क्‍या आप भी ऊंचा सुनते हैं! ध्वनि प्रदूषण अदृश्य खतरा, दुनिया भर में 1.5 अरब लोग हो चुके शिकार

 

दुनिया भर में लगभग डेढ़ अरब लोग इस समय कम सुनाई देने की अवस्था के साथ जीवन जी रहे

शहरों में विकास के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण का स्तर भी बढ़ रहा है जो चिंता की बात है। उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद जिला ढाका के बाद दुनिया का दूसरा सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषित शहर है। यह किसी अदृश्‍य खतरे की तरह हमारे स्‍वास्‍थ्‍य पर प्रहार कर रहा है।

नई दिल्‍ली। हाल में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा जारी वार्षिक फ्रंटियर्स रिपोर्ट-2022 के मुताबिक, उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद जिला ढाका के बाद दुनिया का दूसरा सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषित शहर है। यह दुनिया के उन आठ शहरों में शामिल है, जहां शोर का औसत स्तर 100 डेसिबल से ऊपर पहुंच चुका है। ढाका में दिन के समय शोर का स्तर 119 डेसिबल पहुंच जाता है, जबकि मुरादाबाद में इसे 114 डेसिबल दर्ज किया गया है। इस सूची में कोलकाता और आसनसोल (89 डेसिबल), जयपुर (84 डेसिबल) और दिल्ली (83 डेसिबल) जैसे शहर भी शामिल हैं, जहां ध्वनि आवृत्ति विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानक से अधिक पाई गई है।

गौरतलब है कि 2018 में जारी अपने दिशानिर्देशों में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिन के समय ध्वनि प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों के लिए पृथक मापदंड जारी किए थे। इसके मुताबिक, सड़क यातायात में दिन के समय शोर का स्तर 53 डेसिबल, रेल परिवहन में 54, हवाई जहाज और पवन चक्की चलने के दौरान यह स्तर 45 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए। इससे ऊपर का शोर स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक माना जाता है। शोर का बढ़ता स्तर खतरे का सूचक है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

उद्योगीकरण और नगरीकरण की राह में तेजी से आगे बढ़ते शहरों में ध्वनि प्रदूषण की स्थिति दिनोंदिन भयावह होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण के बाद शोर स्वास्थ्य समस्याओं का दूसरा सबसे बड़ा पर्यावरणीय कारक है। लंबे समय तक उच्च स्तर के शोर के संपर्क में रहने से मानव का स्वास्थ्य और विकास दोनों प्रभावित होता है। अवांछित और अप्रिय शोर हमें परेशान कर सकता है और तनावग्रस्त बना सकता है। इससे नींद में खलल पड़ती है, जिससे सेहत का नुकसान होता है। यह हमारे सुनने की क्षमता को कमजोर कर बहरेपन की ओर ले जाती है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया भर में लगभग डेढ़ अरब लोग इस समय कम सुनाई देने की अवस्था के साथ जीवन जी रहे हैं। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2050 तक दुनिया में हर चार में से एक व्यक्ति यानी लगभग 25 प्रतिशत आबादी किसी न किसी हद तक श्रवण क्षमता में कमी की अवस्था के साथ जी रही होगी। ऐसे में कानों की सुरक्षा अहम हो जाती है।

ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम-2000 के तहत शोर उत्पन्न करने वाले उपकरणों का इस्तेमाल, आवाज वाले पटाखा फोड़ने, होर्न बजाने और ऊंची आवाज में संगीत गाना और वाद्ययंत्र बजाना प्रतिबंधित है। अगर हम अपने-अपने स्तर पर शोर में हिस्सेदारी बंद कर दें, तो पूरा परिवेश शांत हो सकता है। हां, इसकी उम्मीद दूसरों से करने के बजाय खुद से ही पहल करना अधिक श्रेयस्कर है।