हाथ का साथ पुराने कांग्रेसियों के गले की फांस बनता नजर आ रहा है। शायद इसीलिए एक-एक करके नेता अपना हाथ इससे छुड़ाते जा रहे हैं। इसी कड़ी में अब पूर्व निगम पार्षद अंजू सहवाग भी कांग्रेस को अलविदा कह गईं।
नई दिल्ली ]। भले ही विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता आपस में लड़ते-झगड़ते नजर आते हों, लेकिन समाज के लिए इन्हें एक होते भी देर नहीं लगती। अग्रवाल वैश्य समाज का वार्षिक उत्सव और आमसभा की बैठक का आयोजन हुआ तो कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी.. तीनोों के नेताओं को अतिथि बनाया गया। कांग्रेस से पूर्व सांसद जयप्रकाश अग्रवाल, आम आदमी पार्टी से दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल और भाजपा से हरियाणा के विधायक नरेंद्र गुप्ता ने भी शिरकत की। सभी ने न केवल मंच साझा किया, बल्कि आपस में भी बहुत ही गर्मजोशी से मिले। तीनों के बीच गुफ्तगू भी होती नजर आई। आयोजन के दौरान रामनिवास गोयल ने जयप्रकाश अग्रवाल को शाल और स्मृति चिह्न् देकर सम्मानित भी किया। अब इसे व्यापारियों के मुद्दों के प्रति गंभीरता कहें या फिर वोट बैंक की चिंता.. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इस दौरान परस्पर विरोधी दलों के नेताओं का व्यवहार भी आत्मीय रहा।
फिर छूट एक हाथ
हाथ का साथ पुराने कांग्रेसियों के गले की फांस बनता नजर आ रहा है। शायद इसीलिए एक-एक करके नेता अपना हाथ इससे छुड़ाते जा रहे हैं। इसी कड़ी में अब पूर्व निगम पार्षद अंजू सहवाग भी कांग्रेस को अलविदा कह गईं। क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग की बहन अंजू ने झाड़ू थाम ली। पार्टी छोड़ने के पीछे उन्होंने भी कांग्रेस के लगातार कमजोर होते जाने को अहम कारण बताया। हालांकि, कहा यह भी जा रहा है कि कांग्रेस के टिकट पर वह आगामी नगर चुनाव में अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं थीं। इसी कारण समय रहते उस पार्टी में चली गईं जहां उन्हें टिकट और जीत को लेकर कहीं ज्यादा संभावना दिखाई दीं। हालांकि, हर चुनाव से पहले चलाचली की यह बेला चलती ही है, लेकिन जिस तेजी से नेता हाथ का साथ छोड़ रहे हैं, पार्टी पदाधिकारियों को एक बार गंभीरता से विचार कर कोई उपाय कारगर अवश्य करना चाहिए।
पड़ोस में चुनाव, दिल्ली के कांग्रेसियों को मिला काम
दिल्ली के ज्यादातर कांग्रेसी काफी लंबे समय से ‘बेरोजगार’ चल रहे थे। पड़ोस के राज्यों पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव आए तो उन्हें भी काम मिल गया। नेताओं को उनके कद के अनुरूप इन राज्यों में जिम्मेदारी देकर भेजा जा रहा है। मसलन, चांदनी चौक से पूर्व विधायक अलका लांबा को पंजाब में मीडिया को-आर्डिनेटर नियुक्त किया गया है तो तीन पूर्व जिलाध्यक्षों इंद्रजीत सिंह, हरीकिशन जिंदल और मो. उस्मान को उत्तराखंड में एआइसीसी पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया है। इसी तरह उत्तर प्रदेश और पंजाब के लिए भी पर्यवेक्षकों की सूची तैयार की जा रही है। नई जिम्मेदारी पाकर कांग्रेस के ये नेता भी खुश हैं। वजह, यहां पर इन्हें कोई पूछ नहीं रहा था, जबकि वहां इन्हें खूब मान-सम्मान मिल रहा है। निष्क्रिय नेताओं को सक्रिय करने के साथ-साथ अगर आलाकमान दिल्ली में संगठन की मजबूती के लिए भी कोई दांव चल सके तो बेहतर होगा।
अब ब्लाक अध्यक्षों की बारी
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी के नेतृत्व में पहले जंबो
प्रदेश कार्यसमिति और फिर जिला अध्यक्षों की सूची में फेरबदल सामने आया तो
अब ब्लाक अध्यक्षों को लेकर भी गहमागहमी शुरू हो गई है। चर्चा है कि ब्लाक
अध्यक्षों की नई सूची जल्द घोषित की जा सकती है। हालांकि, पहले कहा जा रहा
था कि इस सूची को ऊपर से रोक दिया गया है, लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि
बहुत जल्द यह सूची भी सामने आ जाएगी। वैसे इस सूची के बाद भी रूठने-मनाने
का दौर तो खैर चलना ही है, लेकिन इसी के साथ प्रदेश अध्यक्ष के नाम रिकार्ड
बनना भी तय है। राजनीतिक जानकारों की सलाह है कि सिर्फ पदाधिकारी बनाना
पर्याप्त नहीं, संगठन को हर स्तर पर सक्रिय करना और जनता के बीच मजबूत पैठ
बनाना भी आवश्यक है। संगठन और आमजन का साथ ही हाथ की पकड़ को कहीं ज्यादा
मजबूत कर पाएगा।