क्‍या कहता है दिल्‍ली फायर सर्विस का नियम 27, मुंडका हादसे के लिए कैसे है जिम्‍मेदार

 

बिल्डिंग बायलॉज को बदलने की कवायद तेज होनी चाहिए

बिल्डिंग बायलॉज में जिस तरह की खामियां हैं उसको दूर किए बिना इमारतों को हादसों से नहीं बचाया जा सकता है। ये कहना है कि दिल्‍ली फायर सर्विस के पूर्व डायरेक्‍टर का। उनके मुताबिक इस बारे में कई बार बात हुई है लेकिन हुआ कुछ नहीं।

नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। दिल्‍ली के मुंडका इलाके में हुए भीषण आग हादसे जिन लोगों ने अपनों को खोया है वो कभी भी इस दिन को नहीं भूल सकेंगे। इस हादसे में अब तक 27 लोगों की जान जा चुकी है। सरकार की तरफ से इस हादसे में जान गंवाने वालों के करीबी परिजनों को मुआवजे का भी एलान किया गया है। इसके अलावा इस हादसे की मजिस्‍ट्रेट जांच के भी आदेश दिए जा चुके हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्‍या हम लोग इस तरह के हादसों से कभी कोई सबक लेंगे भी या नहीं। एक कड़वी सच्‍चाई ये भी है कि हम कोई हादसा होता है तो उस पर अफसोस जताते हैं और कुछ दिनों के बाद उसको भूल जाते हैं।

नियमों की अनदेखी 

एक हकीकत ये भी है कि पैसा कमाने की चाह में हम उन नियमों को फॉलो नहीं करते हैं जिनका किया जाना भी जरूरी होता है। इन नियमों की अनदेखी बाद में बड़े हादसे का कारण भी बनती है। दिल्‍ली फायर सर्विस के पूर्व डायरेक्‍टर डाक्‍टर जीसी मिश्रा इन हादसों के लिए बिल्डिंग बायलॉज की खामियों को बड़ी वजह मानते हैं। उनके मुताबिक इनकी खामियों को दूर करना बेहद जरूरी है। ऐसा न करने पर हादसों को रोका नहीं जा सकेगा। भले ही कितने ही सुरक्षा के उपाय कर लें।

टू स्‍टेयरकेस का प्रावधान होना बेहद जरूरी

उनके मुताबिक दिल्‍ली के फायर सेफ्टी नियमों में टू स्‍टेयरकेस का प्रावधान होना बेहद जरूरी है, जो कि हमारे बिल्डिंग नॉर्म्‍स में नहीं है। उनका यहां तक कहना है कि दिल्‍ली फायर सर्विस का रूल 27 कहता है कि 15 मीटर से कम ऊंचाई या ग्राउंड प्‍लस फोर की कमर्शियल इमारतों को दिल्‍ली फायर सेफ्टी से एनओसी लेने की जरूरत नहीं होती है। ये डीएफएस के नियम 27 के दायरे से बाहर है। इस लिहाज से ये बिल्डिंग नियमों के दायरे में नहीं आती है।

बिल्डिंग बायलॉज को बदलने पर कई बार हुई चर्चा

डाक्‍टर मिश्रा के मुताबिक बिल्डिंग बायलॉज को बदलने के लिए कई बार बात की गई थी, लेकिन इसका नतीजा कुछ नहीं निकला। मिश्रा मानते हैं कि बायलाज में ये साफ कर दिया जाना चाहिए कि ग्राउंड प्‍लस वन से अधिक की सभी बिल्डिंग्‍स में कम से कम दो सीढि़यों का प्रावधान जरूर किया जाना चाहिए। इसको सख्‍ती से लागू भी किए जाने की जरूरत है। मुंडका की जिस इमारत में शनिवार को आग लगी उसमें केवल एक ही एंट्रेंस और एक ही सीढ़ी थी। आग लगने की सूरत में  ये सीढ़ी किसी चिमनी का काम करती है। जहरीला धुआं इस सीढ़ी में भर जाता है जिससे सफोकेशन होती है और लोगों की मौत की बड़ी वजह भी बनती है।

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पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट करेगी खुलासा

उनका कहना है कि जब इस हादसे में मरे लोगों की पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट सामने आएगी तो ये बात साफ हो जाएगी कि अधिकतर लोगों की मौत की वजह जहरीला धुआं रहा है। इस रिपोर्ट का सीधा अर्थ ये है कि इमारत के अंदर आग से बचाव के कोई उपाय नहीं थे। बिल्डिंग का डिजाइन ऐसा था जिसकी वजह से धुआं इससे बाहर नहीं निकल सका। इमारत में दो सीढि़यों का और बाहर निकलने के दो अलग अलग रास्‍तों का भी कोई प्रावधान नहीं था।