'नेहरू से कहना, इस तरह मेरा दिल न तोड़े', इस संदेश के जरिये जिन्ना ने लगाई थी भारत के प्रधानमंत्री से गुहार

 


नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Letter from Muhammad Ali Jinnah: मुंबई के मालाबार हिल में मौजूद एक बंगला अब बेहद ही खराब हालत में पड़ा हुआ है। कभी इस घर के मालिक थे मोहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah)। ये वो घर है जिसके लिए दो देशों के बीच न जाने कितने ही संदेशों की अदला-बदला हुई।

कायद-ए-आजम के नाम से प्रसिद्ध जिन्ना ने अपने आवाम को पाकिस्तान दिया। जब वह पाकिस्तान लौटे तो अपने पीछे एक कीमती चीज छोड़ गए। ये कीमती चीज था उनका मुंबई का आलीशान बंगला। जिन्ना ने इस घर के लिए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से सामने गुहार तक लगा दी थी। आखिर जिन्ना के दिल के क्यों करीब था ये घर? अपनी अंतिम सांस तक उन्होंने इस घर को बेचने क्यों नहीं दिया?

'इस घर को मत बेचो, मैं जल्द ही वापिस आऊंगा'- जिन्ना

ये घर जिन्ना के बेहद करीब रहा। इस घर को वो बेचना नहीं चाहते थे, शायद इसलिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानंमत्री जवाहर लाल नेहरु को एक संदेश भिजवाया था। इस संदेश में जिन्ना ने नेहरु से गुहार लगाते हुए कहा था, 'इस घर को मत बेचो, मैं जल्द ही वापिस आऊंगा'। इसका उल्लेख रॉ के विशेष सचिव रहे तिलक देवेशर की किताब 'पाकिस्तान एट द हेल्म' में किया गया है। तिलक देवेशर की इस किताब में पाकिस्तानी शासकों के जीवन के दिलचस्प पहलुओं का उल्लेख किया गया है।

अपनी दूसरी शादी के बाद जिन्ना का रहा मुंबई ठिकाना

वर्ष 1918 में जिन्ना की दुसरी शादी मुंबई की सबसे हसीन लड़कियों में से एक रति से हुई। उस समय जिन्ना की उम्र 40 साल की थी। जिन्ना की अपने से 24 साल छोटी लड़की से शादी उस जमाने के दकियानूसी भारतीय समाज के लिए बहुत बड़ा झटका था। शादी के बाद जिन्ना अपना आधे से ज्यादा समय मुंबई के मालाबार हिल में स्थित बंगले में बिताने लगे थे। वक्त से साथ-साथ जिन्ना अपने कामों में व्यस्त रहने लगे, जिसके कारण वह रति को ज्यादा समय नहीं दे पा रहे थे। जिन्ना के व्यस्त जीवन से रति काफी परेशान रहने लगी थी, जिसका नतीजा वर्ष 1929 को देखने को मिला। रति ने इसी वर्ष जिन्ना और इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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नया बंगला बनाने का देख रहे थे सपना

पत्नी की मौत के बाद जिन्ना इस बंगले को नए घर में तब्दील करना चाहते थे। 1936 में पुराने घर को तोड़ा गया और एक नए घर की नींव डाली गई। इस घर के डिजाइन की जिम्मेदारी क्लॉड बैटली को दी गई। वो उस दौर की मुंबई की सबसे मशहूर आर्किटेक्ट थे। इस बंगले को जिन्ना की देखरेख में तैयार किया गया। वर्ष 1939 में जिन्ना ने इस घर में प्रवेश किया लेकिन इसके ठीक 4 महीने बाद पाकिस्तान मुल्क बनाने की मांग तुल पकड़ती गई। इस दौरान जिन्ना की राजनीति में भी असर देखने को मिला और वे मुंबई से ज्यादा दिल्ली में रहने लगे। यहीं कारण है कि जिन्ना का दूसरा घर दिल्ली में भी मौजूद है।

1944 में मुंबई वाले घर को बेचने का किया विचार

वर्ष 1944 में जिन्ना ने फैसला किया कि वह अपना मुंबई वाला घर बेच देंगे। हैदराबाद के निजाम ने इस घर की कीमत साढ़े आठ लाख रुपये लगाई लेकिन जिन्ना तैयार नहीं हुए और उन्होंने निजाम को एक खत लिखा। इस खत में उन्होंने बताया कि केवल जमीन की कीमत 15 लाख है और इसलिए वह इस घर को इतने कम कीमत में नहीं बेचेंगे। 1947 में जब पाकिस्तान एक अलग मुल्क बना तो जिन्ना ने दिल्ली वाले बंगले को अपने दोस्त रामकृष्ण डालमिया को 3 लाख में बेच दिया।

मुंबई का घर नहीं बिका

जिन्ना, मुंबई का घर बेचना चाहते थे और वर्ष 1947 में इस घर को बेचने के लिए 18 लाख की कीमत पेश की गई। लेकिन जिन्ना 20 लाख से कम में राजी नहीं हुए। नतीजा ये निकला की वह इस्लामाबाद तो पहुंच गए लेकिन उनका मुंबई वाला घर यहीं रह गया। आजादी के बाद भारत सरकार ने इस घर के अधिग्रहण की पेशकश की। जब जिन्ना को इस बात की खबर लगी की भारत सरकार मुंबई वाले घर पर कब्जा करने जा रही है। ये सुनकर वह भारतीय राजनेता श्री प्रकाश के पहुंचे थे। बता दें कि श्री प्रकाश भारत की तरफ से पाकिस्तान में पहले उच्चायुक्त बनाए गए थे।

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जिन्ना गिड़गिड़ाने लगे थे, नहीं चाहते थे कि उनका घर बिके

जिन्ना को जब इस बात की भनक लगी की उनके मुंबई वाले घर पर भारत सरकार कब्जा करने जा रही है तो वह तुरंत श्री प्रकाश के पास पहुंचे और उनसे गिड़गिड़ाते हुए बोले, 'नेहरू से कहना, इस तरह मेरा दिल न तोड़े। तुम जानते नहीं मैं मुम्बई से कितना प्यार करता हूं। मैं अपनी जिंदगी के आखिरी दिन वहीं बिताना चाहता हूं।' लेकिन ऐसा हो न सका। जिन्ना जब तक सत्ता में रहे तब तक वह पाकिस्तान में ही रहे। वह चाहते थे कि उनका मुबंई वाला घर किसी यूरोपियन परिवार को किराये पर दे दिया जाए। इसके लिए नेहरू तैयार भी हो गए और उन्होंने जिन्ना को 3 हजार रुपये किराया देने की बात भी मानी।

जिन्ना की मौत और मुंबई का घर

नेहरू ने जिन्ना को मुंबई के घर को लेकर कई संदेश भेजे। मुंबई के घर को किराये पर देने वाली डील हो पाती, इससे पहले ही जिन्ना ने दुनिया से अलविदा कह दिया। सितंबर 1948 को जिन्ना की मौत हुई और पीछे छोड़ गए अपनी विरासत, जिसमें उनका मुंबई वाला घर भी शामिल था। जिन्ना ने अपनी वसीयत में मुंबई वाला घर अपनी बहन फातिमा के नाम कर दिया था। एक तरफ पाकिस्तान में जिन्ना की मौत का मातम पसरा हुआ था तो वहीं भारत सरकार ने 1950 को एक कानून पास किया, जिसका नाम था इवेक्वी प्रॉपर्टी एक्ट।

विभाजन के समय जो लोग पाकिस्तान में बस गए उनकी संपत्ति भारत में छूट गई। इन संपत्तियों के लिए भारत सरकार ने इवेक्वी प्रॉपर्टी एक्ट पेश किया। इस एक्ट के तहत जिन्ना का घर भी भारत सरकार की कस्टडी में आ गया और 1955 में इसे ब्रिटिश हाई कमीशन को किराए पर दे दिया गया।

चलती रही कानूनी लड़ाई, जिन्ना का रह गया सपना अधूरा

बता दें कि इस घर को लेकर सालों-साल तक लड़ाई चली। 1962 में फातिमा जिन्ना मे बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर संपत्ति पर अपना हक जताया। लेकिन उसका कोई समाधान नहीं निकल सका। फिर 2007 में जिन्ना की बेटी डीना वाडिया ने इसपर मालिकाना हक जताया। मामला कोर्ट में चलता रहा। बता दें कि जिन्ना के घर पर पाकिस्तान ने भी लगातार हक जमाया। पाकिस्तान सरकार ने भारतीय सरकार से मांग की थी कि जिन्ना के घर को वाणिज्य दूतावास बनाने के लिए उन्हें सौंप दिया जाए। जिन्ना के दो ही सपने थे पहला पाकिस्तान और दूसरा मालाबार हिल्स का बंगला। इनमे से एक जर्जर हालत में है तो दूसरा पाकिस्तान जहां की हालत से आप अछूते नहीं है।