किसी को खुशी तो किसी को गम देकर गया 2022, साल भर दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में मची रही हलचल


AAP को मिली दिल्ली नगर निगम की सत्ता

आम आदमी पार्टी (आप) जिस नगर निगम में पिछले दो बाद से प्रयास कर रही थी, दिल्ली की जनता ने इस बार उसे सत्ता का मौका दे दिया। आप को नगर निगम में 250 में से 134 सीटें मिलीं और पूर्ण बहुमत मिल गया। यह AAP के लिए बड़ी उपलब्धि रही है। AAP की रणनीति यही रही है कि दिल्ली सरकार के साथ साथ नगर निगम में भी उसकी सत्ता हो। यह मुराद AAP की पूरी हुई है। हालांकि नगर निगम चुनाव में मतदान परिणाम को लेकर इस बार बिल्कुल अलग हाेने के कयास लगाए जा रहे थे।

जिस तरह एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी की भारी जीत दिखाई जा रही थी, उससे आम आदमी पार्टी गदगद थी और चार दिसंबर काे हुए मतदान के दो दिन बाद छह दिसंबर को पार्टी की ओर से भारी मतों से निगम चुनाव जीत लेने का बयान आया था । पार्टी ने दावा किया था कि नगर निगम के परिणाम अप्रत्याशित होंगे, मगर जब नगर निगम चुनाव के परिणाम आने शुरू हुए तो दोपहर तक आम आदमी पार्टी कर सांस अटकी रही थीं। बहरहाल जो भी हो आप सत्ता में काबिज हुई है। अगर हम पिछले 2017 के निगम चुनाव की बात करें तो उस समय आप अच्छी स्थिति में नहीं थी।आम आदमी पार्टी बन गई राष्ट्रीय पार्टी

दिसंबर में आए गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) ने राष्ट्रीय पार्टी बनने की उपलब्धि मात्र दस साल में ही हासिल की है। देश में चंद पार्टियों को ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा है, उनमें अब आपकी आम आदमी पार्टी भी शामिल हो गई। गुजरात की जनता ने आप को राष्ट्रीय पार्टी बना दिया है। 10 साल पहले नवंबर में AAP का गठन हुआ था और आज से ठीक नाै साल पहले 2013 में पहला चुनाव लड़ा था, आज की ही तारीख में 8 मार्च काे आए चुनाव परिणाम में आप ने दिल्ली विधानसभा की 28 की सीटें जीती थीं।

बता दें कि आप ने राष्ट्रीय पार्टी बनने के मापदंड पूरे कर लिए हैं, मगर अधिकृत रूप से चुनाव आयोग का पत्र मिलने के बाद ही इसे राष्ट्रीय पार्टी माना जाएगा।आप को गुजरात में कुल 13 प्रतिशत के करीब वोट मिले।आप इसके बाद अपना विस्तार करने में जुट गई है, पार्टी छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में उतरेगी आैर 2024 में लोकसभा चुनाव देश के प्रमुख राज्याें में लड़ेगी। पार्टी विस्तार के लिए आप ने पार्टी से राज्यसभा सदस्य संदीप पाठक को जिम्मेदारी दी है।

नगर निगम का 15 वर्ष पुराना दुर्ग बचाने में विफल रही भाजपा

राजधानी में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में जुटी भाजपा के हाथ से 15 वर्ष पुरानी नगर निगम की सत्ता भी चली गई। पार्टी पिछले वर्ष से निगम चुनाव की तैयारी कर रही थी, लेकिन तीनों निगमों के एकीकरण की घोषणा से मार्च में होने वाला चुनाव स्थगित हो गया था।

निगम के एकीकरण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दिसंबर में चुनाव हुआ जिसमें भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई केंद्रीय मंत्री व बड़े नेता चुनाव प्रचार में उतरे, लेकिन पार्टी 250 में से मात्र 104 सीट ही जीत सकी। इस हार के कारण आदेश गुप्ता को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छोड़नी पड़ी। प्रदेश उपाध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। इस पराजय के बाद पार्टी के सामने वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी को धार देने की चुनौती है, क्योंकि हार का एक बड़ा कारण सांसदों व अन्य बड़े नेताओं की गुटबाजी है।

सांसद का संगठन के साथ बेहतर तालमेल नहीं होने से पार्टी को नुकसान पहुंच रहा है।निगम चुनाव में हार के बावजूद भाजपा नेतृत्व महापौर सहित अन्य पदों के लिए अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है। इससे मुकाबला दिलचस्प हो गया है।रेखा गुप्ता को महापौर पद का उम्मीदवार बनाया गया है। यह चुनाव कार्यकारी अध्यक्ष सचदेवा की पहली परीक्षा है। इससे उनके चुनाव कौशल को परखा जाना है।

सिख राजनीति में पूरे वर्ष चलता रहा उठापटक

दिल्ली की सिख राजनीति में पूरे वर्ष उठापटक चलता रहा। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीएमसी) के अध्यक्ष पद के चुनाव में विवाद से वर्ष की शुरुआत हुई। परमजीत सिंह सरना ने हरमीत सिंह कालका पर पुलिस की मदद से अध्यक्ष बनने का आरोप लगाया। कालका शिरोमणि अकाली दल (शिअद बादल) के टिकट पर चुनाव जीते थे लेकिन बाद में बगावत कर शिरोमणि अकाली दल दिल्ली स्टेट नाम से नई पार्टी बना ली। वह शिअद बादल के टिकट पर डीएसजीएमसी पहुंचने वाले अन्य सदस्यों को अपने साथ जोड़कर अध्यक्ष की कुर्सी बचाने में सफल रहे हैं।

विरोधी उनके ऊपर भाजपा के इशारे पर काम करने का आरोप लगाते हैं। कालका सहित अन्य नेताओं के बगावत के बाद अवतार सिंह हित को शिअद बादल का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन कुछ माह बाद ही उनका निधन हो गया जिससे पार्टी नेतृत्व विहीन हो गई।

राजधानी में पार्टी का अस्तित्व बचाने के लिए सुखबीर सिंह बादल अपने पुराने विरोधी परमजीत सिंह सरना से समझौता करने को विवश हो गए। सरना ने अपनी पार्टी शिरोमणि अकाली दल दिल्ली का शिअद बादल में विलय कर दिया। बादल ने उन्हें दिल्ली में पार्टी की कमान सौंप दी है।कालका सहित अन्य नेताओं के बगावत के बाद अवतार सिंह हित को शिअद बादल का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन कुछ माह बाद ही उनका निधन हो गया जिससे पार्टी नेतृत्व विहीन हो गई।