अगले साल मई से शुरू हो जाएगा एनडीए में महिलाओं का दाखिला, रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया

 

अगले साल मई से शुरू हो जाएगा एनडीए में महिलाओं का दाखिला।
रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि महिला उम्मीदवारों को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में प्रवेश परीक्षा में बैठने की अनुमति देने वाली अधिसूचना अगले साल मई तक जारी की जाएगी। महिला उम्मीदवारों का एनडीए के माध्यम से तीनों रक्षा सेवाओं में प्रवेश के लिए विचार किया जाएगा।

नई दिल्ली, पीटीआइ। रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि महिला उम्मीदवारों को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में प्रवेश परीक्षा में बैठने की अनुमति देने वाली अधिसूचना अगले साल मई तक जारी की जाएगी। मंत्रालय ने कहा कि समय-सीमा को ध्यान में रखते हुए महिला उम्मीदवारों के निर्बाध प्रवेश और प्रशिक्षण सुनिश्चित करने के लिए योजना और सावधानीपूर्वक तैयारी की आवश्यकता है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया कि भारत सरकार अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप अपने स्पष्ट करता है कि महिला उम्मीदवारों का राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के माध्यम से तीनों रक्षा सेवाओं में प्रवेश के लिए विचार किया जाएगा। एनडीए प्रवेश परीक्षा साल में दो बार आयोजित की जाती है और सरकार का प्रस्ताव है कि मई 2022 तक आवश्यक तंत्र तैयार हो जाए, जिस समय तक यूपीएससी को परीक्षा के लिए अगले साल पहली अधिसूचना प्रकाशित करनी होगी।

सशस्त्र बलों ने महिलाओं को एनडीए में शामिल करने का फैसला किया

इसमें कहा गया कि रक्षा सेवाओं द्वारा एक अध्ययन समूह का गठन किया गया है, जिसमें एनडीए में महिला कैडेटों के लिए व्यापक पाठ्यक्रम को तेजी से तैयार करने के लिए विशेषज्ञ शामिल हैं। केंद्र ने पहले सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सशस्त्र बलों ने महिलाओं को एनडीए में शामिल करने का फैसला किया है।

एनडीए के माध्यम से महिलाओं को स्थायी कमीशन में शामिल किया जाएगा

केंद्र की ओर से पेश एडिशनल सालिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया था कि सशस्त्र बलों के साथ-साथ सरकार के उच्चतम स्तर पर भी निर्णय लिया गया है कि एनडीए के माध्यम से महिलाओं को स्थायी कमीशन में शामिल किया जाएगा। वकील कुश कालरा द्वारा दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था, जिसमें योग्य और इच्छुक महिला उम्मीदवारों को लिंग  के आधार पर प्रतिष्ठित एनडीए में शामिल न करने का मुद्दा उठाया गया था। इसे समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया गया था।