
संविधान में वयस्कों को अपनी पसंद से जीवन साथी चुनने का अधिकार है। इसमें दखल देना संविधान के खिलाफ है। पिछले कुछ वर्षों से अंतरजातीय शादियों की संख्या बढ़ने से समाज में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं।
परिवार की झूठी शान के नाम पर किसी जोड़े पर अत्याचार करना और उनकी व्यक्तिगत आजादी का गला घोंटना गैरकानूनी है। इसके बावजूद देश में आनर किलिंग जैसी घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। अंतरजातीय, दूसरे धर्म में विवाह करने वाले प्रेमी जोड़े आज भी सुरक्षित नहीं हैं। हाल में गुजरात के राजकोट में 22 वर्षीय मिथुन ठाकुर की प्रेम कहानी का अंत भी निर्मम हत्या के साथ हुआ। वहीं, इससे कुछ दिन पहले तेलंगाना के हैदराबाद में बिलिपुरम नागराजू की सरेआम बीच सड़क पर हत्या कर दी गई। नागराजू हो या मिथुन इन दोनों की एक ही गलती थी कि उन्होंने प्यार करते वक्त धर्म-जाति की बनी दीवारें नहीं देखीं।
सुप्रीम कोर्ट कई बार आनर किलिंग पर तल्ख टिप्पणी कर चुका है। वर्ष 2021 में उसने कहा था कि यह हिंसा साबित करती है कि आजादी के 75 साल बाद भी देश से जातिवाद का खात्मा नहीं हुआ है। यह उचित समय है, जब समाज को अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए और धर्म-जाति के नाम पर होने वाली इस भयानक हिंसा को पूरी ताकत के साथ नामंजूर करना चाहिए।
गौरतलब है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत वयस्कों को अपनी पसंद से जीवन साथी चुनने का अधिकार है। इस अधिकार में दखल देना संविधान के खिलाफ है। जब दो वयस्क एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में चुनते हैं तो यह उनकी पसंद की एक अभिव्यक्ति है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत मान्यता प्राप्त है।
यह सर्वविदित है कि दुनिया का विकास संस्कृति के आदान-प्रदान से हुआ है, जिससे लोगों का नजरिया बदला है, लेकिन हमारे देश में आज भी समाज, रीति-रिवाज, जाति-धर्म प्रेम की राह में रोड़ा बने हुए हैं। इनकी वजह से हमारे यहां प्रेम करना आसान नहीं है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से अंतरजातीय शादियों की संख्या बढ़ने से समाज में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने भी अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए कई कारगर कदम उठाए हैं। अंतरजातीय विवाह योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रोत्साहन स्वरूप आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। वहीं विज्ञानियों ने भी अलग-अलग जाति और धर्मो के लोगों के बीच विवाह को बेहद फायदेमंद माना है।
वास्तव में भारतीय समाज आज भी सामाजिक दबाव के चलते रूढ़िवादिता की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। आज भी संकीर्ण मानसिकता वाले लोग अंतरजातीय विवाह और दूसरे धर्म में विवाह करने की इजाजत नहीं देते हैं। इसी दकियानूसी सोच के कारण कई माता-पिता अपने बच्चों को मौत की नींद सुलाने से भी गुरेज नहीं करते हैं। 21वीं सदी में देश की यह स्थिति चिंता का विषय है।