
ऋषिकेश AIIMS के एसोसिएट प्रोफेसर कम्युनिटी एंड फैमिली मेडिसिन के डा.अजीत सिंह भदौरिया ने बताया कि ऊंची पहाड़ी जगहों में ठंड तापमान व आक्सीजन की कमी के कारण हाइपोथर्मिया के साथ ही हो सकती हैं अन्य शारीरिक समस्याएं। जानते हैं कि पहाड़ों में पर्यटन के दौरान कैसे सुरक्षित रहे सेहत...
ऋषिकेश। इन दिनों उत्तराखंड में चारधाम यात्रा चल रही है, जिसमें देशभर से श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ रहा है। देखा जाए तो मैदानी इलाकों की तुलना में पहाड़ों पर यात्रा करना काफी चुनौती भरा होता है। खासकर उनके लिए, जो इसके अभ्यस्त नहीं हैं। ऐसे में उन्हें कई तरह की शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसमें हाइपोथर्मिया (अधिक ठंड में शरीर का तापमान तेजी से गिरने से होने वाली परेशानी) के अलावा हाई एल्टीट्यूड यानी ऊंचे पर्वतीय स्थानों के कारण होने वाली समस्याएं मुख्य हैं। ऐसी समस्याएं कभी-कभी गंभीर रूप धारण कर लेती है। चारधाम या अमरनाथ यात्रा करते समय यदि पहले से सावधानी बरती जाए तो काफी हद तक इन परेशानियों से बचा जा सकता है।
खतरे में पड़ सकता है जीवन:
उच्च हिमालयी क्षेत्र में होने बीमारियों में फेफड़े और मस्तिष्क संबंधी सिंड्रोम शामिल होते हैं, जो अनुकूलन के अभाव में तेजी से अधिक ऊंचाई पर चढऩे के बाद होते हैं। सबसे आम सिंड्रोम एक्यूट माउंटेन सिकनेस है, जो सामान्य तौर पर चढ़ाई के कुछ घंटों के भीतर शुरू होता है। इसमें सिरदर्द के साथ ही भूख न लगना, उल्टी, नींद में परेशानी, थकान और चक्कर आना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। अधिक ऊंचाई पर आक्सीजन का लेवल कम हो जाता है, जिससे हाइपोक्सिया हो सकता है। यहां तक कि इससे जीवन के लिए खतरा भी हो सकता है।
नदी के ठंडे पानी में स्नान से परहेज करें:
पहाड़ों पर कम तापमान में नदी के ठंडे पानी में स्नान करने से शरीर के तापमान में भी अचानक गिरावट आ जाती है। इसे हाइपोथर्मिया कहा जाता है। शरीर का न्यून तापमान (हाइपोथर्मिया) दिल, तंत्रिका तंत्र और अन्य अंगों को सदमे की स्थिति में ले जा सकता है। इससे व्यक्ति को दिल का दौरा, श्वसन प्रणाली की विफलता, यहां तक कि मृत्यु का खतरा भी हो सकता है। हाइपोथर्मिया के लक्षणों में कंपकंपी छूटना, धीमी आवाज, धीमी सांस, समन्वय की कमी और भ्रम शामिल हैं।
इन उपायों का आजमाएं:
गर्म, सूखी सिकाई(केवल गर्दन, छाती, या कमर पर। हाथ या पैरों पर नहीं) करें । सीधी गर्मी न लगाएं (कोई गर्म पानी या व्यक्ति के शरीर पर गर्म पानी की थैली न रखें)। यदि आपको संदेह है कि किसी को हाइपोथर्मिया है तो अपने स्थानीय आपातकालीन नंबर पर काल करें। साथ ही ये उपाय भी आजमाएं-
- व्यक्ति को ठंड से बाहर निकालें और हवा से बचाएं। पीडि़त को ठंडी जमीन से बचाएं। गीले कपड़ों को धीरे से हटा दें। गीली चीजों को गर्म, सूखे कोट या कंबल से बदलें।
- यदि और गरमाहट की आवश्यकता है तो इसे धीरे-धीरे दें। उदाहरण के लिए गर्दन, छाती और कमर पर गर्म, सूखी सिकाई लगाएं।
- अगर आप गर्म पानी की बोतल या किसी केमिकल वाले गर्म पैक का इस्तेमाल करते हैं तो इसे लगाने से पहले एक तौलिये में लपेट लें। व्यक्ति को गर्म व मीठा पेय पीने को दें।
- व्यक्ति को बहुत जल्दी गर्मी न दें। जैसे कि हीटिंग लैंप या गर्म स्नान का प्रयोग न करें। हाथ और पैर को गर्म करने का प्रयास न करें। इस स्थिति में अंगों को गर्म करने या मालिश करने से हृदय और फेफड़ों पर दबाव पड़ सकता है।
इन दवाओं का कर सकते हैं उपयोग:
हाइड्रेशन (पानी का भरपूर सेवन), पर्याप्त पोषण, उचित कपड़े, कपड़ों की कई परतें, धीमी चढ़ाई और पर्याप्त आराम हाइपोथर्मिया को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है। एसिटाजोलमाइड का उपयोग प्रोफिलैक्सिस (बचाव) और उच्च ऊंचाई की बीमारी के दौरान उपचार दोनों के लिए किया जाता है। इसके अलावा एस्पिरिन, पैरासिटामोल, नेफिडिपिन भी इन बीमारियों के दौरान उपयोगी दवाएं हैं। हालांकि चिकित्सक की सलाह के बाद ही इनका इस्तेमाल करना चाहिए। क्योंकि ऐसे व्यक्ति में हाइपोथर्मिया, हाइपोक्सिया और उच्च ऊंचाई की बीमारी विकसित होने का अधिक जोखिम होता है।
अधिक कैलोरी और ऊर्जा की जरूरत:
कम आक्सीजन, कम तापमान के कारण शरीर का समग्र प्रदर्शन कम हो जाता है। हमें अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है, क्योंकि पहाड़ों पर ऊर्जा का लेवल कम हो जाता है। इस स्थिति में हमें उच्च प्रोटीन और पर्याप्त वसा वाले कार्बोहाइड्रेट से भरपूर आहार की जरूरत पड़ती है। निर्जलीकरण को रोकने के लिए खूब पानी (प्रतिदिन तीन-चार लीटर) पिएं। सूखे मेवे उपयोगी भोजन साबित होते हैं। यात्रा के दौरान थकान से बचने के लिए श्रद्धालु यात्रा से छह सप्ताह पहले आयरन का सेवन बढ़ा सकते हैं।
ये लक्षण उभरें तो बरतें सावधानी:
मूत्र उत्पादन में वृद्धि, ड्राई हवा और अधिक तेजी से सांस लेने के परिणामस्वरूप ऊंचे पहाड़ी स्थानों पर शरीर में पानी की अधिक कमी होती है। निर्जलीकरण के लक्षण हैं प्यास, शुष्क मुंह, होंठ व नाक, सिर दर्द, थकान व सुस्ती, गहरी, तेज सांस, तेज कमजोर नाड़ी, चक्कर आना, तापमान में गिरावट, धंसी हुई सूखी आंखें, नीले होंठ, कम रक्त दबाव और मांसपेशियों में ऐंठन। हम न केवल भरपूर पानी का सेवन बढ़ाकर, बल्कि पानी वाले फल और सब्जियां खाकर भी डिहाइड्रेशन को रोक सकते हैं। अधिक ऊंचाई पर अपनी गतिविधियों को आसान बनाने का प्रयास करें और अल्कोहल के सेवन से बचें।
अधिक ऊंचाई पर यात्रा करने से बचें:
हृदय रोगियों को अधिक ऊंचाई पर गंभीर हाइपोक्सिया की शिकायत होना आम है। इसलिए उन्हें 4500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों की यात्रा करने से बचना चाहिए। हृदय रोग से पीडि़त व्यक्तियों को ऊंचाई पर चढऩे के बाद पहले कुछ दिनों तक शारीरिक गतिविधि सीमित कर देनी चाहिए। लक्षणों पर नजर रखें और उनके उभरने पर गतिविधि बंद कर दें।
अस्थमा रोगी ध्यान दें:
अस्थमा के रोगी उच्च ऊंचाई की यात्रा कर सकते हैं, बशर्ते उनका अस्थमा अच्छी तरह से नियंत्रित हो। एलर्जी, ठंडी हवा, हाइपोक्सिया और वायु घनत्व सहित कई पर्यावरणीय कारक अस्थमा, सांस या अन्य लक्षण फेफड़ों की बीमारी को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
कम न होने दें आक्सीजन लेवल:
यदि आक्सीजन लेवल 90 या इससे नीचे आ जाए तो इसे असामान्य माना जाता है। इसमे सांसों की कमी, अत्याधिक थकान और कमजोरी, मानसिक भ्रम की स्थिति, सिर दर्द जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं। ऐसे व्यक्ति को हवादार कमरे में रखकर और आक्सीजन देकर प्राथमिक देखभाल दी जा सकती है। इस बीच अगर हालत में सुधार नहीं होता है तो हमें नजदीकी चिकित्सा सुविधा के लिए रेफरल की योजना बनानी चाहिए।
सांस फूलने को गंभीरता से लें...
ऐसी स्थिति में चढऩा बंद कर दें और आराम करें। अगर राहत मिल जाए तो फिर धीमी गति से चढऩा शुरू कर सकते हैं, लेकिन यदि लक्षण ठीक नहीं हैं तो जल्द से जल्द चिकित्सकीय सहायता लेनी चाहिए।
डाक्टर की सलाह को न करें नजरअंदाज:
अचानक घबराहट, सीने में दर्द या सांस फूलने की स्थिति में तब तक ऊंचे स्थानों पर चढऩा बंद कर देना चाहिए, जब तक कि इस तरह के लक्षण ठीक नहीं हो जाते हैं। सिरदर्द के लिए दर्द निवारक और जलयोजन सहित सहायक देखभाल के साथ इलाज किया जाता है। अधिक गंभीर मामलों का इलाज नाक के माध्यम से दी गई आक्सीजन के साथ-साथ एसिटाजोलमाइड डेक्सामेथासोन या दोनों दवाओं के साथ किया जा सकता है। डाक्टर की सलाह के बाद ही इनका इस्तेमाल करना चाहिए। यदि लक्षण गंभीर या लगातार हैं तो पहाड़ से उतरना ही सुरक्षित होगा।
शरीर को भूगोल के अनुरूप ढालना जरूरी:
वाहिका संकीर्णन (नलियां सिकुडऩा) अधिक ऊंचाई पर हाइपोथर्मिया का प्रभाव होता है और इसे इलाज करके ठीक किया जा सकता है। ऊंचाई पर बीमार होने से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि 2500 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर धीरे-धीरे यात्रा करें। शरीर को ऊंचाई में बदलाव की आदत पडऩे में कुछ दिन लगते हैं। हेलीकाप्टर द्वारा सीधे उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक पहुंचने से बचना चाहिए। अगर संभव हो तो 2500 मीटर से ऊपर जाने से पहले उच्च ऊंचाई का अभ्यस्त होने के लिए दो से तीन दिन का समय लें। एक दिन में 500 मीटर से अधिक चढऩे से बचें। तीन से चार दिन में आराम करें। पहले 24 घंटों के लिए जोरदार व्यायाम से बचें। हल्का और उच्च कैलोरी वाला आहार लें।