कुतुबमीनार परिसर में पूजा के अधिकार से जुड़ी याचिका पर अब 24 अगस्त को होगी सुनवाई

 

कुतुब मीनार परिसर में पूजा के अधिकार से जुड़ी याचिका दिल्ली की कोर्ट में अहम सुनवाई

हिंदू पक्ष ने सिविल कोर्ट को उस फैसले के खिलाफ साकेत कोर्ट में याचिका दायर की है जिसमें कहा गया है कि अतीत की गलतियों को वर्तमान में शांतिभंग का आधार नहीं बना सकते। अगर ऐसा किया जाता है तो संविधान के ताने-बाने को नुकसान पहुंचेगा।

नई दिल्ली surender Aggarwal । राजधानी स्थित कुतुबमीनार परिसर में पूजा का अधिकार देने संबंधी याचिका पर बृहस्पतिवार को दिल्ली की साकेत कोर्ट में सुनवाई हुई। इसमें हिंदू पक्ष के वकील ने आवेदन के अध्ययन के लिए अधिक समय मांगा है। अब 24 अगस्त को सुनवाई होगी। हिंदू पक्ष को कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह को रिप्रेजेंट कर रहे हैं। 

इससे पहले इससे पहले 24 मई को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निखिल चोपड़ा की अदालत ने मामले की सुनवाई पूरी करते हुए दोनों पक्षों को एक सप्ताह के अंदर अपनी दलील दाखिल करने का समय दिया था। अब बृहस्पतिवार को कोर्ट को अपना फैसला सुनाना था, लेकिन एक आवेदन आने के चलते फैसला नहीं सुनाया जा सका है।

बता दें कि 24 मई को साकेत कोर्ट में अपना पक्ष रखेत हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने कहा था कि कुतुबमीनार परिसर के अंदर हिंदू मूर्तियों के अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन किसी संरक्षित स्मारक के संबंध में पूजा करने के मौलिक अधिकार का दावा नहीं हो सकता है।

वहीं, हिंदू पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने कोर्ट में पूजा करने के अधिकार के पक्ष में दलील देते हुए कहा था कि 27 मंदिरों को ध्वस्त करके यहां कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनाई गई थी, ऐसे में यहां हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।

इससे पहले सिविल कोर्ट ने इससे पहले हिंदू पक्ष की याचिका यह कहते हुए खारिज कर चुका है कि अतीत की गलतियों को वर्तमान में शांतिभंग का आधार नहीं बना सकते। अगर ऐसा किया जाता है तो संविधान के ताने-बाने को नुकसान पहुंचेगा। इसी के खिलाफ सत्र न्यायालय में अपील की गई है, जिस पर बृहस्पतिवार को फैसला आना है, क्योंकि हिंदू पक्ष और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण दोनों ही अपना-अपना पक्ष साकेत कोर्ट के समक्ष रख चुके हैं।

एएसआइ ने कोर्ट में यह तर्क भी दिया था कि कुतुबमीनार परिसर के निर्माण के लिए हिंदू और जैन देवताओं के वास्तुशिल्प सदस्यों और छवियों का दोबारा इस्तेमाल किया गया था। बावजूद इसके यह प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थलों और अवशेष अधिनियम, 1958 (AMASR Act) के तहत संरक्षित स्मारकों पर पूजा के अधिकार का दावा करने का आधार नहीं हो सकता है।

वहीं, हिंदू पक्ष की ओर से जैन देवता तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव और हिंदू देवता भगवान विष्णु की ओर से दायर मुकदमे में दावा किया गया था कि मोहम्मद गौरी की सेना में जनरल कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया था, और उस सामग्री से अंदर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को खड़ा किया गया था।