हर साल तबाही का सबब बनती बाढ़, आखिर सरकार क्‍यों नहीं निकाल पाई इस समस्‍या का समाधान

 


बाढ़ के वास्तविक कारणों की पहचान कर उनको खत्म करने की है जरूरत। फाइल

बाढ़ अब देश की एक स्थायी समस्या बन गई है। दुख की बात है कि हर साल बाढ़ आती है हल्ला मचता है दौरे होते हैं और राहत पैकेज की घोषणाएं होती हैं लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं की जाती।

 बीते दिनों देश के पहाड़ी राज्यों हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बारिश के चलते आई बाढ़ और भूस्खलन से भारी तबाही मची। इससे एक दर्जन से अधिक लोगों की जान चली गई। वहीं महाराष्ट्र के तटीय कोंकण तथा पश्चिमी महाराष्ट्र में बाढ़ और भूस्खलन से अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य के करीब 13 जिले बाढ़ की चपेट में बताए जा रहे हैं। उधर बिहार और असम हर साल की भांति इस साल भी बाढ़ की चपेट में हैं।

मानसून के दौरान देश में भारी बारिश तथा बाढ़ आने, बादल फटने और भूस्खलन से देश के विभिन्न क्षेत्रों में तबाही का यह सिलसिला डरावना और चिंताजनक है। दुख की बात है कि मानसून के दौरान देश का एक बड़ा हिस्सा पहले बाढ़ का कहर ङोलता है और फिर बाढ़ के पानी के उतरने के पश्चात भिन्न-भिन्न बीमारियों से जूझता है। जब तक जन-जीवन पटरी पर आता है तब तक एक और बाढ़ का समय आ चुका होता है। और कहानी फिर स्वयं को दोहराती है। नदी का जल उफान के समय जब जल वाहिकाओं को तोड़ता हुआ मानव बस्ती और आसपास की जमीन को चपेट में लेता है तो इसी को बाढ़ की स्थिति कहते हैं।

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वैसे बाढ़ की यह समस्या अकेले भारत में नहीं है। इस बार तो यूरोप के कई देश, अमेरिका और चीन भी पानी-पानी हुए हैं। यूरोप के जर्मनी, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड समेत स्पेन आदि देशों में बारिश ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। इस बार पिछले सौ साल की तुलना में सबसे भयंकर बाढ़ आई है। यूरोप को इस बार बाढ़ के कारण करीब 70 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। अमेरिका भी इन दिनों वह एक तरफ भीषण गर्मी तो दूसरी तरफ बाढ़ की चपेट में है। गौरतलब है कि दक्षिण-पश्चिम अमेरिकी राज्यों में इन दिनों भीषण गर्मी से लोगों का जीवन मुहाल है, जबकि दक्षिण-पूर्वी राज्यों में भीषण चक्रवाती तूफान से हो रही बारिश ने कहर बरपा रखा है। इसके पहले इसी साल मार्च में अमेरिका के उत्तरी राज्यों में इतनी बर्फ गिरी कि हफ्तेभर तक बिजली गुल रही थी। वहीं दुनिया में कोरोना फैलाने का जिम्मेदार माने जाने वाले चीन में बारिश ने पिछले एक हजार वर्षो का रिकार्ड तोड़ दिया है। चीन के ङोंगझोउ प्रांत में रिकार्ड 617 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। यह आंकड़ा तीन दिन का है, जबकि वहां साल भर में 640 मिलीमीटर बारिश होती है।

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दरअसल मानव की गतिविधियों ने प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता को कई गुना बढ़ा दिया है। इसी में एक बाढ़ भी है। केंद्रीय जल आयोग के आंकड़े को देखें तो 1950 में देश में 371 बांध थे। अब इनकी संख्या पांच हजार के करीब है। गौरतलब है कि नदियों पर बनने वाले बांध और तटबंध जल के प्राकृतिक बहाव में बाधा डालते हैं। बारिश की स्थिति में नदियां उफान लेती हैं और इसी तटबंध को तोड़ते हुए मानव बस्ती को डुबो देती हैं। विश्व बैंक ने भी कई बार यह बात कही है कि नदियों पर जो बांध बने हैं, उनसे फायदे के स्थान पर नुकसान अधिक होता है। देश-दुनिया में बाढ़ आने के कारणों में जंगलों की अंधाधुंध कटाई भी है। कुल मिलाकर फैलते शहर, सिकुड़ती नदियां और लगातार हो रहा जलवायु परिवर्तन बाढ़ की विभीषिका पैदा कर रहे हैं।बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए क्या किया जाना चाहिए? दरअसल तकनीकी विकास के साथ-साथ मौसम विज्ञान के विशेषज्ञों को प्राकृतिक आपदाओं की सटीक भविष्यवाणी करने की कोशिश करनी चाहिए।अभी यह भविष्यवाणी 50 से 60 फीसद ही सही ठहरती है। वहीं देश के बाढ़ प्रभावित इलाकों में चेतावनी केंद्र स्थापित करने की बात बरसों से लटकी हुई है। सभी बाढ़ इलाकों में नूतन तकनीक के साथ इन्हें स्थापित किए जाने चाहिए। इसके साथ-साथ ऐसे क्षेत्रों में ड्रेनेज सिस्टम यानी जल निकासी व्यवस्था को बिना किसी देरी के दुरुस्थ किया जाना चाहिए। भारतीय संविधान में कटाव नियंत्रण सहित बाढ़ प्रबंधन का विषय राज्यों के क्षेत्रधिकार में आता है। हालांकि केंद्र सरकार राज्यों को तकनीकी मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्रदान करती है। राज्यों की आíथकी को ध्यान में रखते हुए केंद्र को और दो कदम आगे आना चाहिए। इनके अलावा नदियों में गाद का संचय होना, मानव निíमत अवरोधों का उत्पन्न होना और वनों की कटाई जैसे अन्य कारण भी बाढ़ के लिए जिम्मेदार हैं। इन पर भी ठोस कमा होने चाहिए।

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दुनिया में जल निकासी प्रबंधन : यह सच है कि प्राकृतिक आपदाओं पर किसी का बस नहीं चलता। न ही इसे पूरी तरह रोका जा सकता है। मगर सही रणनीति, तकनीक और साथ ही इसके प्रति सजगता विकसित की जाए तो जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है। कई देश ऐसे हैं जिन्होंने सही जल प्रबंधन के बल पर बाढ़ की समस्या से निजात पा ली है। छोटे-से देश सिंगापुर ने पूरी तरह बाढ़ पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया है। डेनेज सिस्टम यानी पानी की निकासी की सही व्यवस्था करने से वहां बाढ़ के मामलों में 98 फीसद कमी आई है। नीदरलैंड ने भी अपने जल प्रबंधन के चलते भारी बारिश के बावजूद कोई जन हानि नहीं होने दिया है। गौरतलब है कि नीदरलैंड एक समय समुद्र और उफनती नदियों से जूझता था। चूंकि उसकी अधिकांश भूमि समुद्र तल से नीचे है ऐसे में उसके 66 फीसद हिस्से में बाढ़ आने का जोखिम बना रहता था। इससे निपटने के लिए नीदरलैंड ने अपने बुनियादी ढांचे में बदलाव करते हुए जल प्रबंधन की व्यवस्था की। इसके चलते अब वहां हालात नियंत्रण में हैं। जापान, फ्रांस भी इस दिशा में काम कर रहे हैं। ये देश पानी से लड़ने के बजाय पानी के साथ जीने का रास्ता खोज रहे हैं।

भारी बारिश और बाढ़ की वजह से तबाही तो होती है भीषण गर्मी और सूखे भी तबाही के प्रतीक हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम आयोग की रिपोर्ट तो कहती है कि 2030 तक प्रचंड गर्मी के कारण भारत में करीब साढ़े तीन करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी। फिलहाल गर्मी और बाढ़ दोनों जलवायु परिवर्तन के परिणाम हैं, जिन्हें रोकते-रोकते दशकों हो गए, मगर परिणाम ढाक के तीन पात हैं। वास्तव में भारतीय कृषि के लिए दक्षिण पश्चिम मानसून वरदान है। लिहाजा मानसून भी बना रहे और बाढ़ पर नियंत्रण भी पा लिया जाए तो यह सोने पर सुहागा होगा।