
आखिर श्रीलंका को यहां तक पहुंचाने में क्या चीन की कोई भूमिका है। श्रीलंका को दिवालिया बनाने में चीन क्यों दोषी है। चीन ने अमेरिका को किस तरह से अपने कर्ज जाल में फंसाया है। क्या चीन के कर्जजाल के कारण श्रीलंका दिवालिया हो गया है।
नई दिल्ली: भारत का पड़ोसी मुल्क श्रीलंका जबरदस्त आर्थिक संकट से गुजर रहा है। देश में महंगाई को लेकर जनता सड़कों पर है। महंगाई के चलते मौजूदा श्रीलंका सरकार को आम जनता का विरोध का सामना करना पड़ रहा है। श्रीलंका सरकार का कहना है कि वह पूरी तरह से दिवालिया हो गई है। आखिर श्रीलंका को यहां तक पहुंचाने में क्या चीन की कोई भूमिका है। श्रीलंका को दिवालिया बनाने में चीन क्यों दोषी है। चीन ने अमेरिका को किस तरह से अपने कर्ज जाल में फंसाया है। क्या चीन के कर्जजाल के कारण श्रीलंका दिवालिया हो गया है।
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि श्रीलंका सरकार ने स्वीकार किया है कि उनका देश विदेशी कर्ज में डूबा हुआ है। श्रीलंका ने अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए चीन, जापान और भारत से कर्ज ले रखा है, लेकिन चीन ने कठोर शर्तों पर कर्ज दे रखा है। श्रीलंका को चीन को पांच खरब अमेरिकी डालर का कर्ज पहले ही चुकाना था। इसके बावजूद श्रीलंका को एक अरब अमेरिकी डालर का अतिरिक्त कर्ज पिछले वर्ष लेना पड़ा था। चीन ने यह कर्ज अपनी शर्तों के मुताबिक दिया है। श्रीलंका ने चीन से अपनी मुद्रा के एक्सचेंज के जरिए 1.5 खरब अमेरिकी डालर हासिल किए हैं। उससे चीन की स्थिति और खराब हो गई है।
2- उन्होंने कहा कि चीन पर यह आरोप लगते रहे हैं कि वह गरीब देशों पर कर्ज का बोझ डालकर उनको अपने कर्ज जाल में फंसा रहा है। उन्होंने कहा कि गरीब मुल्कों को कर्ज देने के तौर तरीकों के चलते ड्रैगन की काफी निंदा भी हुई है। चीन पर यह आरोप लगता रहा है कि वह कूटनीतिक दांवपेच की खातिर कर्ज जाल को अपना हथियार बना रहा है। यह भी देखा गया है कि कर्ज नहीं चुका पाने की स्थिति में वह उक्त देश की संपत्तियों पर कब्जा कर लेता है। चीन की इस नीति के समर्थन में श्रीलंका का उदाहरण आम है।
3- भारत के विरोध के बावजूद चीन ने कुछ वर्ष पहले चीनी निवेश की मदद से हम्बनटोटा बंदरगाह परियोजना की शुरुआत की थी। यह परियोजना विवादों में फंस गई। इसके चलते परियोजना पूरी नहीं हो पा रही थी। अंत में वर्ष 2017 में एक समझौते के तहत इसे चीन की सरकारी कंपनियों को 99 साल की लीज पर इस बंदरगाह की 70 फीसद की हिस्सेदारी दे दी गई, तब जाकर चीन ने इसमें दोबारा निवेश शुरू किया। यह बंदरगाह भारत के सामरिक हितों के प्रतिकूल है। इसलिए भारत श्रीलंका के इस समझौते का विरोध करता रहा है।
भारत और चीन के साथ रिश्तों में संतुलन
प्रो पंत का कहना है कि श्रीलंका के साथ भारत जितना उदार हो जाए, लेकिन कोलंबो नई दिल्ली और बीजिंग के साथ रिश्तों में संतुलन बनाकर ही चलेगा। उन्होंने कहा कि श्रीलंका चीन से किनारा नहीं कर सकता है। वह किसी भी हाल में चीन के साथ अपने रिश्तों को नहीं बिगाड़ना चाहेगा, क्योंकि वह चीन और भारत को आमने सामने ही देखना पसंद करता है। इसलिए भारत को यह उम्मीद कतई नहीं करनी चाहिए कि वह चीन के मामले में भारत का साथ निभाएगा। उन्होंने कहा कि भारत अपनी नेबरहुट फर्स्ट पालिसी के तहत श्रीलंका को उदार दिल से मदद कर रहा है। यह भारतीय विदेश नीति खासकर मोदी सरकार की नीति है।
श्रीलंका में आर्थिक आपातकाल, सेना को मिली प्रमुख जिम्मेदारी
a- श्रीलंका में महंगाई चरम पर है। इसकी अर्थव्यवस्था चिंताजनक बनी हुई है। आम उपभोग की लगभग सभी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। श्रीलंका ने महंगाई दर में वृद्धि का कारण बताते हुए कहा है कि इसके चलते खाने का सामान हो या दूसरे अन्य सामान सब की कीमतों में भारी उछाल देखने को मिला है। ताजी मछली, सब्जियों और हरी मिर्च की कीमतों में सबसे ज्यादा उछाल देखा गया है। खाने की सामग्री के अलावा डीजल और पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि की वजह से अन्य चीजें भी महंगी हो गई हैं।
b- श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे देश में पहले ही आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर चुके हैं। इसमें सेना को खाद्यान्नों के वितरण के लिए विशेष अधिकार भी दिए गए हैं। सेना को अधिकार दिया गया है कि वो ये सुनिश्चित करे कि सरकार ने जो खाद्यान्न सामग्री के दर तय किए हैं, वो लोगों तक उसी कीमत पर पहुंचे। देश में गंभीर आर्थिक संकट के बीच दिसंबर, 2021 श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे का भारत दौरा महतवपूर्ण माना जा रहा है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ हुई वार्ता के बाद भारत ने सहमति जताई थी कि वो खाद्य सामग्री, दवा और अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए श्रीलंका को लाइन आफ क्रेडिट देगा।