स्मार्ट फोन एप से हो सकेगी नवजातों में पीलिया की जांच, बच्चे की आंखों की स्कैनिंग से हो जाएगा टेस्ट

 

इसके द्वारा बचाई जा सकेगी बच्चों की जान।

इस एप से 336 नवजात बच्चों का टेस्ट किया गया। इनमें से 79 नवजात बच्चों में पीलिया के गंभीर लक्षण थे और एप ने इनमें से 74 की सही पहचान की। इसके बाद आवश्यक उपचार को निर्धारित करने के लिए खून की जांच की जाती है।

लंदन, आइएएनएस। कई नवजातों में पीलिया (जांडिस) जन्मजात ही होता है और इस कारण उनमें से कई की मौत भी हो जाती है। लेकिन अब एक ऐसे एप का विकास किया गया है जिससे जल्द नवजात बच्चों में पीलिया की जांच की जा सकेगी और उनकी जान बचाई जा सकेगी। इस स्मार्ट फोन एप का नाम नियो एससीबी है, जिसे यूनिवर्सिटी कालेज लंदन के चिकित्सकों और इंजीनियरों ने मिलकर बनाया है। शोध टीम ने पीलिया की जांच के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल घाना में जन्मे करीब 300 नवजात बच्चों पर किया। इससे पहले, इस तकनीक का सबसे पहले इस्तेमाल 2020 में यूनिवर्सिटी कालेज लंदन अस्पताल (यूसीएलएच) में 37 बच्चों पर किया गया था।

जर्नल पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा कि टीम ने आंखों के सफेद हिस्से के पीलेपन को मापने के लिए तस्वीरें लीं और उनका बारीकी से अध्ययन किया। टीम ने देखा कि इसमें कितना पीलापन है। सामान्य तरीके से इस पीलेपन को देख पाना असंभव है। ऐसे में नियो एससीबी एप के जरिये पीलिया की पहचान काफी पहले की जा सकती है और यह पता लग सकता है कि इस बीमारी का क्या निदान हो सकता है।

इस एप से 336 नवजात बच्चों का टेस्ट किया गया। इनमें से 79 नवजात बच्चों में पीलिया के गंभीर लक्षण थे और एप ने इनमें से 74 की सही पहचान की। इसके बाद आवश्यक उपचार को निर्धारित करने के लिए खून की जांच की जाती है।

इस एप को विकसित करने में अहम भूमिका निभाने वाले डाक्टर टेरेंस लियंग ने कहा, यह शोध दर्शाता है कि अभी जिन कामर्शियल उपकरणों का पीलिया का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, नियो एससीबी एप उनसे ज्यादा बेहतर और अच्छा है। सबसे अच्छी बात यह है कि नियो एससीबी एप को इस्तेमाल करने के लिए सिर्फ स्मार्ट फोन की जरूरत पड़ती है और अभी जो कामर्शियल उपकरण इस्तेमाल किए जा रहे हैं, उनके मुकाबले इसकी लागत 10 गुना कम है।

उन्होंने आगे कहा, हमें उम्मीद है कि एक बार व्यापक रूप से शुरू हो जाने के बाद हमारी तकनीक को दुनिया के उन हिस्सों में नवजात बच्चों को बचाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जो महंगे स्क्रीनिंग उपकरण नहीं खरीद सकते।

आंखों में पीलापन बिलिरूबिन नामक पदार्थ के कारण पैदा होता है। इसकी गंभीरता बढ़ने पर यह मस्तिष्क में प्रवेश कर सकता है, जिससे बच्चों में अपंगता, सुनने की क्षमता कम होना, सेरेब्रल पल्सी जैसी न्यूरोलाजिकल बीमारियां, शरीर के विकास में देरी समेत मौत होने का खतरा बढ़ जाता है।यह भी पढ़ें

एक अनुमान के अनुसार, गंभीर पीलिया से दुनियाभर में हर साल 114,000 नवजातों की मौत हो जाती है और 178,000 अपंगता के शिकार हो जाते हैं। लेकिन यदि इस बीमारी का सही समय पर पता चल और उचित उपचार हो तो इन घटनाओं में काफी कमी लाई जा सकती है।