध से सीधा संबंध नहीं होता। व्यक्ति राशि आने से किसी नुकसान का अनुमान नहीं लगा पाता, लेकिन राशि आने का लालच या रिश्तों के झांसे में वह अपराध का हिस्सा बन जाता है।
साइबर पुलिस जब इन मामलों की जांच करते हुए ऐसे लोगों तक पहुंचती है, तब उन्हें अपराध में शामिल हो जाने की जानकारी मिलती है। साइबर विशेषज्ञ शोभित चतुर्वेदी ने बताया कि अपराधी कई चरण में राशि का ट्रांजेक्शन करते हैं। इससे पुलिस की जांच लंबी हो जाती है। ऐसे किसी व्यक्ति तक पुलिस पहुंच भी जाती है तो उसे कुछ हासिल नहीं होता है। यह पुलिस को लंबे समय तक उलझाने का भी एक तरीका है।
किसी को ना दें व्यक्तिगत जानकारी
मध्य प्रदेश साइबर सेल के पुलिस अधीक्षक डा. गुरकरण सिंह का कहना है कि फोन के माध्यम से चर्चा कर बैंक खातों में राशि जमा करने के मामले सामने आए हैं। लोगों को सावधान रहना चाहिए। किसी को भी व्यक्तिगत जानकारी न दें, यह अपराधियों से लिंक कर देता है। जो लोग यह सोचते हैं कि एक बार राशि आ जाए तो फिर लौटाएंगे नहीं, वह भी जांच के दौरान गिरफ्त में आ जाते हैं।