Anangpal Tomar Dynasty दिल्ली का नाम ही नहीं इसका अस्तित्व भी राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय की देन है। तोमर वंश के राजा अनंगपाल द्वितीय ने जब महरौली इलाके के आसपास क्षेत्र को नगर के रूप में बसाया तो वह स्वर्ग के समान सुंदर क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ था।
नई दिल्ली surender Aggarwal। अनंगताल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कराने की तैयारी अब शुरू हुई है।इस ताल को दिल्ली को बसाने वाले और नाम देने वाले राजा अनंगपाल तोमर ने बनवाया था।ताल दक्षिणी दिल्ली में स्थित संजय वन में मौजूद है।मगर उपेक्षा के चलते यह बदहाल हो चुका है।यह बड़ी विडंबना है कि यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की राष्ट्रीय स्मारकों की सूची में भी शामिल नहीं है।अब इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित कराने के लिए राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण ने पहल शुरू की है। अनंगताल तोमर राजा अनंगपाल ने बनवाया था।उनके किला लालकोट की दीवारें दक्षिणी दिल्ली में कुछ स्थानों पर मिलती हैं।इसके कई जगह प्रमाण मिले हैं कि अनंगपाल ने ही इस शहर को 1052 ईसवी में बसाया था और ढिल्लिका नाम दिया था, जो धीरे धीरे दिल्ली बन गया। उज्जैन में खोदाई के दौरान मिला एक शिलापट् भी इस बात को प्रमाणित करता है। लालकोट अनंगपाल के किले का नाम था जो 1067 ईसवीं तक बनाया जाता रहा। अनंगपाल की मृत्यु 1081 ईसवी में हुई।
उन्होंने 29 वर्ष, छह माह और 18 दिल्ली पर राज किया। एएसआइ ने अनंगपाल से संबंधित प्रमाण जुटाने के लिए 1991-1994 तक संजय वन में खोदाई की थी। उस समय इन राजा से संबंधित किला के पैलेस क्षेत्र और ताल के प्रमाण मिले थे। उस समय ताल को साफ कराया गया था, पैलेस क्षेत्र में मिट्टी हटाई गई थी।एएएसआइ इस निष्कर्ष भी पहुंच गया था कि यही अनंगपाल के किले का पैलेस क्षेत्र है और तालाब है।
हैरानी इस बात की है कि किसी हिन्दू राजा से संबंधित इतनी समृद्ध संपदा मिलने के बाद भी एएसआइ चुप होकर बैठ गया।तीस साल बाद अब इसकी बदहाली दूर करने की पहल शुरू हुई है। इसकी पहल करने वाले राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण के चेयरमैन तरुण विजय कहते हैं कि यह ऐसा प्रमाण है जिसके बारे में अब किन्तु परन्तु की कोई गुंजाइश नही है।एएसआइ पैलेस क्षेत्र में खोदाई करा चुका है और वहां सब कुछ स्पष्ट हो चुका है।अनंगताल की बदहाली दूर होनी चाहिए। यह राष्ट्रीय स्मारक घोषित होगा चाहिए।
राजा अनंगपाल के किला के पैलेस क्ष्रेत्र और ताल की खोदाई करा इसे प्रमाणित करने वाले एएसआइ के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक डा बी आर मणि कहते हैं कि इस ताल और पैलेस की खोदाई कराने के बाद उनका दिल्ली से बाहर तबादला हो गया था। उनके बाद यह महत्वपूर्ण क्षेत्र बदहाल होता चला गया।उस समय भी पैलेस व ताल वाला क्षेत्र डीडीए के अधीन था। जिसे आसानी से हासिल किया जा सकता था। उन्होंने बताया कि पैलेस वाले क्ष्रेत्र के साथ ही 150 मीटर चौड़ाई और 300 मीटर के करीब लंबाई में राजा अनंगपाल से पहले के सालों से संबंधित प्रमाण भी मिले हैं।
एएसआइ के सूत्रों का कहना है कि अनंगताल को व्यवस्थित करने की कोशिश की
जा रही है। मगर अब इसे लेकर कई तकनीकी पहलू सामने आ रहे हैं। पहला तो यह है
कि ताल के अंदर और आसपास घना जंगह हो गया है। वन विभाग इसे रिज एरिया
घोषित कर चुका है। यह पूरी जमीन डीडीए के पास है। राजस्व विभाग से ताल के
बारे में जानकारी जुटाई जा रही है।ताल की माप की जानी है जिसके बाद आगे की
प्रक्रिया शुरू हो।मगर वहां पहुंचना भी कठिन हो रहा है फिर भी इसके बारे
में प्रयास जारी हैं।