फायर इंजीनियरिंग: करियर के साथ सेवा का सुख, युवाओं के लिए है बेहतर अवसर

 

आइये जानें, आग से राहत पहुंचाने में रुचि रखने वाले कैसे इस क्षेत्र में करियर बना सकते हैं...

हर साल गर्मियों में आग की घटनाओं से होने वाली क्षति को कम करने और लोगों को बचाने में फायर सेफ्टी और इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों की बड़ी भूमिका होती है जिनकी मांग सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में होती है।

नई दिल्‍ली, फीचर डेस्‍क। बढ़ती गर्मी के कारण हाल में जंगलों से लेकर शहरी क्षेत्रों तक में आग लगने की कई घटनाएं सामने आईं, जिससे जान-माल की क्षति देखी गई। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी देश में गर्मी या आग लगने की घटनाओं से होने वाली मौतों को रोकने और उससे बचाव के लिए हरसंभव कदम उठाने के संबंध में अपील की।

गर्मियों में आग लगने की घटनाएं कब और कहां हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता। यदि कहीं आग लग गई तो इसके लिए ऐसी टीम चाहिए, जो आग की किस्म, आग लगने के कारण, आग बुझाने के तरीके, आग बुझाने के सामान और आग में घिरे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने के हुनर की जानकारी रखती हो। जाहिर है यह ऐसी जानकारी नहीं है जिसे यूं ही पूछकर या पढ़कर जान लिया जाए। इसलिए इसकी बकायदा पढ़ाई कराई जा रही है, जिसमें कोर्स के दौरान ही इन सब चीजों का प्रशिक्षण दिया जाता है। ऐसे में जो लोग समाज के प्रति अपने दायित्‍वों को समझते हुए आग से होने वाली जानमाल की क्षति रोकना चाहते हैं और इसी फील्‍ड में अपने करियर को बुलंदी तक पहुंचाना चाहते हैं, उनके लिए यह एक अच्‍छा फील्‍ड हो सकता है। फायर सेफ्टी के क्षेत्र में योग्‍यता और विशेषज्ञता के अनुसार सरकारी क्षेत्र में कई तरह के पद होते हैं। निजी क्षेत्र की हाईराइज बिल्डिंग और फैक्टरियों में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

फायरमैन: फायरमैन ही वह व्यक्ति होता है जो सीधे आग से जूझता है। फायरमैन की टीम हर फायर स्टेशन में तैनात होती है।

लीडिंग फायरमैन: फायरमैन बनने के बाद विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण कर आगे चलकर लीडिंग फायरमैन के रूप में करियर बना सकते हैं।

सबआफिसर: किसी भी फायर टेंडर का लीडर सबआफिसर होता है, जिसकी कमान में फायरमैन और लीडिंग फायरमैन दोनों होते हैं। ये अधिकारी परिस्थिति का आकलन कर अपनी टीम को दिशा-निर्देश देते हैं कि किस प्रकार से कम से कम नुकसान झेलते हुए आग को बुझाया जा सके।

स्टेशन आफिसर : किसी भी फायर स्टेशन का प्रमुख स्टेशन आफिसर होता है जो न सिर्फ फायर स्टेशन की टीम को लीड करता है, बल्कि इस बात की पूरी जानकारी रखता है कि उसकी जिम्मेदारी के दायरे में आने वाले इलाके में किस तरह की इमारते हैं, फैक्ट्रियां हैं, रिहाइशी इलाका है जो आग की दृष्टि से संवेदनशील हो सकते हैं।

असिस्टेंट डिविजनल आफिसर : फायर सेफ्टी के लिहाज से पूरे राज्य को अलग-अलग डिवीजनों में बांटा जाता है और हर डिवीजन की जिम्मेदारी असिस्टेंट डिविजनल आफिसर की होती है, जो कार्य और इलाके के विस्तार के हिसाब से कई हो सकते हैं। इलाके में बनने वाली इमारतों में आग बुझाने के इंतजाम सही हैं या नहीं, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की होती है।

डिविजनल आफिसर : डिविजनल आफिसर की जिम्मेदारी भी वही होती है जो असिस्टेंट डिविजनल आफिसर की होती है और तीन असिस्टेंट डिविजनल आफिसर पर एक डिविजनल आफिसर होता है।

डिप्टी चीफ फायर आफिसर : पूरे फायर डिपार्टमेंट के समन्वय, कार्य, क्षेत्र विभाजन व अन्य प्रशासनिक जिम्मेदारियों के साथ यह सुनिश्चित करना कि पूरा फायर डिपार्टमेंट हर परिस्थिति से निपटने के लिए सक्षम है, यह काम डिप्टी चीफ फायर आफिसर जैसा अधिकारी ही देखता है।

चीफ फायर आफिसर : चीफ फायर आफिसर पूरे फायर डिपार्टमेंट का प्रमुख होता है जिसकी निगरानी, निर्देश, समन्वय और प्रेरणा से विभाग चलता है। पूरे राज्य में आग लगने की घटनाएं कम से कम हों और आग लगने पर उससे किस तरह पूरी तैयारी के साथ निपटना है, यह चीफ फायर आफिसर की लीडरशिप तय करती है।

कहां-कहां हैं अवसर: पहले सिर्फ महानगरों में फायर स्टेशन होते थे लेकिन आज हर जिले में फायर स्टेशन हैं। इसके अलावा, आज हर सरकारी और गैरसरकारी दफ्तरों में एक फायर इंजीनियर की नियुक्ति अनिवार्य कर दी गई है। फायर इंजीनियर की जरूरत अग्निशमन विभाग के अलावा आर्किटेक्चर और बिल्डिंग निर्माण, इंश्‍योरेंस एसेसमेंट, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, रिफाइनरी, गैस फैक्ट्री, निर्माण उद्योग, प्लास्टिक, एलपीजी तथा केमिकल्स प्लांट, बहुमंजिली इमारतों तथा एयरपोर्ट जैसी हर जगह है।

कार्य का स्वरूप: फायर डिपार्टमेंट से जुड़ना एक कामयाब करियर के साथ-साथ जनसेवा भी है। फायर फाइटर्स का मुख्य काम होता है आग लगने के कारणों का पता लगाना और उसे रोकने के उपायों का विश्लेषण करना। फायर फाइटिंग सिविल, इलेक्ट्रिकल व एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग से जुड़ा क्षेत्र है। मसलन आग बुझाने के यंत्रों की तकनीकी जानकारी, स्प्रिंक्लर सिस्टम, अलार्म, पानी की बौछार का सबसे स्टीक इस्तेमाल, कम से कम समय और कम से कम संसाधनों में ज्यादा से ज्यादा जान और माल की रक्षा करना ही उसका उद्देश्‍य होता है।

शैक्षणिक योग्यता: इस फील्ड के लिए जितनी जरूरत डिग्री की है, उससे ज्यादा व्यक्तिगत योग्यताओं की भी है। आग बारूद से भरे कारखानों में लग सकती है और केमिकल फैक्ट्री में भी, घनी आबादी वाले इलाकों व जंगलों में भी। ऐसे में साहस, धैर्य के साथ लीडरशिप क्वालिटी तथा तत्‍काल निर्णय लेने की क्षमता का होना जरूरी है ताकि किसी भी बड़ी दुर्घटना को नियंत्रित कर सकें। कोर्सेज की बात करें, इसमें आने के लिए 12वीं के बाद डिप्लोमा या डिग्री कोई भी कोर्स कर सकते हैं। लेकिन कुछ पदों के लिए बीई/बीटेक (फायर) की डिग्री अनिवार्य है। इसमें प्रवेश के लिए आल इंडिया एंट्रेंस एक्जाम होता है। केमिस्ट्री के साथ फिजिक्स या गणित विषय में 50 प्रतिशत अंकों के साथ बारहवीं उत्तीर्ण होना चाहिए।

शारीरिक योग्यता: शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ इस फील्ड में करियर बनाने के लिए शा‍रीरिक योग्यता भी देखी जाती है। पुरुषों के लिए न्यूनतम लंबाई 165 सेंटीमीटर, वजन 50 किग्रा होना चाहिए। वहीं महिलाएं कम से 157 सेंटीमीटर लंबी हों और उनका वजन कम से कम 46 किग्रा हो। आइ विजन दोनों के लिए 6/6 होनी चाहिए। उम्र 19 साल से 23 साल के भीतर होनी चाहिए।

कौन कौन से हैं कोर्स: इस फील्‍ड के लिए डिप्लोमा इन फायर एंड सेफ्टी, पीजी डिप्लोमा इन फायर एंड सेफ्टी, बीएससी इन फायर इंजीनियरिंग, सर्टिफिकेट कोर्स इन फायर फाइटिंग, फायर टेक्नालाजी एंड इंडस्ट्रियल सेफ्टी मैनेजमेंट, इंडस्ट्रियल सेफ्टी सुपरवाइजर, रेस्कयू एंड फायर फाइटिंग, जैसे कोर्स कराये जा रहे हैं। इनकी अवधि छह महीने से लेकर तीन साल तक है।