Criminal Procedure Identification Bill 66% हत्या के संगीन मामलों में अपराधी साक्ष्य के अभाव में अदालत से बरी हो जाते हैं 70% डकैती के केसों में साक्ष्यों की कमी के कारण अपराधी बिना सजा पाए ही छूट जाते हैं।
नेशनल डेस्क, नई दिल्ली। तकनीक ने अगर आम आदमी के जीवन को सरल व बेहतर बनाया है तो अपराधी भी इसका प्रयोग करने में पीछे नहीं रहे हैं। कई बार वह पुलिस से आगे दिखते हैं। कारण है, पुलिस के पास अंग्रेजों के जमाने के जांच व पहचान अधिकार जिसके कारण सजा दिलाने की दर यानी कनविक्शन रेट भारत में काफी कम है। केंद्र सरकार ने बीते दिन ही आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक, 2022 संसद से पारित कराया है। यह पुलिस को तकनीक के बेहतर प्रयोग की छूट देगा। भारत में पुलिस सुधारों की बात लंबे समय से होती रही है।
अब मोदी सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है। इस विधेयक को पुलिस सुधार और अपराध नियंत्रण की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। हालांकि यह टिप आफ द आइसबर्ग यानी एक बड़े काम की शुरुआत भर है। केंद्र सरकार आने वाले दिनों में वह पुलिस की कार्यशैली व अपराध नियंत्रण को बेहतर करने के लिए कई और बड़े कदम उठाने वाली है।
इसलिए जरूरत थी इस विधेयक की
- भारत में हत्या के मामलों में सजा की दर करीब 44 और दुष्कर्म के मामलों में 39 प्रतिशत है।
- अमेरिका में अपराधों में सजा की दर 93 प्रतिशत, यूनाईटेड किंगडम में 83.6 प्रतिशत है। कनाडा में यह दर 68 प्रतिशत है।
- नया विधेयक अपराधियों की पहचान अधिनियम, 1920 का स्थान लेगा। पुलिस आदतन अपराधियों, आरोपितों और मुजरिमों के बारे में रेटिना, आइरिस स्कैन सेज्यादा डाटा जुटा सकेगी। 1920 वाले अंग्रेजों के कानून में मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसार पुलिस अधिकारियों को अपराधियों के ¨फगरप्रिंट, फुटप्रिंट और तस्वीरें लेने का प्रविधान ही था।
स्मार्ट पुलिसिंग की नई रणनीति
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में ही साफ कर दिया था कि बेहतर पुलिसिंग समय की जरूरत है।
- स्मार्ट फामरूला तैयार किया गया जिससे पुलिस का आधुनिकीकरण होना है।
- स्मार्ट यानी स्टिक्ट और सेंसिटिव, माडर्न और मोबाइल, अलर्ट और अकाउंटेबल, रिलायबल और रिस्पांसिबल, टेक्नो सैवी एंड ट्रेंड।
- इसमें टी यानी टेक्नो सैवी एंड ट्रेंड की दिशा में केंद्र सरकार ने खासतौर पर प्रयास आरंभ किए हैं और नया विधेयक इसी कड़ी में पहला सुधार है।
आगे क्या है केंद्र की योजना
- केंद्र सरकार माडल प्रिजन मैनुअल यानी आदर्श कारागार नियमावली बनाने की तैयारी में भी है।
- मैनुअल कैदियों के पुनर्वास पर जोर देगा। कैदी दोबारा अपराध की ओर न लौटें, इसमें मैनुअल सहायक हो सकता है।
- मैनुअल का एक हिस्सा जेल अधिकारियों के अधिकार नियंत्रित करने पर भी होगा।
- दरअसल यह कानून अंग्रेजों के समय के हैं और अब समाज, व्यवस्था और तकनीक में बहुत परिवर्तन हो चुका है।
अगली पीढ़ी के सुधारों की तैयारी भी
- केंद्र सरकार अगली पीढ़ी यानी नेक्स्ट जेन क्राइम और क्रीमिनल से निपटने के लिए नेक्स्ट जेन पुलिसिंग की भी तैयारी में है।
- अत्याधुनिक फोरेंसिक लैब और इससे संबद्ध विशेषज्ञों की सीमित संख्या के सापेक्ष आपराधिक मामलों की संख्या बहुत अधिक होती है। इसे दूर करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से देश में फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय स्थापित करने की तैयारी है।
- स्मार्ट पुलिसिंग के लिए केंद्रीय गृह मंत्रलय में एक ‘मोडस आपरेंडी’ ब्यूरो स्थापित करने की भी तैयारी है। इसका उद्देश्य अपराध के बदलते चलन को समझना और उसके हिसाब से पुलिसिंग की रणनीति तय करना है।
- भारतीय दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में भी संशोधन और सुधार के लिए सरकार तैयारी कर रही है।
- कुल मिलाकर आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक,2022 भारत को बेहतर कानून व्यवस्था और अपराध मुक्त समाज बनाने की तरफ केवल शुरुआत भर है। इस दिशा में आगे बहुत कुछ होगा।
विदेश में ऐसे हो रहा तकनीक का प्रयोग
- फेसबुक ने कुछ समय पहले आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग करते हुए बाल नग्नता से जुड़े करीब नब्बे लाख चित्र केवल तीन माह में खोजकर गुमशुदा व शोषित बच्चों से संबंधित अमेरिकी केंद्र को सौंपे।
- अमेरिका में बड़ी संख्या में कानून प्रवर्तन एजेंसियां दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा विकसित एल्गोरिदम का प्रयोग कर रही हैं। जो इंटरनेट व डार्क वेब में देह व्यापार के विज्ञापनों में दर्ज जानकारी के माध्यम से मानव तस्करी और देह व्यापार के पीड़ितों तक पहुंचने में मदद करता है। यह अब तक 2.5 करोड़ से अधिक पेज खंगाल चुका है और इतना सफल है कि अमेरिकी रक्षा विभाग इसे अवैध हथियार, ड्रग्स और नकली सामान के मामलों की जांच में प्रयोग के लिए जांच रहा है।
- यूनाईटेड किंगडम में पुलिस एक साफ्टवेयर की परीक्षण कर रही है जो किसी आरोपित के मोबाइल फोन की जांच कर सुबूत जुटाने में सहायता करता है। यह फोटो और बातचीत के पैटर्न का अध्ययन, चेहरों का मिलान और कई अन्य डिवाइस से क्रास रिफरेंस डाटा निकालकर बताता है कि कैसे एक संदिग्ध समूह ने बातचीत की है। इससे थाईलैंड में मानव तस्करी में शामिल अधिकारियों, तीन पुलिस अधिकारियों और एक सेना के जनरल की पहचान की जा चुकी है।
झारखंड की पूर्व पुलिस महानिदेशक निर्मल कौर ने बताया कि अपराध अन्वेषण और सुनवाई की प्रक्रिया में वैज्ञानिक साक्ष्य फूल प्रूफ होते हैं। अभी तक पुलिस के पास साक्ष्य जुटाने के अधिकार सीमित थे। अब इस कानून के माध्यम से जांच अधिकारी अपराधियों का डाटाबेस तैयार कर सकेंगे। जैविक नमूने जुटा सकेंगे। इससे निश्चित ही देश में अपराधियों को सजा दिलाने की दर बढ़ेगी। यह कानून स्वागत योग्य है।