महाराष्ट्र में जीका वायरस के दस्तक से केंद्र ने भेजी उच्च स्तरीय टीम

 


महाराष्ट्र में जीका वायरस के दस्तक से केंद्र ने भेजी उच्च स्तरीय टीम

जीका वायरस के मामलें केरल में देखने को मिला रहे थे मगर अब महाराष्ट्र में भी इसका पहला मामला मिला है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने जीका वायरस की स्थिति की निगरानी के लिए उच्च स्तरीय टीम को महाराष्ट्र भेजा है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। कोरोना की दूसरी लहर से अभी थोड़ी राहत मिलना शुरू ही हुई थी कि जीका वायरस ने सभी की चिंता को बढ़ा दिया है। जीका वायरस देश में अपने पैर धीरे-धीरे पसारता जा रहा हैं। जीका वायरस के मामलें केरल में देखने को मिला रहे थे, मगर अब महाराष्ट्र में भी इसका पहला मामला मिला है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने जीका वायरस की स्थिति की निगरानी के लिए उच्च स्तरीय टीम को महाराष्ट्र भेजा है। यह टीम राज्य के स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर काम करने वाली है।

महाराष्ट्र के पुणे जिले में जीका वायरस का पहला मामला सामने आया, जहां एक 50 साल की महिला जीका वायरस से संक्रमित मिली थी। महिला को जीका वायरस के साथ-साथ चिकनगुनिया भी था। स्थानिय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की टीम ने निवासियों को जागरूक करना और ना घबाराने की अपील की है।

केरल में जीका वायरस के मामले

जीका वायरस के सबसे अधिक मामले केरल से सामने आए है, जिसे देखते हुए राज्य सरकरा ने कई जिलों में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया था। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने शनिवार को बताया था कि राज्य में दो और लोगों में जीका वायरस हो गया है, जिससे केरल में कुल संक्रमितों की संख्या 63 हो गई। इसमें से तीन सक्रिय मामले हैं।

जीका वायरस की पहचान-

जीका वायरस एक मच्छर होता है जिसे एडीज नाम से जाना जाता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार जीका वायरस के एडीज मच्छर दिन के समय में काटते हैं। इस वायरस से आम लोगों को कोई गंभीर दिक्कतें नहीं होती, मगर प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए यह वायरस खतरनाक साबित हो सकता है। मरीजों में बुखार, शरीर दर्द व आंख के संक्रमित होने की समस्या हो सकती है।

जाने कैसे जीका वायरस से बचा जा सकते हैं?

इस वायरस का कोई इजाल नहीं हैं, इससे बच कर ही जीका वायरस को मात दिया जा सकता सहै। जैसे कीटनाशकों का उपयोग, पूरी बाजू के कपड़े पहनना और खिड़कियों व दरवाजों को बंद रख कर इसे मात दिया जा सकता है।

आपकों बता दें कि जीका वायरस को 1947 में पहली बार युगांडा के बंदरों में पहचाना गया था। फिर बाद में इसे सन् 1952 में युगांडा और संयुक्त गणराज्य तंजानिया के लोगों में पाया गया था।