
जैसा नाम वैसा काम ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है लेकिन अलीगढ़ में कृष्णा की बात ही अलग है। कृष्ण जन्माष्टी के पैदा हुई कृष्णा गऊ सेवा में ऐसी रंगी कि उसे बाहरी दुनिया से कोई मतलब ही नहीं। हर वक्त गायों की सेवा में लगी रहती है।
अलीगढ़, संवाददाता। नाम कृष्णा और काम गऊ सेवा।
जैसा नाम है, वैसा ही गुण है। गांधीवाड़ा की कृष्णा गुप्ता अपने नाम के
अनुसार ही गऊ माता की निश्छल भाव से सेवा कर रही हैं। उनकी गोशाला में 530
से अधिक गोवंश हैं। मगर, गोशाला में आलीशान व्यवस्था है। गऊ माता के लिए
कूलर-पंखे लगे हुए हैं। चारे-पानी की उत्तम व्यवस्था है। अधिक गोवंश होने
के चलते डबल मंजिल गोशाला का निर्माण कराया गया है। गोशाला में तमाम गोवंश
गोस्तकरों से बचाकर लाए गए हैं, जिनके कई गंभीर रूप से घायल भी हैं, उनके
लिए बकायदा ओपीडी की भी व्यवस्था है, जहां नियमित पशुचिकित्सक उनका इलाज भी
करते हैं।
जन्माष्टमी के पैदा हुईं कृष्णा
कनवरीगंज के गांधीवाड़ा निवासी कृष्णा गुप्ता का जन्म जन्माष्टमी के दिन हुआ था। इसलिए माता-पिता ने उनका नाम कृष्णा रख दिया। नाम के अनुसार ही उनके अंदर बचपन से ही गऊ माता के प्रति प्रेम जागृत हो गया। उनकी दिनचर्या में गायों को रोटी खिलाना और सेवा करना शामिल हो गया। कृष्णा गुप्ता 2009 में नगला मसानी स्थित पंचायती गोशाला गई थीं। वहां उस समय मात्र 27 गोवंश थे। गऊ माताएं काफी जर्जर अवस्था में थीं। चारे-पानी सभी का अभाव दिख रहा था। कृष्णा की आंखों से आंसू बह निकलें। उसी समय संकल्प लिया कि इन गऊ माता की वह पूरे तन-मन-धन से सेवा करेंगी। इसके बाद वह गोशाला की स्थिति सुधारने में लग गईं।
कट्टी से बचाया गोवंश
कृष्णा गुप्ता बताती हैं कि 2010 के समय गोस्तकर बड़ी मात्रा में सक्रिय थे। ट्रकों में गोवंश को भूसे की तरह भरकर कट्टीघरों के लिए ले जाया जाता था। सूचना मिलने पर वह गोशाला के पदाधिकारियों के साथ पहुंचती थीं और उन्हें छुड़ाकर ले आती थीं। गाड़ियों में गोवंश की स्थिति देखकर आंखे भर आती थी। गोशाला लाकर चारे-पानी और इलाज की व्यवस्था कराती थी। नगर निगम भी घायल गायों को लाकर छोड़ देता है, उसकी भी देखरेख की जाती है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में 550 के करीब गोवंश हैं। घनी आबादी में होने के चलते जगह की कमी है। इसलिए दो साल पहले गोशाला को डबल मंजिल बनवाया गया। 50 के करीब गोवंश गंभीर रूप से घायल है। इनमें से तो कुछ की आंखे तक नहीं हैं, इनके लिए ओपीडी की भी व्यवस्था की गई है। कृष्णा गुप्ता बताती हैं कि गोशाला का प्रति महीने का खर्च डेढ़ लाख से भी अधिक का है। मगर, टीम के साथ वह जब निकलती हैं तो लोग मदद को तैयार हो जाते हैं।