भारतीय संविधान में हमारी 5000 साल पुरानी सभ्यता से शुरू होकर आजादी तक की गाथा

संविधान में पहली तस्वीर मोहनजोदड़ो-सिंधु घाटी सभ्यता और आखिरी तस्वीर वंदे मातरम


संविधान के 22 खंड हैं और हर खंड के पहले पन्ने पर विशेष चित्र हैं। इनमें से 12 चित्र उनके हैं। बाकी सभी चित्र संयुक्‍त प्रयासों से बनाए गए हैं। इन चित्रों में शुद्ध रूप से भारतीय चित्रकारी के फार्म को लिया गया।

नई दिल्ली, रुमनी घोष। भारतीय संविधान को दुनिया का सबसे अलंकृत लिखित संविधान माना जाता है। इसे अलंकृत किया गया है चित्रों के जरिये। 22 भाग वाले संविधान के हर भाग के पहले पन्ने पर एक चित्र है। इन चित्रों के अपने मायने, अपनी संस्कृति है। शांति निकेतन के कलाभवन के प्रमुख रहे ख्यात चित्रकार नंदलाल बोस ने अपने निर्देशन में इन चित्रों को तैयार करवाया था और जिम्मेदारी सौंपी थी अपने ही प्रिय शिष्य व्यौहार राममनोहर सिंहा को।

मूलत: जबलपुर के रहने वाले व्यौहारराममनोहर सिंहा का जन्म 15 जून 1929 को जबलपुर के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। जबलपुर में व्यौहार वंश का इतिहास लगभग सैकड़ों साल पुराना है। गौंड साम्राज्य में महा अमात्य (प्रधानमंत्री) को व्यौहार की पदवी दी जाती थी और यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती थी। वहीं से उन्हें यह पदवी मिली।

1935 में पहली बार सुनाई पड़ा था संविधान शब्द

राममनोहर सिंहा के बेटे डा. अनुपम सिंहा बताते हैं मेरे दादाजी व्यौहार राजेंद्र सिंहा का शांति निकेतन से बहुत जुड़ाव था। वह स्वयं साहित्यकार थे और स्वतंत्रता आंदोलन से भी प्रमुखता जुड़े रहे। उसी दौर में वर्ष 1935 में डा. राजेंद्र प्रसाद और काका कालेलकर कुछ सहयोगियों के साथ हमारे घर व्यौहार निवास पैलेस जबलपुर आए। उन्होंने उस वक्त संविधान (तब स्वराज का संविधान कहलाता था) पर लंबी चर्चा की थी। तब मेरे दादाजी ने उनसे कहा था कि संविधान में ऐसे चित्र होने चाहिए जो भारत की यात्रा को उकेरे। हम जो बात शब्दों से नहीं कह पाएंगे, उसे दुनिया को चित्रों के जरिये समझा सकते हैं। उस वक्त तो मेरे पिता की उम्र बहुत कम थी, लेकिन दादाजी कालांतर में उन्हें इसके बारे में बताते रहते थे। हालांकि उस वक्त किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि भारत का संविधान कैसे आकार लेगा और उसमें उनके बेटे को चित्रकारी का मौका मिलेगा।

1946 में शांति निकेतन गए और वहीं रह गए

1946 के दौर में शांति निकेतन कला, साहित्य समागम और नव विचारों का गढ़ हुआ करता था। दादाजी व्यौहार राजेंद्र सिंहा मेरे पिता को लेकर शांति निकेतन गए और फिर वह वहीं रह गए। नंदलाल बोस ने उनका प्रारंभिक काम देखकर उन्हें कलाभवन में प्रवेश दे दिया। फिर उन्होंने वहीं से स्नातक, स्नातकोत्तर किया। वर्ष 1961 तक बतौर प्राध्यापक सेवाएं दीं।

22 में से 12 चित्र राममनोहर के

संविधान के 22 खंड हैं और हर खंड के पहले पन्ने पर विशेष चित्र हैं। इनमें से 12 चित्र उनके हैं। बाकी सभी चित्र संयुक्‍त प्रयासों से बनाए गए हैं। इन चित्रों में शुद्ध रूप से भारतीय चित्रकारी के फार्म को लिया गया। सैकड़ों चित्र बनाए गए और उसमें से कुछ चुनिंदा चित्र चुने गए थे।

पहली तस्वीर मोहनजोदड़ो-सिंधु घाटी सभ्यता और आखिरी तस्वीर वंदे मातरम

डा. अनुपम बताते हैं भारतीय संविधान की यह खूबी है कि यह हमारी 5000 साल पुरानी सभ्यता से शुरू होकर आजादी तक की गाथा है। इसके पहले खंड का चित्र मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता से जुड़ा हुआ है और आखिरी चित्र वंदेमातरम है। यह दोनों ही मेरे पिता ने बनाए थे। मेरे पिता बताते थे कि इसमें वंदे-मातरम को बनाना बहुत मुश्किल था, क्योंकि यह भाव था जिसे चित्र का रूप देना था।

स्वास्तिक का चिन्ह तेहरान में खुदाई के दौरान मिला

डा. अनुपम बताते हैं कि इसमें चित्रों का चयन करते वक् कितनी बारिकियां रखी गई होंगी। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि संविधान में जो स्वास्तिक का चित्र बनाया गया है, उसे तेहरान में मिली कृति का हिस्सा है।

इन चित्रों को वह पहचान नहीं मिली

आखिरी समय में राममनोहर सिंहा बीमार रहने लगे थे। उन्हें इलाज के लिए इंदौर ले जाया गया था। 25 अक्टूबर 2007 को वहीं उनकी मृत्यू हो गई थी। डा. अनुपम बताते हैं मेरे पिता को इस बात का दु:ख रहा कि संविधान में उन चित्रों को समय रहते वह पहचान नहीं मिली, जो मिलनी चाहिए थी।

चित्रों पर हस्ताक्षर करने से किया था इन्कार

डा. अनुपम बताते हैं संविधान में बने इन चित्रों में उनके हस्ताक्षर नहीं दिखेंगे। उन्होंने किसी भी चित्र पर हस्ताक्षर करने से यह कहकर इन्कार कर दिया था कि यह चित्र राष्ट्र को अर्पित हैं,इसिलए इसका श्रेय क्यों लेना। आखिर में नंदलाल बोस के आदेश के बाद एक-दो चित्रों पर राम लिखा था।