
स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय भी बढ़ा है यानी सामाजिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएं और सरकारी कर्मचारियों को की गई चिकित्सा प्रतिपूर्ति शामिल है। एक दशक से स्वास्थ्य सेवाओं पर हमारा सार्वजनिक खर्च एक प्रतिशत के आसपास ही बना हुआ है।
नई दिल्ली। विगत कुछ वषों में देश ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सुधार की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। आंकड़े इस बात की गवाही भी दे रहे हैं। 2021 में जारी नेशनल हेल्थ अकाउंट्स (एनएचए) की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि कई मानकों पर स्थिति बेहतर हुई है। सरकार की ओर से व्यवस्था में सुधार का ही परिणाम है कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर लोगों का ‘आउट-आफ पाकेट एक्स्पेंडिंचर’ 50 प्रतिशत से कम हुआ है। आउट-आफ पाकेट एक्सपेंडिचर उस खर्च को कहा जाता है, जो लोगों को अपने सामान्य बजट से इतर करना पड़ता है। रिपोर्ट 2017-18 के आंकड़ों पर आधारित है।
महिला एवं बाल स्वास्थ्य को मिले प्राथमिकता
वर्ष 2016 से 2018 के दौरान राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पर व्यय में मात्र 16 फीसद की वृद्धि हुई। प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों (जो संयुक्त रूप से जनसंख्या का एक तिहाई हैं) को कम प्राथमिकता दी गई।
राज्य सरकारों को ज्यादा अधिकार दिए जाएं
भारत में स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है और राज्य का व्यय सभी सरकारी स्वास्थ्य व्यय का लगभग 68.6 फीसद है। लेकिन केंद्र सरकार ही सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन में प्रमुख ताकत है, क्योंकि तकनीकी विशेषज्ञता वाले मुख्य निकाय उसके नियंत्रण में होते हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान देखने में आया कि ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए विभिन्न राज्यों के बीच राजकोषीय उपलब्धता अलग-अलग थी, क्योंकि प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य व्यय के मामले में उनकी भिन्न क्षमताएं हैं।
चुनौतियां भी कम नहीं
एनएचए में कुछ ऐसे बिंदु भी सामने आए हैं, जिन पर अतिरिक्त प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। इसमें सबसे बड़ी चिंता स्वास्थ्य सेवाओं के मद में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के प्रतिशत के रूप में होने वाला सार्वजनिक खर्च का बहुत कम होना है। इस मामले में हम सबसे कम खर्च करने वाले देशों में शामिल हैं।
यह भी जानें
किसी अस्पताल का निर्माण कई वषों तक लोगों की सेवा के लिए किया जाता है। जबकि इसके निर्माण पर होने वाले खर्च को उसी वर्ष के स्वास्थ्य व्यय में जोड़ लिया जाता है। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि स्वास्थ्य सेवा पर होने वाले खर्च में पूंजीगत व्यय को नहीं जोड़ना चाहिए। यदि पूंजीगत व्यय को हटा दें तो भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाला खर्च जीडीपी के मात्र 0.97 प्रतिशत पर रह जाएगा।