मुगलों ने बदले थे नाम, औरंगजेब ने मथुरा को इस्लामाबाद, वृंदावन को किया था मोमिनाबाद


मथुरा,  विनीत मिश्र। मुगल सम्राट औरंगजेब ने कान्हा की नगरी में उनके जन्मस्थान पर बना प्राचीन ठाकुर केशवदेव मंदिर ही नहीं तोड़ा, बल्कि मथुरा और वृंदावन की सांस्कृतिक पहचान मिटाने की भी कोशिश की। केशवदेव मंदिर तोड़ने के साथ ही मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद और वृंदावन का नाम बदलकर मोमिनाबाद करने का का आदेश दिया। इस पर अमल भी हुआ। 

मुगल शाही दफ्तरों में थे ये दोनों नाम

मुगल शाही दफ्तरों में इन्हें इसी नाम से जाना जाता था। वर्ष 1670 में औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान के प्रसिद्ध केशवदेव मंदिर को तोड़कर उस स्थान पर मस्जिद बनाने का आदेश दिया। लेकिन इस दौरान उसने मथुरा और वृंदावन के नामों में भी परिवर्तन करने का आदेश दिया। वृंदावन स्थित ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के सचिव लक्ष्मी नारायण तिवारी बताते हैं कि फारसी दस्तावेजों में लंबे समय तक मथुरा के लिए इस्लामाबाद और वृंदावन के लिए मोमिनाबाद लिखने की परंपरा चलती रही।

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लक्ष्मी नारायण तिवारी बताते हैं कि 18वीं सदी के मध्य में जब मथुरा-वृंदावन जाट शासकों के अधिकार में आए, तो उन्होंने सिक्के ढालने के लिए मथुरा और वृंदावन में अपनी टकसालें स्थापित कीं। लेकिन, पुरानी चली आ रही परंपरा के अनुसार, सिक्के मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय के नाम पर ही जारी किए गए। सिक्कों पर भी फारसी में मथुरा टकसाल के नाम पर इस्लामाबाद और वृंदावन टकसाल के नाम पर मोमिनाबाद ही अंकित किया जाता रहा। वह बताते हैं कि महत्वपूर्ण दस्तावेज और मथुरा- वृंदावन की टकसालों में ढले सिक्के शोध संस्थान में आज भी संग्रहित हैं।

इन किताबों में भी है जिक्र

औरंगजेब के दरबारी साकी मुस्तैद खान द्वारा लिखी पुस्तक मआसिर-ए-आलमगीरी में भी इसका प्रमुखता से जिक्र किया गया है। मूल रूप से फारसी में लिखी इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद सर जदुनाथ सरकार ने किया है। वीएस भटनागर द्वारा लिखी पुस्तक इंपरर औरंगजेब एंड डिस्ट्रक्शन आफ टेंपल में भी मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद करने का जिक्र है।

औरंगजेब द्वारा मथुरा और वृंदावन का नाम बदला गया था। इससे संबंधित दस्तावेज शोध संस्थान में उपलब्ध हैं। इसका अवलोकन आमजन भी कर सकते हैं। डा. एसपी सिंह, उप निदेशक, वृंदावन शोध संस्थान, वृंदावन

औरंगजेब ने केशवदेव मंदिर तोड़ने के दौरान मथुरा और वृंदावन का नाम परिवर्तित किया। किताबों में इसका जिक्र है। इन किताबों का अंश भी हमने न्यायालय में दायर वाद के साथ दाखिल किया है।