कानपुर का सरसैया घाट...जहां लगता है गंगा मेला, क्रांतिकारी डेरा जमाकर बताते थे आंदोलन की रणनीति

 

कानपुर का सरसैया घाट... जहां लगता है गंगा मेला।

कानपुर में गंगा घाटों की अपनी ही अलग पहचान है। हर घाट के पीछे कोई न कोई कहानी जरूर छिपी हुई है। घाटों की इस श्रृंखला में हम आपकाे कानपुर के सरसैया घाट के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां गंगा मेला अपने आपमें महत्व रखता है।

कानपुर, संवाददाता। कानपुर शहर के निराले अंदाज जैसे ही यहां गंगा के घाट हैं। उनमें से ही एक है सरसैया घाट। बड़ा चौराहा से कचहरी के किनारे होकर जिला कारागार से सटी सड़क पहुंचाती है सरसैया घाट। इस घाट पर वैसे तो प्रतिदिन लोग गंगा स्नान करने पहुंचते हैं, लेकिन यहां होली के दौरान गंगा मेला सबसे प्रसिद्ध है।

इतिहासकार बताते हैं, इस घाट पर वैसे तो प्रतिदिन लोग गंगा स्नान करने पहुंचते हैं, लेकिन यहां होली के दौरान गंगा मेला सबसे प्रसिद्ध है। व्यापारियों के यहां क्रांतिकारी डेरा जमाकर आंदोलन की रणनीति बनाते थे। हटिया के बड़े व्यापारी गुलाब चंद सेठ होली पर बड़ा आयोजन करते थे। एक बार होली के दिन अंग्रेज अधिकारी घोड़े पर सवार होकर आए और उन्हें आयोजन रोकने को कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया। अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी का विरोध करने पर जागेश्वर त्रिवेदी, पं. मुंशीराम शर्मा सोम, रघुबर दयाल, बालकृष्ण शर्मा नवीन, श्यामलाल गुप्त पार्षद, बुद्धूलाल मेहरोत्रा और हामिद खां को भी हुकूमत के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार करने के बाद सरसैया घाट के पास स्थित जिला कारागार में बंद कर दिया गया। इससे शहरवासी भड़क उठे और बड़ा आंदोलन हुआ। आठ दिन बाद अंग्रेजों ने घबराकर सभी को छोड़ दिया। यह रिहाई अनुराधा नक्षत्र के दिन हुई। इससे यह उत्सव का दिन हो गया। हटिया से रंग भरा ठेला निकाल जमकर रंग खेलने के बाद शाम को गंगा किनारे सरसैया घाट पर मेला लगा। तब से परंपरा अब भी चल रही है।

अब घाट में दिखते कई बदलाव

आजादी से पहले सरसैया घाट में बहुत सुविधाएं नहीं थीं, लेकिन अब यहां बड़े बदलाव हो गए हैं। सीढ़ियों से लेकर आसपास सुंदरीकरण कराया जा चुका है। केंद्र व राज्य सरकारों की पहल से स्थानीय प्रशासन भी इसमें रुचि ले रहा है। सरसैया घाट से गंगा का विहंगम दृश्य देखने लायक होता है। बड़ी संख्या में प्रतिदिन लोग यहां पहुंचते ह

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