नए वर्ष में पहले की तरह ही अनेक चुनौतियां हमारे समक्ष आएंगी परंतु यह हम पर निर्भर करता है कि हम प्रगति तथा विकास के लिए उन्हें अवसरों में कैसे बदल पाते हैं। ये सोचना गलत है कि सब सरकार को ही करना है।
नई संभावनाओं के साथ देश नए वर्ष में प्रवेश कर चुका है। वैश्विक महामारी कोरोना का जिस तरह से हमारे देश की सरकार, विज्ञानियों और डाक्टरों ने मुकाबला किया है, उसकी पूरी दुनिया सराहना कर रही है। कई बड़े-बड़े देश आज भी इस महामारी के संकट से जूझ रहे हैं। ऐसे में एक साल के भीतर कोरोना का टीका विकसित करके और एक अरब से भी अधिक लोगों को इसे लगाकर हमने दुनिया को अपनी सामर्थ्य और प्रबंधन की क्षमता का उदाहरण प्रस्तुत कर हैरत में डाल दिया है।
रक्षा क्षेत्र से लेकर अवसंरचनात्मक ढांचा विकास के कई क्षेत्रों में जिस तेजी से आज देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है, उससे भी दुनिया के कई देश हैरान और परेशान हैं। कुछ देशों को भारत की इस प्रगति ने चिंता में डाल दिया है और वे देश हमारे यहां अशांति पैदा करने के लिए तरह तरह के षड्यंत्र रचते रहते हैं।
वास्तव में भारत एक सुप्त महाशक्ति है। यदि वह जाग जाए तो विश्व की अर्थव्यवस्था को गहरे रूप से प्रभावित कर सकता है। इतिहास इस बात का गवाह है कि भारत दुनिया में चुनिंदा सभ्य तथा संपन्न देशों में से एक था। आज भारत के पास विशाल पैमाने पर कुशल और दक्ष मानव संसाधन है। सरकार की योजनाओं तथा कार्यक्रमों के कारण मानव संसाधन का बड़े पैमाने पर विकास हुआ।
लेकिन हमारे देश में लोग सोचते हैं कि सब कुछ सरकार करेगी। हमें समझना होगा कि दुनिया की कोई भी सरकार सबको रोजगार नहीं दे सकती है। अपने देश में आजादी है, परंतु जिम्मेदारी और व्यवस्था की भावना नहीं है। अधिकांश सार्वजनिक स्थलों और वाहनों में हम मनमाने ढंग से व्यवहार करते हैं। निर्धारित व्यवस्था का पालन कम ही करते हैं। इसमें परिवर्तन की आवश्यकता है।
जहां तक बात आगे बढ़ने की है तो इस दशक के अंत तक विकसित भारत के स्वप्न से ही एक सकारात्मक आंदोलन शुरू हो सकता है। सौभाग्य से ज्ञान युग के उद्भव के साथ भारत स्वयं को एक अत्यंत लाभकारी स्थिति में पाता है, क्योंकि यह शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और शासन में सामाजिक परिवर्तनों को प्रेरित करेगा। यह परिवर्तन बड़े पैमाने पर रोजगारों, उच्च उत्पादकता, उच्च राष्ट्रीय विकास, कमजोर वर्गो के सशक्तीकरण, समन्वित तथा पारदर्शी समाज और ग्रामीण समृद्धि को प्रोत्साहित करेगा।
बौद्धिक युग के दौरान भारत का गौरव फिर लौटकर आएगा, क्योंकि भारत के पास सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकियों और बौद्धिक कार्यकर्ताओं की क्षमताएं हैं। राष्ट्र निर्माण के इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमें अपनी क्षमता का पूरा लाभ उठाना होगा। भारत को मुख्यत: आर्थिक शक्ति से सशक्त बनाया जा सकता है। आर्थिक शक्ति प्रतिस्पर्धा से आएगी और प्रतिस्पर्धा ज्ञान से उत्पन्न होती है। ज्ञान को प्रौद्योगिकी से समृद्ध करना होता है और प्रौद्योगिकी को व्यवसाय से शक्ति प्राप्त होती है।
व्यवसाय को नवीन प्रबंधन से शक्ति मिलती है और प्रबंधन नेतृत्व से प्रबल होता है। नेतृत्व की क्या विशेषताएं होती हैं? एक नेता न केवल एक कमांडर होता है, बल्कि वह एक स्वप्नद्रष्टा, एक सहयोगी और एक विचारक होगा। संयोग से यह क्षमता आज हमारे देश के नेतृत्व में है। ज्ञान युग के आरंभ में भारत सही स्थान पर है। हमें इस अवसर को खोना नहीं चाहिए।
सपने विचारों को प्रेरित करते हैं और विचार कार्य में परिणत होते हैं। विकसित भारत के लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रत्येक नागरिक के सहयोग की आवश्यकता है। प्रज्ज्वलित युवा मस्तिष्क लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शक्तिशाली इंजन का काम करते हैं। युवाओं का अदम्य उत्साह, राष्ट्र निर्माण की क्षमता और रचनात्मक नेतृत्व भारत को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ और विश्व में सही स्थान दिला सकते हैं। हमारे पास प्राकृतिक संसाधन भरपूर मात्र में उपलब्ध हैं, लेकिन हम उनका लाभ नहीं उठाते।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपने उत्पादों को बेचने की आक्रामक प्रवृत्ति का भारतीय उद्यमियों में अभाव है। हम इसके बजाय ‘अमेरिका, ब्रिटेन या विदेश में निर्मित’ से प्रभावित हैं। हमें भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहित करना चाहिए और उनका प्रभावपूर्ण तरीके से विपणन करना चाहिए। हमें अपनी जैव विविधता को भी पहचानना चाहिए और उन्हें पेटेंट कराना चाहिए। साथ ही हमें बढ़ती जनसंख्या के संकट पर भी एक निगाह रखनी चाहिए, क्योंकि मात्र में वृद्धि गुणवत्ता में कमी को प्रेरित करेगी।
भारत के पास विशाल उर्वर भूमि है। अनाज के उत्पादन में हम दूसरे स्थान तथा फल के उत्पादन में पहले स्थान पर हैं। लेकिन उत्पादकता (उपज प्रति हेक्टेयर) के संदर्भ में हम 45वें स्थान पर हैं। हमें उच्च पोषण तथा गुणवत्तावाले खाद्यान्न उपजाने की आवश्यकता है। हमें नवीन खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल द्वारा कृषि उत्पादों में मूल्य-संवर्धन करना चाहिए। जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी सुधार हो सकता है। भारत के पास औषधीय जड़ीबूटियों की संपदा है और जैव प्रौद्योगिकीविदों को इन संसाधनों को मानव जाति के लिए उपयोगी बनाने के लिए इनका लाभ उठाना चाहिए।
सड़कों तथा बिजली द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की कनेक्टिविटी आवश्यक है।
सरकार यह काम कर भी रही है। सूचना प्रौद्योगिकी हमारी मुख्य क्षमताओं में
एक है और हमें उसे बड़े पैमाने पर विकसित करना चाहिए। इस दशक के अंत तक
विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक बौद्धिक समाज के रूप में
अपनी क्षमता का लाभ उठाना चाहिए।