इतिहास लेखन को गुलामी की मानसिकता से बाहर लाना जरूरी', शाह बोले- आजादी के लिए लाखों लोगों ने दिया था बलिदान

 


इतिहास लेखन को गुलामी की मानसिकता से बाहर लाना जरूरी: शाह (फोटो: @AmitShah)

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आजादी के बाद अंग्रेज तो चले गए लेकिन अंग्रेजियत छोड़ गए और उसी चश्मे से इतिहास लिखा गया। उन्होंने कहा कि इतिहास में उस दौरान किये जाने वाले प्रयासों को स्थान मिलना चाहिए।

नई दिल्ली, ब्यूरो। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने भारतीय इतिहास (Indian History) लेखन के गुलामी की मानसिकता से बाहर निकालने की जरूरत बताई। उनके अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Modi) ने आजादी के अमृतकाल में देश के लिए जरूरी पंच प्रण में अपनी विरासत पर गर्व और गुलामी की निशानियों से मुक्ति को प्रमुखता से रखा है और इतिहास लेखन में इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। अर्थशास्त्री संजीव सान्याल की पुस्तक 'रिवाल्यूशनरीज' के विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए अमित शाह ने अभी तक भारत के इतिहास को एक ही दृष्टिकोण से थोपे जाने का आरोप लगाया, जिसमें आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के नेतृत्व में चले अहिंसक आंदोलन को बहुत बड़ा दिखाया गया और सशस्त्र क्रांतिकारियों के योगदान को अहमियत दी गई। जबकि सच्चाई यह है कि यदि सशस्त्र क्रांति की समानान्तर धारा नहीं होती, तो देश को आजादी मिलने में कई दशक और लग जाते।

अंग्रेजों के चश्मे से लिखा गया इतिहास

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद अंग्रेज तो चले गए, लेकिन अंग्रेजियत छोड़ गए और उसी चश्मे से इतिहास लिखा गया। इतिहास को हार-जीत के नजरिये से देखने को संक्रीर्ण दृष्टिकोण बताते हुए अमित शाह ने कहा कि इतिहास में उस दौरान किये जाने वाले प्रयासों को स्थान मिलना चाहिए। इन प्रयासों से सभी आयामों और उसकी व्यापकता के विश्लेषण से उस दौर के वास्तविक इतिहास को समझा जा सकता है।

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आजादी के लिए लाखों लोगों ने दिया था बलिदान

उन्होंने कहा कि आजादी के आंदोलन को भी चरमपंथी और नरमपंथी नजरिये से पेश करने की कोशिश की गई, जबकि इसको वास्तविकतावादी नजरिये से देखने की जरूरत है, जिसमें चरमपंथी और नरमपंथी दोनों का योगदान है। उन्होंने साफ किया कि स्वतंत्रता अनुदान में नहीं मिली है, बल्कि इसके लिए लाखों लोगों ने बलिदान दिया है और कई पीढ़ियां तबाह हुई हैं। आजादी के बाद इसे सही रूप में सामने नहीं रखा गया।

भारतीय नजरिये से इतिहास लेखन की जरूरत बताते हुए अमित शाह ने कहा कि क्या हम ऐसे 300 लोगों की पहचान नहीं कर सकते हैं, जिन्होंने भारत को महान बनाया। उन्होंने इतिहास से छात्रों और अध्यापकों से इस दृष्टिकोण से सोचने को कहा। संजीव सान्याल की पुस्तक को भारतीय नजरिये से इतिहास लेखन की दिशा में अच्छी शुरुआत बताते हुए उन्होंने कहा कि इतिहास बहुत ही क्रूर होता और उसकी सच्चाई को लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता है।

उन्होंने कहा कि अब इतिहास की सच्चाई सामने आने लगी है और महापुरुषों को उनका उचित स्थान मिलने लगा है। इस सिलसिले में उन्होंने कर्तव्य पथ पर पिछले साल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाये जाने का उदाहरण दिया। उन्होंने साफ किया कि नेताजी की किसी से तुलना नहीं की जा सकती है। उनकी देशभक्ति और आजादी की लड़ाई में योगदान आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।

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सावरकर ने भगत सिंह के लिए लिखी थी कविता

अमित शाह ने सशस्त्र क्रांतिकारियों के योगदान को छिटपुट बताने, उनके योगदान को कमतर आकने और उनके बीच परस्पर विरोध दिखाने की मानसिकता का प्रतिवाद किया। उन्होंने बताया कि किस तरह से भगत सिंह ने अपने वक्तव्य में वीर सावरकर की उस समय प्रतिबंधित पुस्तक की पूरी प्रस्तावना को लिया था, जिसमें सावरकर ने 1857 की क्रांति को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम बताया था। वहीं जब भगत सिंह को फांसी हुई तो सेलुलर जेल में बंद सावरकर ने मराठी में कविता लिखकर देश के लिए उनके बलिदान को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा कि सशस्त्र क्रांतिकारियों की पूरी समानान्तर धारा रही है, जो आपस में जुड़ी थी। अमित शाह ने सशस्त्र क्रांतकारियों को हिंसावादी साबित करने की कोशिशों का भी प्रतिकार किया। उन्होंने साफ किया कि सशस्त्र क्रांतिकारियों की सोच लोकतांत्रिक और अहिंसक थी, उन्होंने सिर्फ आजादी के लिए हिंसा का रास्ता चुना था। इसके लिए उन्होंने सचिंद्र सान्याल का उदाहरण दिया। सान्याल ने 1923 में ही भारत को गणतंत्र बनाने का लक्ष्य रखा था। हिंदुस्तान रिपब्लिक आर्मी ने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य के साथ ही स्वतंत्र भारत में सभी को समान मताधिकार प्रदान करने का भी लक्ष्य निर्धारित किया था, जबकि उस समय तक कांग्रेस ने संपूर्ण आजादी की मांग भी नहीं की थी और मताधिकार को लेकर उसमें कोई बहस भी नहीं हुई थी।