सुप्रीम कोर्ट ने दी व्यवस्था, जहां अपराध घटित हुआ था वही राज्य करेगा समयपूर्व रिहाई पर फैसला, जानें पूरा मामला

 

सुप्रीम कोर्ट ने बताया है बिल्कीस बानो केस में उम्र कैदी राधेश्याम भगवानदास शाह की अर्जी पर कौन विचार करेगा...

सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दिया है कि बिल्किस बानो मामले में 15 साल की सजा काट चुके उम्र कैदी राधेश्याम भगवानदास शाह की समय पूर्व रिहाई पर गुजरात सरकार विचार करेगी या महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार...

 नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दिया है कि चर्चित बिल्कीस बानो केस में दोषी उम्र कैदी राधेश्याम भगवानदास शाह उर्फ लाला वकील की समय पूर्व रिहाई की अर्जी पर गुजरात सरकार विचार करेगी न कि महाराष्ट्र सरकार। इतना ही नहीं कैदी की समय पूर्व रिहाई के बारे में वही नीति लागू होगी जो उसे सजा सुनाए जाते वक्त गुजरात राज्य में लागू थी न कि समय पूर्व रिहाई पर विचार करते समय की नीति।सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को दोषी राधेश्याम की समय पूर्व रिहाई की अर्जी दो माह में निपटाने का आदेश दिया है। एक राज्य से दूसरे राज्य ट्रायल स्थानांतरित होने वाले मुकदमों में दोषियों की समय पूर्व रिहाई की अर्जी पर सुनवाई का क्षेत्राधिकार तय करने वाला यह अहम फैसला न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की पीठ ने गत शुक्रवार 13 मई को सुनाया है।

उम्र कैद की सजा काट रहा राधेश्याम 15 साल चार महीने कैद भुगत चुका है उसने समय पूर्व रिहाई की मांग की है। गोधरा कांड के बाद गुजरात में 2002 में हुए दंगों में बिल्कीस बानो कांड हुआ था। जिसमें दंगाई भीड़ ने बिल्कीस बानों के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था और और उसके परिवार के कई लोगों की हत्या कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले का ट्रायल अहमदाबाद से मुंबई स्थानांतरित कर दिया था। जिसके बाद मुंबई में ट्रायल चला और अभियुक्तों को सजा हुई जिसमें सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले राधेश्याम को भी दुष्कर्म और हत्या के जुर्म में उम्र कैद की सजा हुई। गुजरात हाई कोर्ट ने राधेश्याम की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि मामले का ट्रायल महाराष्ट्र में हुआ था इसलिए समय पूर्व रिहाई अर्जी महाराष्ट्र राज्य में दी जानी चाहिए न कि गुजरात में।

बिल्कीस बानो प्रकरण में ही एक अन्य दोषी रमेश रूपाभाई ने बांबे हाई कोर्ट में अर्जी देकर समय पूर्व रिहाई मांगी थी लेकिन बांबे हाई कोर्ट ने उसकी अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि अपराध गुजरात में हुआ था और विशिष्ट परिस्थितियों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल महाराष्ट्र स्थानांतरित किया था लेकिन जब ट्रायल पूरा हो गया और सजा सुना दी गई तो उसके बाद उचित जेल गुजरात की ही जेल होगी इसलिए समय पूर्व रिहाई अर्जी पर गुजरात में लागू नीति से विचार होगा।

इसके बाद राधेश्याम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कानूनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की थी। राधेश्याम के वकील ऋषि मल्होत्रा ने बहस में सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा था कि समय पूर्व रिहाई पर उस समय की नीति लागू होनी चाहिए जब राधेश्याम को सजा हुई थी न कि उस समय की जब उसकी अर्जी पर विचार किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि समय पूर्व रिहाई पर वही नीति लागू होगी जो सजा सुनाए जाते वक्त गुजरात राज्य में लागू थी। राधेश्याम के मामले में 9 जुलाई 1992 की नीति लागू होगी। कोर्ट ने इस बारे में हरियाणा राज्य बनाम जगदीश मामले में दिये पूर्व फैसले में तय की जा चुकी व्यवस्था को आदेश में उद्धत किया है।

समयपूर्व रिहाई के क्षेत्राधिकार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपराध गुजरात में हुआ और सामान्यत: कानून के मुताबिक मुकदमे का ट्रायल गुजरात में ही चलना चाहिए था परन्तु विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल छह अगस्त 2004 को महाराष्ट्र स्थानांतरित कर दिया था लेकिन ट्रायल पूरा होने और सजा सुनाए जाने के बाद दोषी को गुजरात में ही स्थानांतरित कर दिया गया जहां अपराध हुआ था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल पूरा होने और दोषी ठहराए जाने के बाद बाकी सारी कार्यवाहियां जिसमें माफी या समयपूर्व रिहिाई भी शामिल है, गुजरात की नीति के मुताबिक तय होंगी जहां अपराध घटित हुआ था न कि उस राज्य में जहां विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए ट्रायल स्थानांतरित हुआ था।