पिछले विधानसभा चुनाव की कसक भाजपा भूली नहीं है जब 100 की संख्या पार करने के बावजूद रणनीतिक बाजीगरी में कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर भाजपा से सत्ता छीन ली थी। हालांकि उस दौरान कांग्रेस और जेडीएस के बीच संबंध मधुर नहीं बन पाए थे।
ब्यूरो, नई दिल्ली। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव को अब सात-आठ महीने का समय बाकी है। उससे पहले राज्यसभा चुनाव में तीसरे उम्मीदवार की चौंकाने वाली जीत ने भाजपा में उत्साह भर दिया है। दरअसल, यह जीत न सिर्फ जदएस के विधायक के समर्थन से मिली है, बल्कि इस चुनाव ने कांग्रेस और जदएस के बीच की दूरी को भी बढ़ा दिया है। भाजपा इसे ही एक अवसर के रूप में देख रही है।
पिछले विधानसभा चुनाव की कसक भाजपा भूली नहीं है, जब 100 की संख्या पार करने के बावजूद रणनीतिक बाजीगरी में कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर भाजपा से सत्ता छीन ली थी। हालांकि, उस दौरान कांग्रेस और जेडीएस के बीच संबंध मधुर नहीं बन पाए थे। लेकिन यह आशंका बरकरार थी कि अवसर आने पर कहीं फिर से दोनों दल पास न आ जाएं। यही कारण है कि पिछले दिनों में भाजपा की ओर से भी परोक्ष तौर पर जेडीएस को साधने की कोशिशें होती रही थीं। दरअसल, भाजपा मुख्यरूप से प्रभावशाली लिंगायत की पार्टी मानी जाती है और जेडीएस वोक्कालिगा की। जेडीएस नेता एचडी देवेगौड़ा के गिरते स्वास्थ्य और पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी की चूक के कारण जरूर जेडीएस अपने गढ़ों में भी कमजोर होने लगा है, लेकिन जमीन खत्म नहीं हुई है। शायद यही कारण है कि इस बार कांग्रेस ने राज्यसभा में दूसरी सीट के लिए मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर जेडीएस को असहज कर दिया था। कोशिश यह थी कि अगर जेडीएस उसका समर्थन नहीं करता है, तो प्रदेश के मुस्लिमों के लिए संदेश होगा कि उसे कांग्रेस के साथ जाना चाहिए। कांग्रेस और जेडीएस की खींचतान में भाजपा ने बाजी मार ली।टास बढ़ गई है कि लड़ाई त्रिकोणीय ही होगी। खासकर मैसुरु क्षेत्र की राजनीतिक जमीन में कांग्रेस और जेडीएस की आपसी लड़ाई में भाजपा खुद के लिए अवसर देखेगी। पिछले कुछ उपचुनावों में यह असर दिख भी चुका है, जब इस क्षेत्र में भाजपा ऐसी सीटें भी जीत गई, जो पिछले 50 वर्षो में नहीं जीत पाई थी।