
स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष में आई पुस्तक वर्षों तक इस्लामी आक्रांताओं से लडऩे और उन्हें पराजित वाले मेवाड़ के उन महाराणाओं की वीरगाथा प्रस्तुत करती है जिन्हें पश्चिमी व इस्लामी इतिहासकारों ने इतिहास में यथोचित स्थान नहीं दिया।
पुस्तक : महाराणा : सहस्र वर्षों का संघर्ष
लेखक : ओमेंद्र रत्नू
प्रकाशक : प्रभात पेपरबैक्स
मूल्य : 500 रुपये
समीक्षा : अमित तिवारी
देश के महान हिंदू योद्धा महाराणा प्रताप के शौर्य व संघर्ष की गाथा और मेवाड़ के बारे में सबने कुछ न कुछ पढ़ा है, लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि मेवाड़ के महान राजपूतों की कथा को जितने विस्तार से इस देश और समाज को जानने की आवश्यकता है, उसका अवसर कभी आने ही नहीं दिया गया। मेवाड़ की जिस वीरभूमि ने महाराणा प्रताप जैसा रत्न दिया है, उसने बाप्पा रावल, रावल खुमाण, रावल रतन सिंह, महाराणा हम्मीर सिंह, महाराणा कुंभा और महाराणा सांगा जैसे वीरों को भी अपना आंचल दिया है। ओमेंद्र रत्नू की लिखी पुस्तक 'महाराणा : सहस्र वर्षों का धर्मयुद्धÓ दुर्भाग्य की उसी धूल को साफ करते हुए हमारे समक्ष इतिहास का वह सुनहरा पन्ना खोलती है, जिसे पश्चिम व इस्लामी विचारकों तथा उनसे प्रेरित कथित इतिहासकारों ने छिपाकर रखा था। आज जब देश स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है, ऐसे में महान योद्धाओं के बारे में पढऩा और अपने वास्तविक इतिहास को जानना निसंदेह महत्वपूर्ण है।इस्लामी शासन का झूठ फैलाया गया, जबकि 1192 में मुहम्मद गोरी के हाथों सम्राट पृथ्वीराज चौहान की पराजय से पहले तक कोई मुस्लिम आक्रांता यहां नहीं रुक पाया था। इसके बाद भी उन्हें लगातार विरोध और संघर्ष का सामना करना पड़ा। उनका शासन हमेशा सीमित रहा। पूरी दुनिया ऐसे प्रमाणों से भरी है कि इस्लामी आक्रांताओं ने जहां भी हमला किया, कुछ समय में उसे इस्लामी राष्ट्र बना दिया। भारत में हजार वर्ष से ज्यादा के संघर्ष के बाद भी उनके लिए यह संभव नहीं हो पाया। यह तथ्य अपने आप में हिंदुओं के संघर्ष को दिखाता है।
यह पठनीय और विचारणीय पुस्तक है। यह पुस्तक भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता को भी दर्शाती है।