घटती नींद बढ़ा रही डायबिटीज, डिप्रेशन और दिल के रोगों का खतरा ANURAG MISHRA

 

भारत चीन अमेरिका और ब्राजील में स्लीप डिसऑर्डर बढ़े हैं। वह बताते हैं कि कम या अधिक नींद दोनों ही रोग बढ़ाती है। मौजूदा दौर में लोग कम नींद ले रहे हैं जिससे टाइप-2 डायबिटीज हार्ट के रोग कैंसर और डिप्रेशन जैसे रोगों में बढ़ोतरी हो रही है।

 नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। घटती नींद लोगों में कई तरह की बीमारियां बढ़ा रही है। कम सोने के कारण लोगों में डायबिटीज, मोटापा, मानसिक अवसाद, डिप्रेशन, बेचैनी, हाइपरटेंशन और स्ट्रोक जैसी समस्याएं हो रही हैं। यही नहीं, इसके कारण लोगों में कैंसर का खतरा भी बढ़ रहा है। एम्स ऋषिकेश के हालिया शोध पत्र रिफॉर्म स्लीप हेल्थ :ए नीड टू फोकस ऑन स्लीप हेल्थ पॉलिसी टू रिड्यूस डिजीज बर्डन एंड हेल्थ इक्विटी एंड इक्वलिटी में यह बात बताई गई है।

एम्स के साइकेट्री और स्लीप मेडिसिन विभाग के डा. रवि गुप्ता का कहना है कि भारत, चीन, अमेरिका और ब्राजील में स्लीप डिसऑर्डर बढ़े हैं। वह बताते हैं कि कम या अधिक नींद, दोनों ही रोग बढ़ाती है। मौजूदा दौर में लोग कम नींद ले रहे हैं, जिससे टाइप-2 डायबिटीज, हार्ट के रोग, कैंसर और डिप्रेशन जैसे रोगों में बढ़ोतरी हो रही है। नियामक एजेंसियों के लिए दुनिया भर में कम नींद का विषय नजरंदाज-सा रहा है। ऐसे में इस विषय में जागरूकता की जरूरत है, क्योंकि नींद कई बीमारियों की जड़ है।

हादसों की वजह भी है नींद

एम्स के शोध पत्र में सामने आया कि नींद हादसों की भी वजह है। रिसर्च पेपर में सेफ्टी फाउंडेशन मैटर्स की एक स्टडी का हवाला भी दिया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत में दो-तिहाई पायलट कई बार प्लेन चलाते समय सोने जैसी स्थिति में थे। उनके सहयोगी पायलट ने उन्हें जगाया। इस स्टडी में दावा किया गया कि विमान दुर्घटना के पीछे बड़ी वजह यही होती है। बहुत सारे पायलट जॉब प्रेशर के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते हैं।

नींद कई बार सड़क दुर्घटनाओं का भी कारण बनती है। कई रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है कि 40 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं खराब नींद के कारण होती हैं। सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) के चीफ साइंटिस्ट वेलमुरुगन सेनाथिपति के अनुसार भारत एक उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण यहां दोपहर में खाने के बाद सामान्य तौर लोगों को सुस्ती और नींद आती ही है। ऐसे में हाइवे पर हल्की सी नींद आने पर बड़े हादसे होने की आशंका बनी रहती है।

इलाज न कराने से प्रभावित होती है क्षमता

डा. गुप्ता कहते हैं कि इलाज न कराने पर स्लीप डिसऑर्डर से पढ़ाई, खेल जैसी गतिविधियों में खराब प्रदर्शन होने लगता है। इसका असर काम की उत्पादकता पर भी पड़ता है। इसकी वजह से कई बार आत्महत्या जैसी घटनाएं भी सामने आई हैं।

कोरोना के बाद भी बिगड़ी नींद

डॉ रवि गुप्ता ने कोरोना लॉकडाउन और नींद के प्रभाव को लेकर अध्ययन किया था। इसमें सामने आया कि अनिद्रा से परेशान वयस्कों के प्रतिशत में कोई बदलाव नहीं आया है। औसतन 10 प्रतिशत वयस्क अनिद्रा के शिकार होते हैं। यही नहीं, लोगों के सोने और जागने के समय में देरी हो गई थी। सीधे तौर पर कहें तो लोगों की स्लीपिंग क्वालिटी खराब हो गई। लोगों के बेड टाइम और जागने के समय में बदलाव के साथ रात को सोने का समय भी कम हो गया। गुप्ता कहते हैं, हमने अध्ययन में पाया कि पहले 48.4 प्रतिशत लोग 11 बजे के बाद सो जाते थे। लॉकडाउन के बाद 65.2 प्रतिशत लोग 11 बजे के बाद सोने लगे।

पोस्ट कोरोना बढ़ा असर

नींद पर अध्ययन करने वाली एम्स की ही प्रोफेसर डॉ. मंजरी त्रिपाठी ने बताया कि पोस्ट कोविड सिम्प्टम में लोगों में ब्रेन फॉग, काम करना या याद रखना इन सबमें दिक्कत आ रही है। इसको डिमेंशिया ब्रेन फॉग कह सकते हैं। इसके साथ ही दूसरी बात यह है कि पोस्ट कोविड मरीज में थकान और काम न कर पाने की समस्या भी बहुत बढ़ रही है। इसके साथ याददाश्त में परेशानी भी है। कोविड से पहले 50 साल या 70 साल के लोग भी काफी दौड़ते थे, घूमते थे, लेकिन पिछले 2 सालों में सब कुछ बंद हो गया है। उसकी वजह से यह परेशानी आई है। उन्होंने कहा कि यह परेशानी पूरी दुनिया में है।

डॉ. मंजरी बताती हैं कि 3 महीने या इससे ज्यादा समय तक, हफ्ते में 3 दिन अगर मरीज ठीक से सो नहीं पाता है तो यह क्रॉनिक इन्सोम्निया या अनिद्रा की बीमारी कहलाती है। ऐसे मरीजों को नींद की ऐसी समस्या हो जाती है कि उनको चिकित्सकों की ओर से दी जाने वाली नींद की गोलियां खानी ही पड़ती हैं। मरीज को इन दवाओं की लत भी लग जाती है। इन दवाओं का नुकसान भी होता है।

नींद का रिश्तों पर पड़ता है असर

मशहूर न्यूरोलॉजिस्ट क्रिस्टोफर विंटर कहते हैं कि जब आप पूरी नींद नहीं लेते हैं तो आपका दिमाग सही ढंग से काम नहीं कर पाता। इसका सीधा असर आपके रिश्तों पर पड़ता है। इसलिए समुचित नींद बेहद जरूरी है। सोना अचेतन की अवस्था होती है। सोने से शरीर के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

भावनाओं पर कम हो रहा नियंत्रण

विंटर कहते हैं कि नींद कम होने से ऐमिग्डाला (यह क्षेत्र एक तरह का दर्दरोधी केंद्र या एंटी पेन सेंटर है। यह क्षेत्र ऐमिग्डाला है, जिसे नकारात्मक भावों और सामान्य बेचैनी जैसी प्रतिक्रियाओं देने के लिए जिम्मेदार माना जाता है।) सही से काम नहीं करता है। इसकी वजह से आप ओवररिएक्ट करने लगते हैं और दूसरों की भावनाओं की कद्र नहीं करते हैं। एक अध्ययन में सामने आया था कि कम नींद की वजह से ऐमिग्डाला एक्टिविटी के गड़बड़ाने की वजह से ही डिप्रेशन और तनाव की समस्या होती है। स्लीप मेडिसिन एक्सपर्ट जेनेफिर मार्टिन कहती हैं कि जब हमें नींद कम आती है तो हम बेवजह की बातों पर भी रिएक्ट करने लगते हैं। ऐसे में टकराव और रिश्तों में तनाव की संभावना बढ़ जाती है। किसी बच्चे की नींद पूरी नहीं होती है तो वह चिड़चिड़ाने सा लगता है। कुछ अध्ययन बताते हैं कि जो लोग दुखी और डिप्रेशन में होते हैं उनकी नींद पूरी नहीं होती है। प्रमुख बात यह है कि हम इस बात को नोटिस ही नहीं करते हैं।

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सेहत को प्रभावित करती है नींद

कम नींद लेने का असर आपकी सेहत पर भी पड़ता है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन का कहना है कि इसकी वजह से आपको डायबिटीज, मोटापा, दिल के रोग और डिप्रेशन की समस्या होती है। यह आपके संबंधों में परेशानी की वजह बन सकता है, क्योंकि अगर आपका स्वास्थ्य बेहतर नहीं होगा तो आप खुश नहीं रहेंगे, जिसका सीधा असर रिश्तों पर पड़ना लाजिमी है।

स्लीप शेड्यूल भी प्रभावित करता हैं रिश्ते

अगर आपकी शिफ्ट बार-बार बदलती है या फिर अलग शिफ्ट है तो यह आपके स्वास्थ्य, नींद और रिश्तों के लिए एक चुनौती होती है। मार्टिन कहती हैं कि ऐसी स्थिति में बेहद जरूरी है कि आपको जिस दिन अवकाश मिलता है पार्टनर से संवाद जरूर करें। यही नहीं अपना टाइम मैनेजमेंट और नींद का शेड्यूल ऐसा बनाएं कि एक-दूसरे के लिए वक्त निकाल पाएं। यही नहीं, आप अपने और पार्टनर की नींद का सम्मान करें। इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि अगर आपका शेड्यूल अलग-अलग है तो आप रात के समय मोबाइल पर समय बिताने के बजाए अपने पार्टनर को समय दें।

युवाओं के सोने का पैटर्न हुआ खराब

भोपाल की साइकिएट्रिक और बच्चों की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. समीक्षा साहू ने बताया कि कोविड के बाद हर उम्र के लोगों में नींद कम आने की समस्या बढ़ी है। पहले जहां उम्रदराज या बुजुर्गों में ही कम नींद की दिक्कत थी, लेकिन अब टीनएजर्स और युवाओं में बढ़ने लगी है। मोबाइल स्क्रीन का टाइम बहुत ज्यादा होने से बच्चों-टीनएजर्स में और वर्क फ्रॉम होम करने वाले प्रोफेशनल्स में यह समस्या आ रही है। कई ऐसे पेशेंट आ रहे हैं, जिन्हें यह दिक्कत हाल ही के कुछ महीनों के दौरान हुई है। लंबे समय तक एक ही पोजिशन में स्क्रीन देखना, शरीर के मूवमेंट के साथ खानपान से शरीर में कई दिक्कतें आ रही हैं।

नींद की कमी से देखने में आया है कि अनियमित रूटीन वालों में इस कारण हार्ट, डायबीटिज के साथ मेंटल परेशानी होने लगी हैं। अगर लंबे समय तक यही लाइफस्टाइल रही तो हार्ट के साथ कैंसर-डायबिटीज का खतरा बढ़ेगा।

ये तरीके होंगे कारगर

डॉ. समीक्षा ने बताया कि टीनएजर्स को स्क्रीन टाइम कम करना होगा। देर रात तक मोबाइल-लैपटॉप देखने से बचें। समय पर खानपान और योग-कसरत से नींद बढ़ाई जा सकती है। इसी तरह प्रोफेशनल्स जो रात को या अधिक समय तक घर में काम करते हैं, उन्हें भी नियमित दिनचर्या बनानी होगी। बीच-बीच में स्क्रीन से हटें। समय पर खानपान के साथ परिवार के साथ समय बिताने और एक्सरसाइज की रूटीन बनाएं। इससे नींद बढ़ेगी और हार्ट, कैंसर व डायबिटीज का खतरा भी कम होगा।