एनिमिया मुक्त अभियान के तहत महिलाओं व बच्चों की स्क्रीनिंग, जानें लक्षण व बचाव

 

एनिमिया मुक्त अभियान के तहत बच्चों की स्क्रीनिंग।

एनिमिया मुक्त अभियान के तहत यमुनानगर में महिलाओं व बच्चों की स्क्रीनिंग की गई। इसके तहत 279971 महिलाओं व बच्चों की स्क्रीनिंग की गई। जिनमें से 12401 में खून की कमी पाई गई। एनिमिया की जांच के लिए बच्चों व महिलाओं को छह वर्गाें में बांटा गया।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। स्वास्थ्य विभाग की ओर से एनिमिया मुक्त अभियान शुरू किया गया है। ताकि बच्चों व महिलाओं को इस रोग से बचाया जा सके। जनवरी माह से अब तक दो लाख 79 हजार 971 महिलाओं व बच्चों की स्क्रीनिंग की गई है।

जिसमें 12 हजार 401 में खून की मात्रा काफी कम मिली है। इनका इलाज शुरू किया गया है। इसके साथ ही करीब 80 हजार ऐसे मिले हैं। जिनमें खून की मात्रा लगभग पूरी ही मिली है। उनको भी इलाज दिया जा रहा है और एनिमिया से बचाव के बारे में बताया जा रहा है।

बच्चों व महिलाओं को 6 वर्गों में बांटा गया

एनिमिया की जांच के लिए बच्चों व महिलाओं को छह वर्गाें में बांटा गया है। इसमें छह माह से 59 माह तक के बच्चों को पहली श्रेणी, छह वर्ष से नौ वर्ष तक के बच्चों को दूसरी श्रेणी में, नौ वर्ष से 19 वर्ष तक के बच्चों को तीसरी श्रेणी में तथा 19 वर्ष से 24 वर्ष तक की लड़कियों व महिलाओं को रखा गया है। गर्भावस्था में महिलाओं व दूध पिलाने वाली महिलाओं को एक श्रेणी व इसके अलावा सभी विवाहित महिलाओं को रखा गया है। इस श्रेणी के अनुसार ही जांच की जा रही है। उसके आधार पर ही उपचार दिया जा रहा है। 

यह है एनिमिया

रेड ब्लड सेल्स में हीमोग्लोबिन नाम का प्रोटीन पाया जाता है। यह पूरे शरीर में कोशिकाओं तक आक्सीजन पहुंचाने का काम करता है।  किसी वजह से हीमोग्लोबिन का स्तर घटने लगता है तो इससे शरीर में मौजूद सभी कोशिकाओं को आक्सीजन नहीं मिल पाता। इससे थकान महसूस होने लगती है। यह मुख्य कारण है। इसके अलावा खानपान में पोषक तत्वों की कमी भी इसका मुख्य कारण है। यदि खाने में आयरन, फालिक एसिड, विटामिन और प्रोटीन की कमी है, तो शरीर में रेड ब्लड सेल्स की संख्या घटने लगती है। यह भी एनिमिया है। 

यह हैं बचाव व लक्षण

बच्चों में जंक फूड की वजह से खून की कमी होती है। महिलाओं में माहवारी के दौरान ब्लीडिंग की वजह से यह समस्या हो जाती है। इसके अलावा कुछ में जन्मजात यह बीमारी होती है। जिसे थैलेसीमिया कहा जाता है। गर्भवती महिलाओं में खून की कमी होने से मिसकैरेज या प्रीमेच्योर डिलिवरी की खतरा बढ़ जाता है।  गर्भस्थ शिशु का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता और इसमें जन्मजात रूप से ब्रेन और नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है। बच्चों की याददाश्त कमजोर हो जाती है।

यह है आंकड़ा

अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग की ओर से छह से 59 माह के 54 हजार 10 बच्चों की स्क्रीनिंग की गई। जिसमें से 15151 में 11.9 ग्राम से अधिक खून मिला है। वह ठीक हैं। इसके अलावा 14 हजार 206 में 11 ग्राम तक खून मिला है। 21 हजार 144 में 10 ग्राम से कम खून मिला है। जबकि 3509 में आठ ग्राम से कम खून मिला है। पांच से नौ वर्ष आयु वर्ग में 70 हजार 976 बच्चों की जांच हुई। इसमें 

स्क्रीनिंग - आयु वर्ग - 11.9 ग्राम से अधिक  - 11.9 ग्राम से कम - 10 ग्राम से कम - आठ ग्राम से कम 

54010 - 06 से 59 माह - 15151 - 14206 - 21144 - 3509

70976 - पांच से नौ वर्ष- 26609 - 21875 - 20367 - 2125

101228 - 10 से 19 वर्ष -43873 - 27385 - 27264 - 2716

30595 - युवती व महिलाएं-11064 - 7411 10064 - 2056

23152 - गर्भवती महिलाएं - 23152 - 7921 - 7393 - 6933 - 905

स्क्रीनिंग का कार्यक्रम चल रहा है

डिप्टी सिविल सर्जन डा. विजय परमार ने बताया कि स्क्रीनिंग का कार्यक्रम चल रहा है। इसकी साप्ताहिक रिपोर्ट तैयार की जाती है। जिन महिलाओं व बच्चों में खून की अधिक कमी मिलती है। उनका उपचार कराया जा रहा है। उपचार के हर दो माह बाद दोबारा फिर से जांच की जाती है। 1960 मरीज ऐसे थे। जो एनिमिया से मुक्त भी हुए हैं।