
राजस्थान निवासी किशोर तीन साल की उम्र में छत से गिर गया था। किशोर के पिता अमित कुमार ने कहा कि यह घटना हिसार में हुई थी। तब वह 15 दिन आइसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर था। डाक्टरों ने सांस की नली बनाकर किशोर को दी नई जिंदगी।
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। 10 साल से गले में पड़ी ट्यूब के जरिये सांस लेने को मजबूर 13 वर्षीय किशोर को गंगाराम अस्पताल के डाक्टरों ने नया जीवनदान दिया है। अस्पताल के डाक्टरों ने छह घंटे की सर्जरी में उस किशोर की सांस की नली बनाई और वायस बाक्स के हिस्से को भी ठीक किया। करीब डेढ़ माह पहले डाक्टरों ने यह सर्जरी की थी। अब यह किशोर न सिर्फ सामान्य तरीके से सांस लेने लगा है, करीब सात साल बाद उसकी आवाज भी लौट आई है।
डाक्टरों ने इसे दुर्लभ सर्जरी बताया है। मूलरूप से राजस्थान निवासी किशोर तीन साल की उम्र में छत से गिर गया था। किशोर के पिता अमित कुमार ने कहा कि यह घटना हिसार में हुई थी। तब वह 15 दिन आइसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर था। अस्पताल के ईएनटी विभाग के विशेषज्ञ डा. मनीष मुंजाल ने बताया कि वेंटिलेटर से बाहर आने के बाद उसके वायस बाक्स के क्रिकाइड से जुड़ी सांस की नली का चार सेंटीमीटर हिस्सा सिकुडने के कारण जाम हो गया था। इससे उसके गले में ट्यूब डाल दी गई थी, ताकि वह सांस ले सके।
गंगाराम अस्पताल के डाक्टरों के अनुसार करीब सात साल पहले किसी दूसरे अस्पताल में उसकी सांस की नली ठीक करने के लिए सर्जरी हुई थी, जो सफल नहीं हुई, तब से वह बोल नहीं पा रहा था। किशोर की सांस नली व वायस बाक्स के क्रिकाइड में खराबी होने के कारण थोरेसिक सर्जरी व ईएनटी विभाग के सर्जन की दो टीमों ने एक साथ 23 अप्रैल को उसकी सर्जरी की। थोरेसिक सर्जरी विभाग के चेयरमैन डा. सब्यसाची बाल ने कहा कि सर्जरी असफल होने की स्थिति में मौत का खतरा था, लेकिन कोई और विकल्प भी नहीं था।
सर्जरी के दौरान सांस की नली का चार सेंटीमीटर हिस्सा काटकर अलग करना पड़ा। इससे सांस नली छोटी हो गई, जिसे जोड़ना चुनौतीपूर्ण था। इसके लिए वायस बाक्स को थोड़ा नीचे लाया गया। वहीं सांस की नली के निचले हिस्से को छाती से अलग करके थोड़ा ऊपर लाया गया। इससे सांस की नली के ऊपरी व निचले हिस्से को जोड़ा जा सका।
डा. मनीष मुंजाल ने कहा कि क्रिकाइड वायस बाक्स के नीचे घोड़े की नाल के आकार की नरम हड्डी होती है। इसके दोनों तरफ नसें होती हैं, ये कटने पर किशोर कभी बोल नहीं पाता। इसलिए सर्जरी में बेहद सावधानी बरतनी पड़ी। छाती की पसलियों से नरम हड्डी लेकर क्रिकाइड बनाया गया। अब वह ठीक से बोलने लगा है और पढ़ाई भी दोबारा शुरू कर दी है।