दस राज्यों में तीन चौथाई सड़क दुर्घटनाएं और मौतें, MP और यूपी सबसे अधिक जोखिम वाले राज्यों में शीर्ष पर

 

तमिलनाडु में पिछले साल 55682, मध्य प्रदेश में 48877 और उत्तर प्रदेश में 37729 दुर्घटनाएं हुईं।

;सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ रोहित बलूजा के अनुसार

कुल हादसों में इनका प्रतिशत क्रमश: 13.5, 11.9 और 9.1 है। यानी केवल तीन राज्यों में लगभग 25 प्रतिशत हादसे हुए। लोगों की जान जाने के मामले में भी इन्हीं दस राज्यों में हालात सबसे अधिक खराब हैं, क्योंकि लगभग 73 प्रतिशत मौत की घटनाएं इन्हीं राज्यों में हुईं। इन दस राज्यों की रैंकिंग भी पिछले तीन साल से मामूली बदलाव को छोड़कर लगभग एक जैसी है। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ रोहित बलूजा के अनुसार इस रिपोर्ट में भी वही सब सामने आया है जो एनसीआरबी की पिछले साल की रिपोर्ट में आ चुका है। दुर्घटनाओं और मौतों का आंकड़ा वही है।

यह कहना मुश्किल है कि इससे हादसे रोकने और लोगों की जान बचाने में कितनी मदद मिलेगी, क्योंकि अभी भी डाटा एकत्र करने में वैज्ञानिक तौर-तरीके नहीं अपनाए जा रहे हैं। जब तक सड़कों का माहौल बेहतर नहीं होगा और डिजाइन से लेकर वास्तविक खामियां नहीं ठीक की जाएंगी तब तक यही स्थिति रहने वाली है। सड़क दुर्घटना में एक व्यक्ति की भी मौत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इसके बाद तो केवल संख्याओं की तुलना हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल 412432 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 153972 लोगों की जान गई।

डाटा संग्रहण में अंतरराष्ट्रीय मानकों और प्रक्रिया का किया गया पालन

मंत्रालय के अनुसार डाटा संग्रहण में अंतरराष्ट्रीय मानकों और प्रक्रिया का पालन किया गया है। विश्व बैंक की सहायता से इंटीग्रेटेड रोड एक्सीडेंट प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई है, जिसके लिए आइआइटी मद्रास की भी मदद ली जा रही है। पहले चरण में छह राज्यों में तमिलनाडु, राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में इस प्रोजेक्ट को लागू किया जा रहा है। इसकी मदद से पुलिस से लेकर अस्पताल, ब्लड बैंक, एंबुलेंस, कोर्ट और इंश्योरेंस कंपनी सभी जुड़ जाएंगे।

दुर्घटनाओं के कारण मानवीय

बलूजा के अनुसार वास्तविक डाटा मिलने का इंतजार किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके बाद ही नीतिगत और प्रशासनिक स्तर पर सुधार हो सकता है। बलूजा के अनुसार दुर्घटनाओं के जो कारण मानवीय माने जा रहे हैं, उनमें भी ज्यादातर इन्फोर्समेंट संबंधी खामियों की देन हैं। सीट बेल्ट और हेलमेट की अनदेखी पड़ रही भारीरिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल 16397 लोगों की जान सीट बेल्ट न पहनने के कारण चली गई, जिनमें से 8438 ड्राइवर थे और शेष 7959 लोग यात्री।

सीट बेल्ट कितना जरूरी

2021 में 19811 कार सवारों की हादसों में जान गई। कुछ ऐसी ही स्थिति हेलमेट के मामले में रही। हेलमेट न पहनने की लापरवाही करने के कारण 46593 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इनमें 32877 ड्राइवर और 13716 यात्री थे। दोपहिया वाहन सवारों के लिए हेलमेट कुछ अपवादों को छोड़कर पहनना अनिवार्य है। सीट बेल्ट की अनदेखी के चलते जहां 39231 लोग घायल हुए वहीं हेलमेट न होने के कारण 93763 लोग घायल हुए। हेलमेट और सीट बेल्ट जैसे सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल न करना दुर्घटना का कारण नहीं होता, लेकिन यह गंभीर और जान लेने वाले हादसों से लोगों का बचाव जरूर करते हैं।

सीट बेल्ट कितनी जरूरी है, यह इसी साल चार सितंबर को टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की महाराष्ट्र के पालघर जिले में मार्ग दुर्घटना में जान जाने के मामले में उजागर हुआ था। ऐसा माना जाता है कि मिस्त्री और साथ बैठे उनके मित्र जहांगीर पंडोले सीट बेल्ट नहीं पहने थे, जिसके चलते एय़रबैग नहीं खुले और उनकी जान नहीं बच सकी। केंद्रीय मोटर वाहन नियम में यह प्रविधान है कि अगर कार में पीछे बैठे यात्री सीट बेल्ट नहीं पहनते हैं तो उन पर एक हजार रुपये जुर्माना लग सकता है, लेकिन ज्यादातर लोग या तो इससे परिचित नहीं हैं या इसकी जानबूझकर अनदेखी करते हैं।