एक तरफ जहां दुनिया भर में वृद्धों के साथ दुर्व्यवहार को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास स्वरूप हर वर्ष विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस (15 जून) मनाया जाता है। हमारे देश के कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो बड़े उत्साह से कहते हैं पचास के पार जिंदगी नहीं रुकती
बीते दिनों ब्रिटिश अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन और दुनिया के सबसे अमीर बिजनसमैन जेफ बेजोस अंतरिक्ष को महसूस कर कुशलता से लौट आए। बेजोस के साथ दुनिया की सबसे उम्रदराज एस्ट्रोनाट 82 साल की वैली फंक भी स्पेस में गईं और यह हिम्मत दिखाने वाली दुनिया की पहली सबसे बुजुर्ग व्यक्ति बन गईं। तीसरे अरबपति एलन मस्क हालांकि खुद अंतरिक्ष में नहीं गए, लेकिन उन्होंने स्पेस यात्रा की शुरुआत कर दी। इन सभी में समानता को गौर से देखिए तो ब्रैनसन 71 साल के हैं, बेजोस 60 वर्ष के करीब पहुंच गए हैं और मस्क भी 50 के पार हैं। इनकी उम्र और इनका साहस आपस में विरोधाभास पैदा करता है क्योंकि हमारे यहां माना जाता है कि 50 के पार जाते ही आदमी बूढ़ा और तेजहीन होने लगता है। इसे एजिज्म या आयुवाद कहते हैं। वृद्धों के प्रति अनुचित व्यवहार होने लगता है और उम्रदराज लोगों को बेकार माना जानने लगता है, लेकिन अब इस अवधारणा ने पासा पलट लिया है। इतिहास रचने के लिए अब उम्र कोई बंधन नहीं है, यह सिर्फ गणित की एक संख्या भर है।1, समय 56 दिन, यात्रा 16 हजार किलोमीटर: आखिर क्यों समझा जाए कि एक उम्र के बाद अनुभवी नया काम नहीं कर सकते या फिर उनके पास नया इतिहास रचने का हौसला नहीं है? फिरोजपुर (पंजाब) के रहने वाले 61 वर्षीय रघबीर सिंह खारा ने रिटायर होने के बाद मोटरसाइकिल पर पांच देशों की यात्रा कर लोगों की सोच को करारा जवाब दिया है। पंजाबी एडवेंचरर्स क्लब के प्रमुख रघबीर सिंह खारा ने दो साल पहले अपनी मोटरसाइकिल से नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया व सिंगापुर का दौरा किया। 56 दिनों में 16 हजार किलोमीटर से ज्यादा का सफर कर चुके रघबीर सिंह नेहरू युवा केंद्र से यूथ को-आर्डिनेटर के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। रघबीर सिंह ने रिटायरमेंट के बाद कुछ अलग करने के उद्देश्य से अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर क्लब का गठन किया और इसके बाद भारत के 11 राज्यों से होते हुए पांच देशों की यात्रा पूरी की। कहते हैं रघबीर सिंह, 'कोई भी व्यक्ति उम्र से रिटायर नहीं होता। असल में वह तब रिटायर होता है, जब वह खुद को बूढ़ा समझने लगता है। इतने लंबे सफर के दौरान मेरे बाकी नौजवान साथियों ने मेरे बराबर ड्राइविंग की। उन्होंने मुझे कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि उनके साथ कोई रिटायर व्यक्ति है।' रघबीर सिंह ने बताया कि उन्होंने अपने सफर के दौरान पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम, मेघालय, नागालैंड व मणिपुर आदि राज्यों से होते हुए इंफाल से म्यांमार में प्रवेश किया। कई देशों में दाएं हाथ की ड्राइविंग का अलग अनुभव था। हालांकि, कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आई। कुछ घंटों के बाद ही सब सामान्य हो गया। कोरोना काल खत्म होते ही एक और लंबी यात्रा की योजना है। रघबीर कहते हैं कि लंबी यात्रा के लिए सेहत का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इसके लिए खास तैयारी करनी पड़ती है। अलग-अगल मौसम, खान-पान में विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है।
इलाज मुफ्त, दवाइयां मुफ्त, उठाया बीड़ा सेवा : बाल गंगाधर तिलक ने एक समय कहा था कि तुम्हें कब क्या करना है, यह बताना बुद्धि का काम है, पर कैसे करना है यह अनुभव ही बता सकता है। अपने इसी अनुभव से 83 वर्ष की उम्र में भी सेवा का जिम्मा उठा रहे हैं भिलाई इस्पात कारखाने से सेवानिवृत्त डीजीएम डा. एसएन आहूजा। वह सुबह से लेकर रात तक होम्योपैथी चिकित्सा के द्वारा निश्शुल्क इलाज करते हैं और निश्शुल्क दवाइयां भी देते हैं। डा. आहूजा कहते हैं, 'एक दिन पत्नी सरोज आहूजा के साथ घर पर बैठे हुए थे। चाय पीते हुए पत्नी ने कहा कि लोग तो अपने लिए जीते हैं और अपने लिए ही सब कुछ करते हुए मर जाते हैं... दूसरों के लिए कौन करता है? यह बात मेरे मन को छू गई। इसके बाद मैंने लोगों की सेवा करने की ठानी। भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी करते हुए ही मैंने रायपुर में शाम को लगने वाले क्लास में पढ़ाई कर होम्योपैथी चिकित्सा में डिप्लोमा लिया। साथ ही, आरएमपी डाक्टर का कोर्स भी कर लिया। इसके बाद अपने घर पर ही लोगों के मुफ्त इलाज की शुरुआत की। यह दौर सेवानिवृत्ति के बाद भी चल रहा है।' डा. आहूजा की दिनचर्या दूसरों के लिए शुरू होती है और उन्हीं की सेवा करते हुए खत्म। सुबह छह बजे से वे लोगों का इलाज करते ही हैं। यदि रात में उनके सोने के बाद भी कोई मरीज उनके दरवाजे पर पहुंचता है तो वे उसे निराश नहीं लौटाते। रात में अपने घर से उन्हें दवाइयां देकर भेजते हैं।
67 साल में विश्व चैंपियनशिप जीतने की तैयारी: मजबूत इरादों के आगे उम्र आड़े नहीं आती। इस बात को सही साबित कर दिखाया बठिंडा (पंजाब) के एशियन गोल्ड मेडलिस्ट बलजीत सिंह ने। बलजीत सिंह की उम्र 67 साल है। वह दो बार मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। बठिंडा के एमएसडी स्कूल में बतौर कोच सेवाएं दे रहे बलजीत सिंह ने 2016 में एशियन एथलेटिक्स फेडरेशन की ओर से सिंगापुर में आयोजित एशियन मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और 11.27 मीटर शाटपुट फेंककर भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। इसके बाद 2020 में मलेशिया में हुई मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी उन्होंने इसी इवेंट में 11.12 मीटर शाटपुट फेंक कर गोल्ड मेडल हासिल किया और वल्र्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए भी क्वालीफाई किया। यह चैंपियनशिप 2021 में कनाडा में आयोजित की जानी थी, लेकिन कोरोना के चलते इसे स्थगित कर दिया गया। अब जब भी विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप का आयोजन होगा तो बलजीत सिंह उसमें भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।
बलजीत सिंह ने स्कूल से रिटायर होने के बाद नई जिंदगी शुरू करने के लिए खुद को खेल की तरफ मोड़ा और देश का नाम ऊंचा किया। वह कहते हैं, 'हमें उम्र का खयाल छोड़कर सेहत का ध्यान रखना चाहिए। अगर सेहत ठीक है तो सब कुछ ठीक रहेगा। उन्होंने कहा कि मैंने 65 प्लस कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता था। अब वल्र्ड चैंपियनशिप में 67 साल की श्रेणी में हिस्सा लूंगा। उन्होंने युवाओं को भी प्रेरित किया कि खेलने के समय कभी भी अपनी उम्र को आड़े नहीं आने देना चाहिए। कई बार लोग अपनी सेहत के लिए खाना-पीना छोड़ देते हैं, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं है। अच्छी डाइट के साथ सेहत का ध्यान रखेंगे तो कोई भी मुसीबत नहीं आएगी।'
महिला स्वास्थ्य, आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ गए हैं कदम: जब मध्य प्रदेश के वर्धा पर गांधीवादी विचारधारा का बहुत प्रभाव था तभी अनघा भी इससे अछूती नहीं रहीं। उन्होंने सूत कातना सीखा। खादी पहनने की शुरुआत की। इसके बाद शादी हो गई तो जबलपुर आ गईं। शुरू से ही उनके मन में था कि मुझे कुछ करना है। पर्यावरण, महिलाओं, बच्चों के स्वास्थ्य के लिए लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते सब मन में ही रह गया। लेकिन जब बच्चे बड़े हो गए तो उन्होंने इग्नू से समाजसेवा से मास्टर्स करने का आवेदन दिया। यह मास्टर्स कोर्स 55 वर्ष की उम्र में पूरा हुआ और वह समाजसेवी बन गईं। अपने इन अनुभवों को साझा करते हुए 57 वर्षीय समाजसेवी अनघा पाल कहती हैं, 'समाज सेवा करने का भी एक नियम होता है। हमें किस क्षेत्र में क्या काम करना है यह पता होना चाहिए। तभी कार्य सफल हो पाता है। जो मास्टर्स करने के बाद मेरे दिमाग में एकदम स्पष्ट था। मैंने 'रिसाइकल टू सेव रिसोर्स फाउंडेशनÓ नाम से संस्था का पंजीयन कराया। इसके माध्यम से वेस्ट को रियूज करने की मेरी कोशिश थी। इसके लिए पहले जरूरतमंद महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया। ऐसी करीब 50 महिलाओं ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। कुछ मेरे साथ काम कर रही हैं, कुछ ने अपना स्वरोजगार शुरू कर दिया है। घरों से पुराने कपड़ों को एकत्रित कर हम लोग शिशुओं के उपयोग की किट तैयार करते हैं और उन्हें सरकारी अस्पतालों व जरूरतमंद माताओं व शिशुओं तक पहुंचाने का काम करते हैं।'
अनघा कहती हैं कि बच्चों के साथ महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी हम लोगों ने ध्यान दिया। सेनेटरी नैपकिन हर महिला की आवश्यकता है। शहरों में तो डिस्पोजेबल पैड का उपयोग होता है। लेकिन अभी भी कई गांव, आदिवासी क्षेत्र ऐसे हैं जहां महिलाओं के पास सेनेटरी नैपकिन ही नहीं होता। न ही उन्हें जागरूकता होती है कि माहवारी के समय कपड़े का उपयोग कैसे करना चाहिए। ऐसी महिलाओं तक हमने सेनेटरी नैपकिन पहुंचाने का प्रयास किया। हमें महिलाओं को यह भी बताना है कि कपड़ा ही उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। इसलिए सूती कपड़े से सेनेटरी नैपकिन की एक किट तैयार की जिसमें कपड़े को धोकर सुखाने तक की सारी व्यवस्था होती है। इस किट को हम लोग आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से महिलाओं तक पहुंचाते हैं। साथ ही कार्यशालाएं करके सेनेटरी नैपकिन बनाने का प्रशिक्षण भी महिलाओं को देते हैं। ग्रामीण महिलाओं के पास से इसका अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलती हैं। अनघा कहती हैं कि खुशी है कि महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कुछ कर पा रही हूं।
59 की उम्र में शुरू की वेट लिफ्टिंग, घटाया 38 किलो वजन: 57 की उम्र में जिम जाना और 59 की उम्र में वेट लिफ्टिंग में छह स्वर्ण पदक जीत लेना नौजवानों के बस में भी नहीं है लेकिन जबलपुर की रेणु चतुर्वेदी का यही जलवा है। उनका वजन 106 किलोग्राम था। उन्हें मोटापे से ही पहचाना जाने लगा था। जब उनकी उम्र 57 साल की हुई, तब उन्हें महसूस हुआ कि एलआइसी की नौकरी से सेवानिवृत्ति का समय आ रहा है। अगर मोटापा ऐसा ही रहा तो बाद में बहुत ज्यादा परेशानी होगी। तब बेटे ने भी कहा कि आपको अपनी हेल्थ के लिए कुछ करना चाहिए। उन्होंने मन को मजबूत किया और 57 की उम्र में जिम जाने लगीं। अपने जीवन के इन अनुभवों को साझा करते हुए एलआइसी से डिवीजनल मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त रेणु चतुर्वेदी बताती हैं, 'जिम जाने के आठ माह के बाद मैंने अपना 38 किलोग्राम वजन कम किया। 68 किलोग्राम वजन होने के बाद न केवल मोटापे से मुक्ति मिली बल्कि शुगर जैसी बीमारी भी नियंत्रित हुई। मैं दिन में तीन बार 34 यूनिट इंसुलिन लिया करती थीं। वजन कम होने और नियमित आहार लेने के बाद अब शुगर की दवा भी नहीं खाना पड़ती। पहले इतनी सुस्त थीं कि एक काम करने के बाद बैठना पड़ता था।
ज्यादातर लेटी ही रहती थी, लेकिन वजन कम होने पर ये सारी परेशानियां दूर हो गईं।Ó जब स्वास्थ्य बेहतर हुआ तो जिम में ही रेणु ने वेट लिफ्टिंग का अभ्यास शुरू किया। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ता गया। जिम में ही उन्हें वल्र्ड पावरलिफ्टिंग कांग्रेस द्वारा आयोजित होने वाली जिला स्तरीय व राष्ट्रस्तरीय वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिता के बारे में पता चला। 59 साल की उम्र में 2019-2020 में हुई जिला व राष्ट्र स्तरीय वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिता में 40 और 90 किलोग्राम का वजन उठाने में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। इसी तरह अप्रैल 2020-2021 में हुई दोनों प्रतियोगिताओं में भी स्वर्ण पदक मिला। रेणु अभी तक छह स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। साथ ही, सितंबर में होने वाली प्रतियोगिता के लिए तैयारी भी कर रही हैं। रेणु का कहना है कि इसके पहले वेट लिफ्टिंग या पावर लिफ्टिंग क्या होती है उन्हें पता तक नहीं था, लेकिन अब ये स्वर्ण पदक उनकी पहचान बन चुके हैं। खुशी होती है जब लोग कहते हैं कि आप दूसरों के लिए प्रेरणा ह
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