अबुआ राज’ के महानायक बिरसा मुंडा, 15 साल की उम्र में समझ गए थे ईसाई मिशनरियों का एजेंडा

 

बिरसा एक अच्छे चिकित्सक भी थे, वह लोगों को रोगों से मुक्ति दिलवाते थे

बिरसा ब्रिटिश सरकार के लिए लगातार चुनौती बने रहे लेकिन अंतत तीन फरवरी 1900 को भितरघात का शिकार होने के पश्चात उन्हें उस समय गिरफ्तार किया गया जब वह गहरी नींद में थे। उन्हें रांची स्थित कारागार में रखा गया जहां घोर यातनाएं दी गईं।

नई दिल्‍ली। आज एक महान स्वतंत्रता सेनानी धरती बाबा बिरसा मुंडा की 122वीं पुण्यतिथि है, जिन्होंने देश में अबुआ राज अर्थात अपना राज की अलख जगाई। उनसे प्रेरित होकर हजारों आदिवासियों ने एक साथ मिलकर अबुआ राज के विरोधियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उनके बलिदान हो जाने के उपरांत भी देश उनके विचारों से प्रेरणा लेकर अबुआ राज के लिए लड़ाई लड़ता रहा। बिरसा का जन्म वर्तमान झारखंड राज्य के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में 15 नवंबर, 1875 को हुआ था।

महज 15 साल के बिरसा ने यह समझ लिया था कि ईसाई मिशनरियों का एजेंडा केवल शिक्षा देना ही नहीं, मतांतरण करवाना भी था और बिरसा इसके विरोध में थे। उनका मानना था कि अपनी धर्म-संस्कृति के साथ ही अबुआ राज को प्राप्त किया जा सकता है। बिरसा लगभग पांच साल तक वैष्णव संत आनंद पाड़ के भी साथ रहे। वह उन्हें अध्यात्म, धर्म, दर्शन आदि विषयों के साथ विभिन्न रोगों के उपचार में काम आने वाली जड़ी बूटियों के बारे में ज्ञान देते थे। इसके पश्चात वह अपना जीवन लोगों की सेवा तथा अंधविश्वास को दूर करने में लगाने लगे। उन्होंने आदिवासियों से कहा कि रोग को लेकर काफी अंधविश्वास फैला हुआ है। हमें अंधविश्वास को छोड़ना होगा तभी हमारे अंदर एकता आएगी।

बिरसा एक अच्छे चिकित्सक भी थे। वह लोगों को रोगों से मुक्ति दिलवाते थे। धीरे-धीरे आदिवासियों को विश्वास होने लगा कि जब बिरसा उनके साथ हैं तो उनके दुखों का अंत होगा। बिरसा ने लोगों से मांसाहार-मद्यपान छोड़ने का आह्वान भी किया था। हंडिया-दारू का सेवन करवाकर जमींदार, साहूकार, मिशन तथा दिकू लोग आदिवासियों की जल, जंगल, जमीन पर कब्जा कर लेते थे। अत: उन्होंने इसे नहीं पीने को कहा। इस प्रकार उनके अनुयाइयों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी।

बिरसा ब्रिटिश सरकार के लिए लगातार चुनौती बने रहे, लेकिन अंतत: तीन फरवरी 1900 को भितरघात का शिकार होने के पश्चात उन्हें उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वह गहरी नींद में थे। उन्हें रांची स्थित कारागार में रखा गया, जहां घोर यातनाएं दी गईं। नौ जून, 1900 को रहस्यमयी स्थितियों में वह बलिदान हो गए। इसके बाद भी उनके आंदोलन का असर बना रहा तथा भूस्वामित्व को कानूनी मान्यता देने के लिए ब्रिटिश सरकार को छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट लाना पड़ा। आगे चलकर देशवासियों ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में बिरसा के सामाजिक सुधार, अंधविश्वास का खात्मा, मद्यपान निषेध, अपनी संस्कृति और धर्म इत्यादि के मंत्र को अपनाकर बिरसा के अबुआ राज को पूरा करने का प्रयास किया। आज भी उनके विचार देश के विकास की नीतियों को बनाने के दृष्टिकोण से प्रासंगिक बने हुए हैं।