FacebooktwitterwpkooEmailaffiliates मप्र में किसानों ने खेतों में भरा पानी निकालने को अपनाई रिवर्स प्रेशर तकनीक, जानें क्‍या हुआ फायदा

 


मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के किसान
मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के 6 गांवों के 50 से अधिक किसानों ने एक अनूठी तरकीब अपनाई। इससे उन्हें दो फायदे हुए। पहला खेतों में भरा पानी कम हो गया और दूसरा सिंचाई के लिए जिस बोरवेल से उन्होंने पानी लिया था वह धरती को लौटा दिया।

  ग्वालियर। दस दिन पहले तक मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए बारिश का इंतजार कर रहे थे। धान की बोवनी में देरी न हो जाए इसलिए बोरवेल के पानी से फसल लगा ली, लेकिन फिर मानसून ऐसा मेहरबान हुआ कि खेतों में आवश्यकता से अधिक पानी जमा हो गया। खेतों में दो से तीन फीट तक पानी भर गया और इसे न निकालने पर पौध खराब होने की आशंका पैदा हो गई। ऐसे में जिले के आधा दर्जन से अधिक गांवों के 50 से अधिक किसानों ने एक अनूठी तरकीब अपनाई। इससे उन्हें दो फायदे हुए। पहला, खेतों में भरा पानी कम हो गया और दूसरा, सिंचाई के लिए जिस बोरवेल से उन्होंने पानी लिया था, वह धरती को लौटा दिया। इसमें विज्ञान के एक सिद्धांत ने मदद की।

jagran

पानी निकालना संभव नहीं दिख रहा था

श्योपुर जिले में पिछले एक सप्ताह तक काफी बारिश हुई। खेतों में दो से तीन फीट तक पानी जमा होने से सोयाबीन और उड़द की फसल खराब हो गई। धान की फसल भी डूब गई। हर तरफ पानी होने से खेतों से पानी उलीचना भी संभव नहीं था। तरकीब लगाई गई। जहां पानी भरा था, वहां पाइप रखकर उसे बोरवेल से जोड़ा गया। फिर 10 मिनट के लिए पंप चालू किया, जिससे जमीन के पानी से बोरवेल और पाइप पूरा भर गया और अंदर की हवा बाहर निकल गई। इसके बाद बोरवेल बंद कर दिया गया। विज्ञान के एक सिद्धांत ने काम शुरू कर दिया। खेत का पानी विपरीत दिशा में बोरवेल में जाने लगा। इस तरह खेतों से अतिरिक्त पानी बोरवेल के माध्यम से भूगर्भ में चला गया। बोरवेल में मिट्टी या अन्य कचरा न जाए इसलिए किसानों ने पाइप के एक सिरे पर छलनी लगा दी।

इन गांवों के किसानों ने अपनाई यह तकनीक

श्योपुर जिले के सोईंकला क्षेत्र के चिमलका, बगडुआ, कांचरमूली और जावदेश्वर क्षेत्र के गांवों में करीब पचास से अधिक किसानों ने यह तकनीक खेत खाली करने के लिए अपनाई। बलजिंदर सिंह, हरजिंदर सिंह, गुरदीप सिंह, सरबजीत सिंह, मुख्त्यार सिंह, सुखदेव सिंह, हर्षदीप सिंह देवीमेला, सुल्तान मीणा, भगत मीणा, कर्म सिंह, गुलाब सिंह, राजेश सिंह सहित 50 से ज्यादा किसान बोरवेल के माध्यम से पानी भूगर्भ में पहुंचा रहे हैैैं। अधिकांश किसान सिख समुदाय से जुड़े हैं और करीब 10-15 साल पहले पंजाब से इस इलाके में खेत खरीदकर यहीं बस गए। इन्होंने यहां खेती में कई नवाचार किए हैं।

jagran

इस तरह आया विचार

चिमलका गांव के बुजुर्ग किसान हरजिंदर सिंह अपने खेतों में सिंचाई के लिए बोरवेल के पास बैठे थे। उन्होंने अपने बेटे से पंप चालू करने को कहा। पानी आना शुरू ही हुआ था कि बिजली गुल हो गई। हरजिंदर सिंह का एक हाथ पाइप के दूसरे सिरे पर था, वह पानी के वापस लौटने की वजह से अंदर खिंचता हुआ महसूस हुआ। यहीं से उन्हें विचार आया कि रिवर्स प्रेशर से पानी भी भीतर जा सकता है। यही तरकीब उन्होंने खेतों में भरे पानी को धरती को लौटाने में अपनाई।

jagran

हजारों बीघा धान की फसल पानी में डूब चुकी थी। प्रशासन को कई बार अवगत कराया पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। हमने ही इस समस्या से निजात पाने का रास्ता निकाला। इससे एक पंथ दो काज हो गए।

-गुरदीप सिंह, किसान, चिमलका, श्योपुर, मध्य प्रदेश