चीन में बीजिंग स्थित कैपिटल मेडिकल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और चीन की मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन की मुख्य प्रयोगाशाला के वैज्ञानिकों की ओर से तैयार किए गए मॉडल के जरिए किए गए अध्ययन में वायु प्रदूषण के चलते हाइपरटेंशन होने की संभावनाओं के बीच सीधा संबंध पाया गया।
नई दिल्ली। आप हाइपरटेंशन या हाई बीपी की बीमारी से जूझ रहे हैं, तो ध्यान रखिए इसके लिए आपकी लाइफस्टाइल के अलावा आपके शहर की प्रदूषित हवा भी जिम्मेदार है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि गंभीर वायु प्रदूषण वाले शहरों में रहने वाले लोगों में हाइपरटेंशन और हाई बीपी का खतरा अधिक होता है।
चीन में बीजिंग स्थित कैपिटल मेडिकल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और चीन की मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन की मुख्य प्रयोगाशाला के वैज्ञानिकों की ओर से तैयार किए गए मॉडल के जरिए किए गए अध्ययन में वायु प्रदूषण के चलते हाइपरटेंशन होने की संभावनाओं के बीच सीधा संबंध पाया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि किसी भी व्यक्ति को अगर कुछ समय के लिए भी गंभीर पदूषण वाली जगह पर रखा जाए तो उसका ब्लड प्रदेशन बढ़ जाता है। इस अध्ययन में बीजिंग में 1796 लोगों पर वायु प्रदूषण के प्रभावों को लगातार रिकॉर्ड किया गया। साथ ही इन लोगों पर PM2.5, PM10, NO2, CO, O3, और SO2 जैसे हवा में मौजूद प्रदूषक तत्वों के प्रभावाओं का अध्ययन किया गया। अध्ययन को और तर्कसंगत बनाने के लिए 2013 से 2018 के बीच लोगों पर प्रदूषण के असर का भी अध्ययन किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि वायु प्रदूषण में रहने से लोगों में सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर, डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर, पल्स प्रेशर और माध्य धमनी दबाव बढ़ जाता है। सांस के जरिए खून में पहुंचने वाले प्रदूषक कणों के चलते धमनियां सिकुड़ जाती हैं।
अध्ययन में पाया गया कि हवा में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर NO2 बढ़ने से व्यक्ति में 0.351 mm Hg सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। वहीं, वायु प्रदूषण के चलते पुरुषों और मरीजों में हाइपरटेंशन का खतरा काफी बढ़ गया। खुले में काम करने वाले श्रमिकों की सेहत पर हवा में NO2 बढ़ने से काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। उनमें हाइपरटेंशन और बल्ड प्रेशर का खतरा काफी बढ़ जाता है।
वायु प्रदूषण से आपके लिवर के लिए भी बढ़ा खतरा
पूरी दुनिया में फैटी लिवर रोग (एमएएफएलडी) एक बड़ी स्वास्थ्य समय बन गया। भारत में भी पिछले कुछ सालों में फैटी लिवर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि खाने पीने में अनियमितता और खराब होते लाइफस्टाइल के अलावा बढ़ता वायु प्रदूषण भी फैटी लिवर की बीमारी को तेजी से बढ़ा रहा है। यूरोपियन एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ द लिवर की आधिकारिक पत्रिका, जर्नल ऑफ हेपेटोलॉजी में छपी एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का दावा है कि वायु प्रदूषण की समस्या ने फैटी लिवर की समस्या को बढ़ावा दिया है। पूरी दुनिया में 1980 के दशक से फैटी लिवर के मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है, जो वर्तमान में वैश्विक आबादी का एक चौथाई तक पहुंच गई है। एशिया में, 2012 और 2017 के बीच तेजी से बढ़ा है। इस दौरान इसके मरीजों में लगभग 40% तक बढ़त देखी गई है लिवर की बढ़ती बीमारी से लिवर सिरोसिस और यकृत कैंसर, यकृत प्रत्यारोपण और यकृत से संबंधित मृत्यु जैसे अंतिम चरण के यकृत रोगों में भी बढ़ोतरी देखी गई है।
नवजात बच्चों को कमजोर कर रहा प्रदूषण
प्रदूषण का असर जन्म लेने के पहले ही बच्चों पर पड़ने लगता है। ये तथ्य हाल ही में साइंटिफिक जनरल eLife में छपी एक रिपोर्ट में सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, जंगल में लगने वाली आग से निकलने वाले धुएं से आसपास रहने वाली गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और उनके पैदा होने वाले बच्चे सामान्य से कहीं कम वजन के होते हैं। इस रिपोर्ट में खासतौर पर निम्न और मध्य आय वाले देशों में धुएं का पैदा होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर असर के बारे में बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, अधिक धुएं के करीब रहने वाली लगभग 90 फीसदी बच्चों के महिलाओं का वजन जन्म के दौरान सामान्य से कम रहा। रिसर्च में शामिल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जंगल की आग या पराली जैसे कृषि बायोमास जलने से निकलने वाला धुआं महंगी और बढ़ती वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या को ट्रिगर कर रहा है, जिससे प्रदूषण के बार-बार होने वाले एपिसोड ज्यादातर नवजात बच्चों के स्वास्थ्य पर असर डालते हैं।
प्रदूषण का असर किडनी पर
नई शोध रिपोर्ट में सामने आया है कि किडनी मरीजों के लिए प्रदूषण का गंभीर स्तर काफी नुकसानदायक है। रिपोर्ट के अनुसार, गुर्दे की बीमारी वाले लोगों में वायु प्रदूषण का हृदय संबंधी प्रभाव हानिकारक हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण हृदय और गुर्दे की जटिलताओं में एक बड़ा कारक है, लेकिन इसे कार्डियोरेनल घटनाओं से जोड़ने वाले तंत्र को अच्छी तरह से समझा नहीं गया है। अमेरिका में केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह आकलन करने की कोशिश की कि क्या गैलेक्टिन 3 स्तर (मायोकार्डियल फाइब्रोसिस) क्रोनिक किडनी रोग के साथ और बिना उच्च रक्तचाप वाले रोगियों में वायु प्रदूषण के जोखिम से जुड़ा है। वायु प्रदूषण का सीधा संबंध लोगों में सीकेडी के साथ मायोकार्डियल फाइब्रोसिस से है। मायोकार्डियल फाइब्रोसिस तब होती है, जब दिल की फाइब्रोब्लास्ट नामक कोशिका कोलेजेनेस स्कार टिशू पैदा करने लगती हैं। इससे दिल की गति रुकने के साथ-साथ मौत होने की भी आशंका रहती है। तारिक ने कहा कि वायु प्रदूषण को कम करने का लाभ सीकेडी पीड़ितों को होगा, क्योंकि उनमें दिल की बीमारी की खतरा कम हो जाएगा।
वायु प्रदूषण के चलते हुई इतनी बीमारियां
नेशनल हेल्थ एकाउंट डेटा के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2019 में हेल्थकेयर पर होने वाला खर्च लगभग 103.7 बिलियन डॉलर का रहा। इसमें लोगों को होने वाली बीमारियों में वायु प्रदूषण के चलते होने वाली बीमारियां लगभग 11.5 फीसदी रहीं। इन पर होने वाला खर्च लगभग 11.9 बिलियन डॉलर रहा। मेडिकल जनरल लांसेट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में लगभग एक करोड़ साठ लाख लोगों को वायु प्रदूषण के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी।
उत्पादकता पर भी असर डाल रहा प्रदूषण
सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट के विवेक चट्टोपध्याय के मुताबिक, प्रदूषण आपकी उत्पादकता को प्रभावित करता है क्योंकि अगर आप सेहतमंद नहीं होंगे तो कार्यक्षेत्र में बेहतर नहीं कर पाएंगे। विवेक कहते हैं कि वायु प्रदूषण को घटाने के लिए सरकार अगर सही कदम उठाए और इसको नियंत्रित कर सकें, तो इससे जीडीपी को होने वाले नुकसान को काफी कम किया जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ और इंटरनेशनल फोरम फार इंवायरमेंट सस्टेनेंबल एंड टेक्नोलॉजी के सीईओ चंद्र भूषण के मुताबिक दिल्ली में काफी प्रदूषण होता है। खासकर सर्दियों में लेकिन प्रदूषण पूरे देश की समस्या है। मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु और हैदराबाद में भी काफी प्रदूषण रहता है। वहीं लखनऊ, आगरा, पटना और गंगा के मैदानी इलाकों के ज्यादातर शहरों में प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। यहां तक की गांव में भी यह समस्या है। इसलिए बात अब इन सारी जगहों की होनी चाहिए न कि सिर्फ दिल्ली और शहरों की।
यही रहे हालात तो दिल्ली में नौ साल से ज्यादा कम हो सकती है उम्र
शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की एक चौथाई आबादी प्रदूषण के जिस स्तर का सामना कर रही है वैसा कोई अन्य मुल्क नहीं कर रहा। हालांकि, बीते कुछ सालों में सुधार हुए है जिसे त्वरित गति देने की आवश्यकता है। रिपोर्ट कहती है कि प्रदूषण के खौफनाक असर की वजह से देश के कई हिस्सों में लोगों की उम्र नौ साल तक हो सकती है।
शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, अगर प्रदूषण ऐसा ही रहा तो दिल्ली में 9.7 साल तक उम्र कम हो जाएगी। वहीं उत्तर प्रदेश में खराब प्रदूषण 9.5 वर्ष आयु कम हो जाएगी। बिहार में जहां इसकी वजह से 8.8 साल आयु कम हो सकती है, तो हरियाणा और झारखंड में लोगों की आयु पर क्रमश: 8.4 साल और 7.3 साल तक असर पड़ सकता है। रिपोर्ट कहती है कि दक्षिण एशिया में एक्यूएलआई आंकड़ा बताता है कि अगर प्रदूषण को डब्लूएचओ निर्देशावली के अनुसार घटा दिया जाए तो औसत व्यक्ति की आयु 5 वर्ष से अधिक बढ़ जाएगी। स्वच्छ वायु नीतियों का फायदा उत्तर भारत जैसे प्रदूषण के हॉटस्पॉट्स वाले क्षेत्रों में कहीं अधिक है जहां 480 मिलियन लोग जिस वायु में सांस लेते हैं, उसका प्रदूषण स्तर विश्व के किसी भी इलाके प्रदूषण स्तर से दस गुना अधिक है।