रहवासी' ने भूतिया होने की कगार पर खड़े उत्‍तराखंड के गांवों को किया आबाद, इस तरह आत्मनिर्भर बन रहे ग्रामीण

पहाड़ के गांवों को आबाद करने की 'रहवासी' की मुहिम रंग ला रही है।

;

पलायन से खाली हो रहे पहाड़ के गांवों को आबाद करने की रहवासी की मुहिम रंग ला रही है। रहवासी के प्रयासों से भूतिया गांव होने की कगार पर खड़े ग्रामसभा के दो उप गांव फिर से आबाद हो गए हैं।

स्कंद शुक्ल, हल्द्वानी: पलायन से खाली हो रहे पहाड़ के गांवों को आबाद करने की 'रहवासी' की मुहिम रंग ला रही है। संस्था पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग ब्लॉक के दुर्गम ग्रामसभा पीपलतड़ में लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ने का शानदार प्रयास कर रही है।

रहवासी के प्रयासों से भूतिया गांव होने की कगार पर खड़े ग्रामसभा के दो उप गांव फिर से आबाद हो गए हैं। ग्रामीण खेती और मत्स्य पालन से अब आत्मनिर्भर हो रहे हैं। इस मुहिम को धार दी है उत्तराखंड मुक्त विवि के असिस्टेंट प्रो. अनिल कार्की और उनकी टीम ने।

उन्होंने 2018 में अनुसूचित जाति बहुल पीपलतड़ ग्रामसभा में 'रहवासी' नाम से एक किसान कॉपरेटिव की स्थापना की। तब तक उनके पास कुछ लोगों के साथ के अलावा संशाधन शून्य थे। ग्रामसभा के दो गांव भृूतिया होने की कगार पर खड़े थे। एक गांव में तीन और दूसरे में केवल एक परिवार बचा था। इन परिवारों के भी युवा रोजगार के लिए पलायन कर गए थे।

'रहवासी' नाम से एक किसान कॉपरेटिव बनाया

ऐसे में कुछ युवाओं के साथ अनिल ने 'रहवासी' नाम से एक किसान कॉपरेटिव बनाया। जिसका नारा रखा गया 'स्वपोषित गांव सबल गांव'। यानी स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संशाधनों के आधार पर ही गांव को आत्मनिर्भर बनाना।स्था ने कोविड के दौरान लाैटे लोगों को गांव में ही आत्मपनिर्भर होने के अवसर उपलब्ध कराए। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही माता देवी और कोविड के दौरान लौटा उनका बेटा किशोर अब गांव में खेती व मत्स्य पालन कर जीवन यापन कर रहे हैं।

पूर्वी रामगंगा किनारे बंजर गांव को किया आबाद

बंदरों के आतंक के बीच रहवासी के सामने लोगों में खेती के प्रति फिर से रुझान पैदा करने की चुनौती थी। जिनसे निजात पाने के लिए गांव में आवारा कुत्तों को माध्यम बनाया और जंगली अमरूदों को काटने की बजाए स्वाभाविक रूप से बढ़ने दिया, जो बंदरों से फसलों को बचाने में कारगर साबित हुआ।बाहर के बीजों का पहाड़ पर उत्पान नहीं हो पा रहा था, ऐसे में कृषि विज्ञानियों की मदद से गांव के बुजुर्गों का सहयोग लिया और स्थानीय पंरपरागत बीजों को चिन्हित किया। जिन्हें संरक्षित करने के लिए सामुदायिक किसान सेंटर मंदाकिनी रहवास का निर्माण किया गया।

12 तालाबों में हो रहा मत्स्य पालन

वर्तमान में रहवासी 12 तालाबों में पंगास और काॅर्प मछलियों का उतपादन कर रहा है। जिन्हें लोग खुद संपर्क कर खरीद रहे हैं, तो बाजार को भी उपलब्ध कराया जा रहा है।

इन तालाबों को विकसित करने में जिला मत्स्य विभाग ने पूरा सहयोग किया। इसके साथ मत्स्य पालन की अत्याधुनिक तकनीकि आरएएस सेंटर स्थापित करने की योजना पर काम चल रहा है। इससे पांच परिवारों को प्रतिमाह दस हजार तक आय हो सकेगी।

बच्चे चला रहे बच्चों के लिए पुस्तकालय

रहवासी किसान सेन्टर में बच्चों के लिए बच्चों द्वारा चलाया जाने वाला पुस्तकालय भी स्थापित किया गया है। इसके अलावा कुमाऊं की पहली परास्नातक महिला लक्ष्मी टम्टा के नाम पर स्मृति पुस्तकालय निर्माणाधीन है।

पलायन प्रभावित गांव में रहवासी ने बेहतर काम किया है। स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए विभाग की ओर से विभागीय योजनाओं के तहत मदद की जा रही है।