
Delhi Mundka Fire दिल्ली के मुडंका की चार मंजिला इमारत में आग लगने से 27 लोगों की जिंदा जलकर मौत हो गई। शव पूरी तरह से कोयला बन गए हैं और उनकी पहचान नहीं हो रही है। अभी भी कई लोग अपनों को पाने के लिए भटक रहे हैं।
नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क। मुडंका में चार मंजिला इमारत में आग लगने से 27 लोगों की जान चली गई। जबकि दर्जनों लोग घायल हैं, जिनका कई अस्पतालों में इलाज चल रहा है। आग में जान गंवाने वाले लोगों के शव कंकाल बन गए हैं और ज्यादातर लोगों की पहचान कर पाना मुश्किल हो रहा है।
इस भीषण हादसे में जिन लोगों ने अपनों को खोया है वह अभी तक पूरी तरह से नहीं पहचाने जा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक भीषण आग के कारण लोगों के जिंदा जलने से उनके शव कंकाल बन गए हैं और अब उनकी पहचान डीएनए जांच से ही संभव हो सकेगी। मुंडका अग्निकांड में 29 लोग लातपा है इनमें 27 महिलाएं व 5 पुरुष शामिल हैं। फिलहाल, एनडीआरएफ व अन्य बचाव दल घटना स्थल पर मौजूद हैं।
वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मुंडका घटना स्थल का दौरा किया। उन्होंने इस हादसे की मजिस्ट्रेटी जांच कराने के लिए आदेश दिए। इसके साथ ही कहा कि बाडी काफी क्षत विक्षत हो गई है। इसलिए एफएसएल के जरिए डीएनए की जांच कराई जाएगी। इस हादसे में जिम्मेदार अधिकारी को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा।
लोगों ने रस्सी से कूदकर बचाई जान: जिन लोगों ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी जान इस हादसे में बचाई, उनका कहना है कि जब नीचे उतरने के लिए वे सीढ़ी के पास पहुंचे तो पाया कि वहां आग की लपटें उठ रही हैं। सीढ़ी में आग और इमारत के भीतर फैले धुएं में लोग फंसे रह गए।रानीखेड़ा निवासी विमला बताती हैं कि कुछ ही दिनों पहले उन्होंने यहां काम करना शुरू किया था।
जब आग लगी थी, वे तीसरी मंजिल पर थीं। जब सीढ़ी से वे नीचे की ओर नहीं जा सकीं तो इमारत के सामने वाले हिस्से पर लगी शीशे की परत को तोड़ना शुरू किया। इस बीच स्थानीय लोगों ने कुछ जगहों पर शीशे को तोड़ा था। तभी उन्हें दमकल की हाईड्रोलिक क्रेन नजर आई। एक रस्सी इनकी ओर फेंकी गई। विमला ने हिम्मत दिखाई और रस्सी पकड़ झूल गईं।
दरअसल, इमारत में आग लगने के दौरान नांगलोई के डी ब्लाक की पूजा दूसरी मंजिल पर थी। वह दूसरी मंजिल की खिड़की पर बंधी रस्सी पकड़कर नीचे कूद गई थी। इस दौरान उनकी भांजी दृष्टि ऊपर ही थी, लेकिन वह नहीं कूद पाई। पूजा ने बताया कि चोट लगने के बाद भी उन्होंने दृष्टि के लिए करीब डेढ़ घंटा इंतजार किया, लेकिन जब दृष्टि नहीं कूदी तो वह नांगलोई गई व स्वजन को उसकी तलाश के लिए भेजा। संजय गांधी अस्पताल के बाहर दृष्टि की मां सुमिता, मामा तिलकराज दृष्टि का रातभर इंतजार करते रहे।
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- देवी
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- पूजा
- मोहिनी
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- मधु
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