रक्षा सेवा विधेयक के पारित होने से रक्षा सामग्रियों के निर्माण और निर्यात में मजबूत होगा देश

 


रक्षा सेवा विधेयक एक ऐसा कदम है जिसका महत्व देश की सुरक्षा से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है।
वर्तमान में भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर तनाव कायम है। पूर्व में अध्यादेश के रूप में लागू किया गया अनिवार्य रक्षा सेवा विधेयक देश की समग्र रक्षा चुनौतियों के हिसाब से तैयार किया गया है जिसका फायदा देश को मिलना तय है।

 देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की पहल के साथ ही सरकार रक्षा क्षेत्र को आधुनिक और उन्नत तकनीकों के साथ रक्षा उत्पादन की व्यवस्था को भी सशक्त करना चाहती है। लोकसभा में पेश होने वाला अनिवार्य रक्षा सेवा विधेयक इसी सशक्त भारत की जरूरत को रेखांकित करता है। हालांकि बीते दिनों संसद में विपक्ष के हंगामे के बीच पेश इस विधेयक की आवश्यकता को काफी पहले से रेखांकित किया जा रहा है।

इस विधेयक की जरूरत को रेखांकित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया कि रक्षा सेवाओं के अनुरक्षण और सशक्त रक्षा उत्पादनों को सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है। इसमें अनिवार्य रक्षा सेवाओं को बनाए रखने और अधिकांश जन जीवन और संपत्ति को सुरक्षित रखने व उससे संबंधित विषयों को शामिल किया गया है।

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वास्तव में, वर्तमान केंद्र सरकार के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता में है। राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र में महत्वपूर्ण सुधार, सामरिक नीति समूह का गठन, रक्षा अधिग्रहण सहित तमाम मुद्दों पर सरकार ने महत्वपूर्ण पहल को अंजाम दिया है। सरकार देश को रक्षा क्षेत्र में केवल आत्मनिर्भर ही नहीं बनाना चाहती है, बल्कि उसका ध्येय देश को रक्षा उत्पादों के निर्यातक के रूप में भी प्रतिष्ठित करना है। केंद्र सरकार ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का नया नारा दिया था। इसके साथ ही सरकार निर्यातक के रूप में भी स्थापित होने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है। आज रक्षा क्षेत्र में हम अपनी तैयारी वैश्विक स्तर पर निर्धारित कर चुके हैं। वैश्विक जरूरतों को भी ध्यान में रखते हुए हम अपनी नीतियों को समय समय पर परिष्कृत भी कर रहे हैं।

इसी सशक्त भारत की दिशा में अनिवार्य रक्षा सेवा विधेयक एक ऐसा कदम है जिसका महत्व देश की सुरक्षा से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। वैसे यह विधेयक इस वर्ष 30 जून को लागू अध्यादेश का ही रूपांतरण है जिसे विधेयक के रूप में प्रस्तावित किया गया है। चूंकि सरकार द्वारा आयुध कारखाना बोर्ड के कर्मचारियों की सेवा शर्तो का ध्यान रखने का आश्वासन दिए जाने के बावजूद कर्मचारियों के संघ ने 26 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का निश्चय किया था, लिहाजा संसद का सत्र नहीं होने के कारण देश की तात्कालिक आवश्यकता को देखते हुए अध्यादेश लागू किया गया।jagran

ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि ऐसे अध्यादेश या विधेयक की आवश्यकता क्यों पड़ी? रक्षा मंत्रलय के रक्षा उत्पादन विभाग के अंतर्गत आयुध कारखाने काम करते हैं जो रक्षा हार्डवेयर और उपस्कर के स्वदेशी उत्पादक हैं। इनका मुख्य उद्देश्य सशस्त्र बलों को आधुनिक युद्ध संबंधी उपस्करों से सुसज्जित करने में आत्मनिर्भरता प्रदान करना है। सरकार ने एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत आयुध आपूर्तियों में स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार के लिए आयुध कारखाना बोर्ड को एक या अधिक शत प्रतिशत सरकारी स्वामित्व के अधीन कारपोरेट अस्तित्व में परिवíतत करने का निश्चय किया। इसके विरोध में मान्यता प्राप्त संघ ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर दी। इसके बाद सरकार ने सुलह के कई प्रयास किए, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। चूंकि देश की रक्षा तैयारियों के लिए सशस्त्र बलों को निर्बाध रूप से आयुध की आपूर्ति और कारखानों का सुचारु रूप से चलना जरूरी था, इसलिए किसी भी प्रकार की आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए और अनिवार्य रक्षा सेवाओं के लिए यह जरूरी था कि इसे कानून के द्वारा नियमित किया जाए।

इनमें ऐसी सेवाएं भी शामिल हैं, जो अगर रुक जाएं तो इस कार्य में संलग्न इस्टेब्लिशमेंट या उनके कर्मचारियों की सुरक्षा पर असर होगा। इसके अलावा, सरकार किसी सेवा को तब आवश्यक रक्षा सेवा घोषित कर सकती है, यदि उसके बंद होने से रक्षा उपकरण या वस्तुओं का निर्माण, ऐसा निर्माण करने वाले औद्योगिक इस्टेब्लिशमेंट्स या इकाइयों का संचालन या रखरखाव, या रक्षा से जुड़े उत्पादों की मरम्मत या रखरखाव प्रभावित हो।

हड़ताल को नियंत्रित करने का उपाय : विधेयक में हड़ताल को भी सही तरीके से परिभाषित करते हुए इसे नियमित और नियंत्रित करने का उपाय किया गया है। सामूहिक रूप से आकस्मिक अवकाश लेना, लोगों का काम जारी रखने या रोजगार मंजूर करने से एक साथ इन्कार करना, उस काम में ओवरटाइम करने से इन्कार करना जो आवश्यक रक्षा सेवाओं के रखरखाव के लिए जरूरी है, और ऐसा कोई भी आचरण जिससे आवश्यक रक्षा सेवाओं में रुकावट आती है, या आने की आशंका है, उन सभी को समाप्त करने का प्रविधान किया गया है।

वर्तमान में भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर तनाव कायम है। ऐसे में इस तरह के नियमन की आवश्यकता अनिवार्य हो गई है। एक सशक्त भारत के निर्माण की दिशा में बढ़ रहे भारत के लिए ऐसे कानून की नितांत आवश्यकता है। साथ ही ऐसे उपनिवेशवादी व्यवस्था के कारण उपजी प्रक्रिया या व्यवस्था की अब जरूरत नहीं है, जहां आधुनिक लोक कल्याणकारी राज्य के निर्देशक तत्वों और भारत के संविधान के संरक्षण में चलने वाली व्यवस्था निरंतर कारगर तरीके से काम कर रही है।