दुनिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी बनाने का सपना, पढ़ें- तीन दोस्तों की सफलता की कहानी

मध्यप्रदेश के हरदा के रवीश अग्रवाल, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के सिद्धार्थ श्रीवास्तव और प्रयागराज के स्वतंत्र कुमार

एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 22 देशों का प्रतिनिधित्व करती इस सूची में एक नाम एबल जाब्स भी है। यह एक स्टार्टअप एप है जिसके जरिये तीन युवा इंजीनियरों ने मिलकर दो साल में 25 हजार लोगों को नौकरियां दिलवाई।

 नई दिल्ली। मशहूर पत्रिका फोर्ब्स की फोर्ब्स अंडर 30 एशिया लिस्ट 2022 का सातवां संस्करण हाल ही जारी हुआ। इसमें 30 साल से कम उम्र के 30 व्यक्तियों को सम्मानित किया गया। एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 22 देशों का प्रतिनिधित्व करती इस सूची में एक नाम एबल जाब्स भी है। यह एक स्टार्टअप एप है, जिसके जरिये तीन युवा इंजीनियरों ने मिलकर दो साल में 25 हजार लोगों को नौकरियां दिलवाई। खास बात यह है कि इस एप को बनाने वाले तीनों युवा देश के किसी सर्वसुविधा संपन्न मेट्रो शहरों से नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के हरदा, उप्र के गोरखपुर और प्रयागराज जैसे छोटे शहरों में पले-बढ़े हैैं। आइए, जानते हैैं कैसे इन युवाओं ने दो बार असफल कोशिशों के बाद सफलता की कहानी लिखी। ...और अब वे दुनिया की सबसे बड़ी युनिवर्सिटी खोलना चाहते हैैं:आए थे, ताकि प्रवेश के दौरान अभिभावकों को स्कूल का चयन करने में सुविधा हो। इसे बहुत लोकप्रियता नहीं मिली। इसी दौरान एबीटीयू इंजीनियरिंग कालेज के विद्यार्थी सिद्धार्थ श्रीवास्तव आइआइटी कानपुर के मेरे कुछ विद्यार्थियों के साथ एक स्टार्टअप पर काम कर रहे थे। इस तरह हम दोनों की पहचान हुई। सिदर्थ और स्वतंत्र दोनों एक ही कालेज से थे और एक दूसरे को जानते थे लेकिन वह दोनों भी उस वक्त अपने-अपने स्टार्टअप पर काम कर रहे। जब हमारा पहला स्टार्टअप उतना सफल नहीं रहा तो मैैंने और सिद्धार्थ ने मिलकर इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) के लिए काम करना शुरू किया। भारत की इस सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी के लिए हम लोगों ने एक एप बनाया, ताकि विद्यार्थियों को आन लाइन पाठ्यक्रम उपलब्ध हो जाए। साथ ही अपनी जिज्ञासाओं को भी शांत कर पाएं। इस प्रोजेक्ट पर काम करने के दौरान हमें विद्यार्थियों ने बताया कि उन्हें ऐसे प्लेटफार्म की जरूरत है, जो डिग्री के साथ-साथ नौकरियां भी उपलब्ध करवाए। इसके बाद हम तीनों ने नए स्टटार्टअप की योजना बनाई।

कोरोना काल से छह महीने पहला लांच किया स्टार्टअप

वर्तमान में सिद्धार्थ और स्वतंत्र के साथ बेंगलुरू में रह रहे रवीश बताते हैैं कोरोना संक्रमण काल के छह महीने पहले मई 2019 में हमने एबल जाब्स लांच किया। इसमें विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क कोर्स जाब है। सात-आठ घंटे के इस पाठ्यक्रम को पढ़कर युवा कौशल विकास कर सकते हैैं। यह उन्हें नौकरी पाने में मदद कर सकती है। यह पाठ्यक्रम पूरी तरह निश्शुल्क है। इसके साथ-साथ इस एप में एक विस्तारित पाठ्यक्रम भी है। एक से लेकर तीन महीने के इस पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों को आन लाइन पढ़ाते भी हैैं और नौकरी तलाशने में उनकी मदद भी करते हैैं। इस कोरोना काल के दौरान जब लोगों की नौकरियां छिन रही थी, उस समय हम 25000 युवाओं को नौकरी दिला पाए। फोब्र्स की अंडर 30 की सूची में चयन का यह एक बड़ा आधार रहा।

शिक्षा प्रणाली को बदलने की जरूरत है

रवीश का मानना है कि भारत में जो कुछ भी पढ़ाया जा रहा है वह व्यवहारिक नहीं है। खासतौर पर नान टेकनीकल पाठ्यक्रमों (बीए, बीएससी, बीकाम आदि) की पढ़ाई कर किसी को भी नौकरी नहीं मिल रही है। ऐसे में जरूरत है कि जो बाजार की जरूरत है, वही पढ़ाया जाए। वह कहते हैं हमारा लक्ष्य है दुनिया की सबसे बड़ी वोकेशनल यूनिवर्सिटी खोलने का है, जहां विद्यार्थियों को उतना ही पढ़ाया जाएगा, जो उनके काम आएगा। आने वाले 10-12 सालों में बारहवीं के बाद ही विद्यार्थियों को इस तरह के पाठ्यक्रम के जरूरत पड़ेगी।

एक बार डिग्री लेकर घर जाने की नहीं, अब जिंदगीभर पढ़ने की जरूरत

कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग करने के बाद एबल जाब्स के चीफ प्रोडक्ट आफिसर सिद्धार्थ श्रीवास्तव और चीफ टेक्नीलाज आफिसर स्वतंत्र कुमार का के अनुसार एक ओर जहां हर दो साल में तकनीक बदल रही है, वहीं हम एक बार डिग्री लेकर जिंदगीभर उसी आधार पर काम करते रहते हैैें। ऐसे में न कौशल विकास हो रहा है और न ही बेहतर काम। हम जिन पाठ्यक्रमों की कल्पना कर रहे हैैं, उसमें आप जरूरत के अनुसार हर एक दो साल में अपने आप को अपग्रेड करने के लिए छोटा-छोटा कोर्स कर सकते हैं और जिंदगी भर पढ़ सकते हैैं। ...यह अभी सपना है लेकिन कल सच होगा।