ICAR के हैदराबाद स्थित संस्थान सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राइलैंड एग्रीकल्चर की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल र्माच और अप्रैल महीने में कई राज्यों में अधिकतम तापमान रिकॉर्ड स्तर पर दर्ज किया गया। इतने अधिक तापमान से फसलों के उत्पादन पर असर पड़ा जिससे काफी आर्थिक नुकसान हुआ।
नई दिल्ली, जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते मौसम और बढ़ती गर्मी के चलते सिर्फ फसलों पर ही नहीं बागवानी पर भी असर पड़ रहा है। सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ते तापमान के चलते पपीता, आम, सेब, किन्नू, सहित तमाम फलों की पैदावार पर भी असर पड़ा है। बेहद गर्मी के चलते नींबू की पैदावार भी घटी है।
दरअसल इंडियन कांसिल फार एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) के हैदराबाद स्थित संस्थान सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राइलैंड एग्रीकल्चर की ओर से एक रिपोर्ट जारी की गई है। इसमें बदलते मौसम, बढ़ती गर्मी और हीट वेव के असर को साफ तौर पर दिखाया गया है। इस रिपोर्ट को देश भर के कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि से जुड़े संस्थानों से आंकड़े जुटा कर तैयार किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक गर्मी बढ़ने से फलों के पौधों पर कीड़ों के हमले बढ़े हैं। हिमाचल प्रदेश में सेब के पेड़ों में वायरल इंफेक्शन और पत्ते गिरने के मामले सामने आए हैं। वहीं बेर के पेड़ों में कम फल आए हैं। हिमाचल के चंबा, कुल्लू और बिलासपुर जिलों में गर्मी के चलते आम के पेड़ों से बौंर और छोटे छोटे फल झड़ गए। नींबू के पौधों में भी कम फल लगे। पंजाब के फरीदकोट जिले में किन्नू की पौधों के झुलसने और फलों के जल्द गिर जाने के मामले देखे गए। वहीं फरीदकोट और बठिंडा में किन्नू के उत्पादन में 23 फीसदी तक की कमी देखी गई।
रिपोर्ट के मुताबिक बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के कई जिलों में आम के पेड़ों पर हीट वेव का असर देखा गया है। हीट वेव के चलते आम के पेड़ों पर बौर जल्द गिर जाने के मामले देखे गए हैं। बिहार के झारखंड, दरभंगा, झारखंड के गोड्डा और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में आम के पेड़ पर फलों के सामान्य से छोटा हो जाने के मामले सामने आए हैं। वहीं कोंकण, मराठवाड़ा, में ताउते चक्रवात के चलते केसर और अल्फांसो आम की फसल पर असर पड़ा है जिससे उत्पादन घटा है। राजस्थान के पाली जिले में अनार और नींबू की फसल में फूलों और फल के गिरने के मामले देखे गए। जबकि भीलवाड़ा के सिरोही जिले में आम, नींबू और अमरूद की फसल पर हीट वेव का असर देखा गया। हीट वेव के चलते अमरूद के पौधों की पत्तियां झुलस गईं।
फसलों पर भी पड़ा असर
इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) के हैदराबाद स्थित संस्थान सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राइलैंड एग्रीकल्चर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल र्माच और अप्रैल महीने में कई राज्यों में अधिकतम तापमान रिकॉर्ड स्तर पर दर्ज किया गया। इतने अधिक तापमान से फसलों के उत्पादन पर असर पड़ा जिससे काफी आर्थिक नुकसान हुआ। हीट वेव के चलते फसलों, हॉर्टिकल्चर, लाइवस्टॉक, मुर्गी पालन, मछली पालन और भूगर्भ जल सभी पर असर हुआ। मार्च और अप्रैल महीने में बेहद गर्म और सूखी हवाओं के चलते हवा में मौजूद नमी खत्म सी हो गई। वहीं इस गर्मी का असर जमीन में मौजूद नमी पर भी पड़ा। पंजाब के कई जिलों में हीट वेव का असर देखा गया है जिसके चलते गेहूँ के दाने जल्दी पीले पड़ गए और सिकुड गए। दाने जल्द पकने और सिकुड जाने से उपज में 25 फीसदी तक की कमी देखी गई। वहीं मौसम में बदलाव से फसलों पर सफेद मक्खी का संक्रमण बढ़ गया, पौधों के ठीक से विकसित न होने और फली ठीक से न लगने के चलते चने की पैदावार पर भी असर पड़ा। पैदावार में 20% तक की कमी आई। पंजाब के फरीदकोट, बठिंडा और गुरदासपुर में मक्के की फसल पर कीड़े के हमले के चलते लगभग 18 फीसदी फसल का नुकसान हो गया। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में न्यूनतम तापमान में 5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की बढ़ोतरी देखी गई। इसके चलते रबी की फसल पर असर हुआ।
गेहूं की पैदावार पर पड़ रहा असर
आगामी फसल मौसम के बारे में अमेरिकी सरकार के पूर्वानुमान के अनुसार, वैश्विक गेहूं उत्पादन चार वर्षों में पहली बार गिरने की संभावना है। गेहूं की उपलब्धता घटने से खाद्य मुद्रास्फीति में बढ़त देखी जा सकती है। अमेरिकी कृषि विभाग द्वारा हाल ही में 2022-23 फसल सीजन के लिए अपना पहला विश्व अनुमान जारी किया गया है। इसके बाद से गेहूं की कीमतों में तेजी देखी जा रही है। शिकागो में सितंबर डिलीवरी के लिए नई फसल का वायदा कारोबार 12 डॉलर प्रति बुशल (एक बुशल 25.40 किलो के बराबर होता है) तक चढ़ गया, जो सप्ताह में 8 प्रतिशत ऊपर था, फिर इसमें थोड़ा नरमी आई। यूरोनेक्स्ट गेहूं वायदा दो महीने के उच्च स्तर 411.50 यूरो प्रति टन पर कारोबार कर रहा था।