जमानत के बावजूद रिहाई न होने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, जानें कहां हुई चूक

 

आदेश का गलत अर्थ समझने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज (फाइल फोटो)

जमानत के बावजूद अभियुक्त की रिहाई न होने और दो साल तक जेल में रहने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई है। आंध्र प्रदेश की निचली अदालत के जज ने सुप्रीम कोर्ट के जमानत आदेश का गलत अर्थ समझ कर अभियुक्त को रिहाई नहीं दी थी।

नई दिल्ली। जमानत के बावजूद अभियुक्त की रिहाई न होने और दो साल तक जेल में रहने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई है। आंध्र प्रदेश की निचली अदालत के जज ने सुप्रीम कोर्ट के जमानत आदेश का गलत अर्थ समझ कर अभियुक्त को रिहाई नहीं दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को किया तलब

सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट से कहा है कि संबंधित जज से स्पष्टीकरण मांगे। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के ऐसे मामलों का संज्ञान लेते हुए सभी उच्च न्यायालयों से जमानत होने के बावजूद रिहाई न होने के मामलों का ब्योरा तलब किया है। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को छह सप्ताह में ब्योरा देने का निर्देश दिया है। ये आदेश न्यायमूर्ति यूयू ललित, एस रविन्द्र भट, पीएस नरसिम्हा और सुधांशु धूलिया की पीठ ने गत सप्ताह दिये। 

तीन दिन में ट्रायल कोर्ट में पेश करने के थे निर्देश

आंध्र प्रदेश के मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नौ साल से जेल काट रहे अभियुक्त गोपी सेट्टी हरिकृष्णा पर लगे आरोपों और मामले के तथ्यों को देखते हुए 28 सितंबर 2020 को उसे अंतरिम जमानत दे दी थी और उसकी याचिका पर नोटिस भी जारी किया था। उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत देते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता अभियुक्त को आदेश की तिथि के तीन दिन के भीतर ट्रायल कोर्ट में पेश किया जाए और ट्रायल कोर्ट जिन शर्तों पर उचित समझे अभियुक्त को अंतरिम जमानत पर रिहा करे।

सुप्रीम कोर्ट में खेद जताते हुए मांगा स्पष्टीकरण

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह केस बहुत ही खेदजनक स्थिति दर्शाता है। कोर्ट ने कहा कि उसने जमानत के आदेश में तीन दिन के भीतर अभियुक्त को ट्रायल कोर्ट में पेश करने की बात इसलिए कही थी ताकि प्रक्रिया जल्दी पूरी हो उसका मतलब तीन दिन की समय सीमा तय करना नहीं था जैसा कि ट्रायल जज ने समझा। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से कहा है कि वह प्रशासनिक स्तर पर इस मामले को देखे और संबंधित जज से स्पष्टीकरण मांगे।

समस्या से निपटने के लिए तय हो प्रक्रिया

पीठ ने कहा कि इस समस्या से निपटने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि एक रजिस्टर बनाया जाए जिसमें दर्ज हो कि कितने मामलों में अभियुक्तों को रिहा करने के आदेश हुए और उनमें से अगर कोई किसी भी कारण से रिहाई से वंचित रहा है तो वह दर्ज हो। उस रजिस्टर में कारण भी दर्ज किये जाएं जिसमें सुरक्षा के उचित इंतजाम आदि शामिल हो। इसके बाद उन मामलों को संबंधित अदालत में सुनवाई के लिए लगाया जाए और आदेश के बाद भी व्यक्ति रिहा नहीं हुआ यह बात रिहाई का आदेश देने वाली कोर्ट के संज्ञान में लाया जाए।

अभियुक्त ने काटी 11 वर्षों की कैद

पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों से छह सप्ताह में ब्योरा देने को कहा है और केस को 11 जुलाई को फिर सुनवाई पर लगाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने उच्च न्यायालयों और संबंधित लोगों से इस आदेश को गंभीरता से लेने को कहा है और आदेश की प्रति सभी उच्च न्यायालयों को भेजने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में दर्ज किया है कि मौजूदा मामले में अभियुक्त रिहा हो चुका है लेकिन जिस मामले में कोर्ट ने नौ वर्ष की कैद भुगतना रिहाई के लिए पर्याप्त माना था वहां अभियुक्त ने 11 वर्ष कैद काटी।