बायोमास से ईंधन बनाने में मददगार होगा आईआईटी मंडी का यह शोध

 

कैटालिस्ट का विकास देश में जैव ईंधन इंडस्ट्री के लिए शुभ संकेत

पानी के साथ बायोमास कचरे (इस मामले में संतरे के छिलके) को गर्म कर प्राप्त होता है। इसमें हाईड्रोथर्मल कार्बोनाइजेशन की प्रक्रिया होती है। इस कंवर्जन में बतौर उत्प्रेरक हाईड्रोचार का उपयोग अधिक लाभदायक है क्योंकि इसकी रासायनिक और भौतिक संरचना बदल कर उत्प्रेरक क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

नई दिल्ली। आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने संतरे के छिलके से प्राप्त हाइड्रोचार का बतौर कैटालिस्ट उपयोग कर बायोमास से उत्पन्न रसायनों से बायोफ्यूल प्रीकर्सर बनाया है। इस शोध से बायोमास से ईंधन विकसित करने में मदद मिलेगी जो गिरते पेट्रोलियम भंडार के चलते सामाजिक राजनीतिक अस्थिरताओं को दूर करने के लिए समय की मांग है। शोध टीम के निष्कर्ष ग्रीन केमिस्ट्री जनरल में प्रकाशित हुए हैं। शोध के प्रमुख स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज, आईआईटी मंडी के एसोसिएट प्रोफेसर डा. वेंकट कृष्णन है और इसके सह लेखक छात्रा तृप्ति छाबड़ा और प्राची द्विवेदी है।

देश में प्राकृतिक पदार्थों के बायोमास से उत्पन्न ऊर्जा वर्तमान में कोयले, तेल और प्राकृतिक गैस के बाद चौथा सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा का स्रोत ह जो ऊर्जा की मांग पूरा करने में सक्षम है। उदाहरण के तौर पर जंगल और खेती के अवशेषों से प्राप्त लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास को विभिन्न विधियों से विभिन्न उपयोगी रसायनों में परिवर्तित किया जा सकता है।

इन विधियों से बायोफ्यूल बनाने में उत्प्रेरक (कैटालिस्ट) की भूमिका अहम है क्योंकि ये प्रक्रियाएं न्यूनतम ऊर्जा लगा कर की जा सकती है और सही प्रकार के उत्प्रेरक और प्रतिक्रिया की परिस्थितियां चुन कर इस पर नियंत्रण रखा जा सकता है कि बायोमास से प्राप्त उत्पाद किस प्रकार का होगा। शोध के बारे में वेंकट कृष्णन ने बताया कि अक्षय ऊर्जा पर कार्यरत समुदाय के लोग दिलचस्पी के क्षेत्रों में से एक बायोमास को ईंधन सहित उपयोगी रसायनों में बदलने के लिए अधिक स्वच्छ और अधिक ऊर्जा सक्षम प्रक्रियाओं को लेकर काफी उत्साहित है।

बायोमास कंवर्जन (ऊर्जा में बदलने) का सबसे सरल और सस्ता उत्प्रेरक हाईड्रोचार पर शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया है। यह आमतौर पर पानी के साथ बायोमास कचरे (इस मामले में संतरे के छिलके) को गर्म कर प्राप्त होता है। इसमें हाईड्रोथर्मल कार्बोनाइजेशन की प्रक्रिया होती है। इस कंवर्जन में बतौर उत्प्रेरक हाईड्रोचार का उपयोग अधिक लाभदायक है क्योंकि इसकी रासायनिक और भौतिक संरचना बदल कर उत्प्रेरक क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

शोधकर्ताओं ने बायोमास से प्राप्त रसायनों को बायोफ्यूल प्रीकर्सर में बदलने के लिए बतौर उत्प्रेरित संतरे के छिलके से प्राप्त हाईड्रोचार का उपयोग किया है। इसमें सूखे संतरे के छिलके के पाउडर को साइट्रिक एसिड के साथ हाइ़ड्रोचार को अन्य रसायनों के साथ ट्रीट किया गया ताकि इसमें एसिडिक सल्फोनिक, फॉस्फेट और नाइट्रेट फंक्शनल ग्रुप आ जाएं।

तृप्ति बताती है कि हमने फ्यूल प्रीकर्सर उत्पन्न करने के लिए इन तीन प्रकार के उत्प्रेरकों का उपयोग लिग्नोसेल्यूलोज से प्राप्त कंपाउड 2 मिथाइलफ्यूरन और फरफ्यूरल के बीच हाइड्रोक्सिलकेलाइजेशन एल्केलाइजेशन (एचएए) प्रतिक्रियाओं के लिए किया। वैज्ञानिकों ने सल्फोनिक कार्यात्मक हाइड्रोचार कैटालिस्ट को इस प्रतिक्रिया को उत्प्रेरित करने में प्रभावी पाया जिससे अच्छी मात्रा में बायोफ्यूल प्रीकर्सर पैदा हो सकता है।

डा. वेंकट कृष्णन ने कहा कि हम बिना साल्वेंट और तापमान कम किए बिना बायोफ्यूल प्रीकर्सर सिंथेसाइज करने में सफल रहे। इससे प्रक्रिया की कुल लागत कम होगी और यह पर्यावरण अनुकूल और उद्योग के दृष्टिकोण से आकर्षक होगा।

यह तीन प्रकार के एसिडिक फंक्शनलाइजेशन का आकलन करता हुआ पहला तुलनात्मक अध्ययन है। शोधकर्ताओं ने ग्रीन मीट्रिक कैलकुलेशन और टेंपरेचर प्रोग्राम्ड डिजॉर्प्शन अध्ययन भी किया ताकि संतरे के छिलके से प्राप्त कार्यात्मक हाइड्रोचार में सल्फोनिक, नाइट्रेट और फॉस्फेट की उत्प्रेरक गतिविधि की गहरी सूझबूझ प्राप्त हो।

बायोमास कंवर्जन के लिए ऐसे कैटालिस्ट का विकास देश में जैव ईंधन इंडस्ट्री के लिए शुभ संकेत है। यह भी उल्लेख करना होगा कि हाल के सालों में भारत बायोमास से बिजली बनाने में अग्रणी देश बन गया है। 2015 में भारत ने बायोमास, छोटे जल विद्युत संयत्र और कचरे से ऊर्जा संयत्रों के माध्यम से 15 जीडब्ल्यू बिजली पैदा करने के लक्ष्य की घोषणा की।